तालिबानियों के हाथ लगा अमेरिकी हथियारों का जखीरा, पड़ोसी देशों की चिताएं बढ़ीं, आतंकियों के पास 2.5 लाख करोड़ रुपये के हथियार और अमेरिका के मददगारों का पूरा रिकॉर्ड
कीमतों की बात करें तो एक नाइट विजन गॉगल की कीमत 8 करोड़ डॉलर (करीब 589 करोड़ रुपए) तक हो सकती है। इसके अलावा रेडियो उपकरणों (रिसीवर, ट्रांसमीटर, एम्पलीफायर, रिपीटर) की कीमत 3.5 लाख डॉलर (करीब 2.5 करोड़ रुपए) तक जा सकती है। हालांकि, अमेरिकी सेना के लिए एक सुकून की बात यह है कि तालिबान को इन उपकरणों को चलाने के लिए काफी ट्रेनिंग की जरूरत पड़ सकती है, जिसके बिना यह उपकरण उनके लिए पूरी तरह बेकार होंगे।
तालिबानी हुकूमत आते ही कई देशों ने अफगानिस्तान के साथ होने वाली हथियारों की बिक्री रोक दी है और साथ ही कई तरह के आर्थिक मदद पर भी रोक लगा दी गई है। पिछले दिनों अमेरिका ने भी अफगानिस्तान का फंड फ्रीज कर दिया और आईएमएफ ने भी फंडिंग पर रोक लगा दी। लेकिन अब अमेरिका के लिए चौंकाने वाली खबर सामने आई है। कहा जा रहा है कि तालिबानी शासन आने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में अमेरिकी हथियारों के एक बड़े जखीरे पर कब्ज़ा कर लिया है।
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार तालिबान ने काफी बड़ी संख्या मे अमेरिकी हथियारों पर कब्जा किया है। जिसमें अमेरिकी राइफल से लेकर कई तरह के सैन्य वाहन, एंटी लैंड माइंस वाहन और हमवी भी शामिल है। साथ ही कहा यह भी जा रहा है कि तालिबान के पास कई ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर और अमेरिका द्वारा अफगान आर्मी को दिए गए विमान भी शामिल हो सकते हैं। साथ ही हवाई हमले करने वाले कई मिलिट्री विमान भी तालिबान द्वारा कब्जे में लिए जाने की आशंका है।
तालिबानी हुकूमत आने के बाद तालिबानी लड़ाकों के हाथों में अमेरिकी हथियार वाली तस्वीर सामने आने के बाद अमेरिकी अधिकारी चौंकन्ना हो गए हैं। अमेरिकी प्रशासन यह पता लगाने की भी कोशिश कर रहा है कि कितने अमेरिकी हथियार तालिबान के कब्जे में गए हैं। तालिबानी लड़ाकों के हाथ में हथियार जाने के बाद अमेरिकी कांग्रेस के एक सूत्र ने सीएनएन से बात करते हुए यह चिंता भी जताई है कि ये हथियार तालिबान के तरह के ही दूसरे संगठनों के हाथ में भी जा सकते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी चिंता जताई कि ऐसे हथियार अमेरिका के विरोधी समूहों को भी बेचे जा सकते हैं जो इसका उपयोग अमेरिका के खिलाफ भी कर सकते हैं।
दरअसल अमेरिका ने अफगानिस्तान सरकार को कई तरह के आधुनिक हथियार दिए थे। जिसमें मिलिट्री विमान से लेकर अत्याधुनिक बंदूक शामिल थे। ये हथियार तालिबान के खिलाफ लड़ाई में अफगान सैनिकों की मदद के लिए दिए गए थे। लेकिन अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद तालिबानी लड़ाकों ने इन हथियारों पर भी कब्ज़ा कर लिया। अमेरिकी हथियारों पर कब्जे की खबर सामने आने के बाद कई पड़ोसी देशों की चिंताएं बढ़ने लगी हैं।
19वीं सदी की शुरुआत से ही अफगानिस्तान महाशक्तियों के लिए खेल का मैदान रहा है। 19वीं सदी में ब्रिटेन था, तो 20वीं सदी में रूस और अब 21वीं सदी में अमेरिका। हर बार शुरुआती जीत के बाद अंतत: तीनों महाशक्तियों को मात खानी पड़ी।
इसके बावजूद महाशक्तियों का यह खेल इतना गहरा है कि 1989 में रूसी सेना की वापसी के बाद पहले मुजाहिद्दीन और बाद में तालिबानी रूसी AK 47 के साथ T-55 टैंकों पर सवार नजर आते थे और अब यही तालिबानी लड़ाके अमेरिकी बख्तरबंद फौजी गाड़ी हमवी (humvee) पर अमेरिका में ही बनी M16 रायफल के साथ नजर आ रहे हैं।
फोर्ब्स के आकलन के मुताबिक अमेरिका अफगानिस्तान में 8,84,311 आधुनिक सैन्य उपकरण छोड़ आया है। इनमें M16 रायफल, M4 कार्बाइन, 82 mm मोर्टार लॉन्चर जैसे इंफेंट्री हथियारों के साथ humvee जैसे सैन्य वाहन, ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर, A29 लड़ाकू विमान, नाइट विजन, कम्युनिकेशन और सर्विलांस में इस्तेमाल होने वाले उपकरण शामिल हैं।
2003 के बाद से यह सैनिक साजो-सामान अफगान सेना और पुलिस के लिए खरीदे गए थे। फोर्ब्स ने यह आंकड़ा अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के डिपार्टमेंट लॉजिस्टिक्स एजेंसी (DLA) के डेटाबेस को स्टडी कर इकट्ठा किया है।
सैनिकों के इस सरेंडर के बाद तालिबान के हाथ अमेरिका के वो खतरनाक हथियार लग गए हैं, जो दुनियाभर के कई देशों तक के पास नहीं हैं। इस सिलसिले में गुरुवार रात रिपब्लिकन पार्टी के एक सांसद और नौसेना के पूर्व रिजर्व सैनिक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कई बड़े दावे किए।
क्या थे अमेरिका के विपक्षी नेता के दावे?
अमेरिका में सत्तासीन जो बाइडेन की डेमोक्रेट पार्टी को विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर जमकर घेरा है। उसके एक सांसद जिम बैंक्स ने कहा, “बाइडेन प्रशासन की लापरवाही की वजह से तालिबान के पास अब अमेरिकी सेना के अरबों डॉलर मूल्य के उपकरण मौजूद हैं। इनमें 75 हजार वाहन, 200 से ज्यादा एयरक्राफ्ट्स और 6 लाख से ज्यादा छोटे हथियार शामिल हैं। तालिबान के पास अब दुनिया के 85 फीसदी देशों से ज्यादा ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर मौजूद हैं। उनके पास नाइट विजन गॉगल्स, बॉडी ऑर्मर्स और मेडिकल सप्लाई हैं। तालिबान के पास अब उन अफगान लोगों के बायोमैट्रिक रिकॉर्ड्स, उनके फिंगरप्रिंट्स और आंखों के स्कैन्स मौजूद हैं, जिन्होंने अमेरिका की पिछले 20 सालों में मदद की।”
क्या है आंकड़ों की सच्चाई?
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने अफगानिस्तान में हथियार मुहैया कराने से जुड़े खर्च के आंकड़े रिलीज नहीं किए हैं। बाइडेन प्रशासन ने इसे युद्ध के मद्देनजर संवेदनशील जानकारी बताते हुए रोका है। हालांकि, अमेरिकी कांग्रेस की ओर गठित युद्ध के खर्चों पर नजर रखने वाले वॉचडॉग ‘ऑफिस ऑफ द स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन’ (SIGAR) के मुताबिक आंकड़े कुछ अलग हैं।
दरअसल, वॉचडॉग की रिपोर्ट में साफ किया गया है कि अमेरिका ने 88 अरब डॉलर की रकम अफगान सेना की ट्रेनिंग और हथियारों पर खर्च की है। रक्षा विभाग ने तो सिर्फ 2005 से 2021 के बीच हथियारों पर खर्च हुई रकम का आंकड़ा मुहैया कराया है। यह करीब 18 अरब डॉलर (1.32 लाख करोड़ रुपए) दिखाया गया। हालांकि, कुछ और रिपोर्ट्स में तो इन आंकड़ों को सिरे से खारिज किया गया है। न्यूयॉर्क पोस्ट की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2002 से 2017 तक अमेरिका ने अफगान सेना को 28 अरब डॉलर ( 2.06 लाख करोड़ रुपए) के हथियार मुहैया कराए। एक और रिपोर्ट में इस खर्च को 2001 से 2021 के बीच 35 अरब डॉलर (करीब 2.50 लाख करोड़) से ज्यादा बताया गया।
अमेरिका ने अफगानिस्तान को कौन से हथियार दिए?
सिगर की पिछले महीने भेजी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में तालिबान शासन आने से पहले तक अफगान सेना के पास कई बड़े हथियार थे। इनमें 6 लाख M16 असॉल्ट राइफल्स, 1 लाख 62 हजार संचार उपकरण, रात में सेना ऑपरेट करने के लिए 16 हजार नाइट विजन गॉगल्स, मशीन गन, तकरीबन 1 लाख वाहन और 16 हजार के करीब खुफिया सर्विलांस से जुड़े उपकरण शामिल हैं। इस साल जून तक अफगान सेना के पास 211 एयरक्राफ्ट्स भी मौजूद थे, जिनकी संख्या बाद में बढ़ाई गई थी। इनमें ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर से लेकर ए-29 सुपर टुकानो अटैक एयरक्राफ्ट और सी-208 लाइट अटैक एयरप्लेन भी शामिल थे।
दरअसल, तालिबान के खिलाफ war on terror छेड़ने वाले अमेरिका ने 2003 के बाद से अफगान सेना और पुलिस को हथियार और ट्रेनिंग पर 83 अरब डॉलर, यानी 6 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए। अफगानिस्तान में छूटे सैनिक साजो सामान में 5.99 लाख से ज्यादा खालिस हथियार, 76 हजार से ज्यादा सैन्य वाहन और 208 सैन्य विमान शामिल हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से ज्यादा हथियार अफगान फौज के घुटने टेकने और सरकार ढहने के बाद तालिबान के हाथ लग चुके हैं। हथियारों की इतनी तादाद एक मजबूत फौज खड़ी करने के लिए पर्याप्त है।
अमेरिकी सरकार ने ऑडिट रिपोर्ट वेबसाइट से हटाई
खास बात यह है कि जो बाइडन का प्रशासन अफगानिस्तान के लिए खरीदे गए हथियार और सैन्य उपकरणों की ऑडिट रिपोर्ट्स को छुपा रहा है। फोर्ब्स डॉट कॉम के मुताबिक इस संबंध में दो महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स को सरकारी वेबसाइट्स से गायब कर दिया गया है। अमेरिका में सरकारी खर्च से जुड़े वॉच डॉग ओपन द बुक्स डॉट कॉम (openthebooks.com) ने यह दोनों रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर पोस्ट की हैं।
पिछले ही महीने अमेरिका से पहुंचे थे सात विमान
तालिबान ने पिछले ही दिनों अमेरिका के दिए ब्लैकहॉक हेलिकॉप्टर और ए-29 सुपर टूकानो हमलावर विमान अपने कब्जे में ले लिया। अफगान रक्षा मंत्रालय ने पिछले महीने अमेरिका से पहुंचे सात नए हेलिकॉप्टरों के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किए थे। एक ब्लैकहॉक हेलिकॉप्टर की कीमत 150 से लेकर 270 करोड़ रुपए तक हो सकती है।
विमानों के कलपुर्जे बेचकर ही लाखों डॉलर बना सकता है तालिबान
- अमेरिकी लड़ाकू विमानों को लेकर विशेषज्ञों की दो राय हैं। पहली-तालिबान इन विमानों का इस्तेमाल नहीं जानता है, लेकिन इसके कलपुर्जों को काफी महंगे दामों में बेच सकता है। अफगान सेना को दिए गए कुछ विमानों का फ्यूल टैंक ही 35 हजार डॉलर, यानी करीब 25 लाख रुपए में बेचा जा सकता है।
- कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान अफगान सेना के ट्रेंड पायलटों को खुद से जोड़कर या पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर इन विमानों का इस्तेमाल कर सकता है। PC-12 टोही और निगरानी विमान नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इन विमानों का तालिबान के कब्जे में आना बेहद चिंताजनक है।
1250 करोड़ के स्कैन ईगल ड्रोन भी गायब
- 2017 में अमेरिकी सेना को 1250 करोड़ रुपए के स्कैन ईगल ड्रोन गंवाने पड़े। ये ड्रोन अफगान नेशनल आर्मी को अपनी रक्षा के लिए दिए गए थे। अफगान सेना ने इनका फौरन इस्तेमाल तो नहीं किया, लेकिन कुछ महीनों बाद पता चला कि अफगान सेना को दिए गए ड्रोन लापता हैं।
- स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रीकन्स्ट्रक्शन (SIGAR) की यह ऑडिट रिपोर्ट भी उसकी वेबसाइट से हटा ली गई है।
अमेरिकी कैग के मुताबिक 6 लाख इंफेंट्री हथियार
भारतीय कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की तरह अमेरिका में काम करने वाली संस्था गवर्नमेंट अकाउंटिबिलिटी ऑफिस (GAO) की रिपोर्ट के मुताबिक 2003 के बाद से अमेरिका ने अफगानी सशस्त्र बलों को 6 लाख इन्फैंट्री हथियार दिए हैं। इनमें M16 रायफल, करीब 1.62 संचार उपकरण और 16 हजार से ज्यादा नाइट विजन शामिल थे।
अगर तालिबानी इन उपकरणों के इस्तेमाल करने की तकनीक नहीं सीखते हैं तो यह जल्द ही बेकार हो जाएंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि इन उपकरणों को ऐसे देशों को बेचा जा सकता है जो अमेरिकी टेक्नोलॉजी हासिल करना चाहते हैं।
आधुनिक हथियारों के इस्तेमाल की तैयारी में जुटा तालिबान
इंटेलिजेंस का अनुमान है कि अब तक तालिबान हमवी समेत 2 हजार से ज्यादा बख्तरबंद गाड़ियों, UH-60 ब्लैक हॉक्स अटैक हेलिकॉप्टरों समेत 40 से ज्यादा सैन्य विमानों और स्कैन ईगल ड्रोन्स को अपने कब्जे में लेकर इनका इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहा है।
सीनेटर्स बोले-तालिबान के कब्जे में ब्लैक हॉक देखकर सहम गए हैं
अमेरिका में रिपब्लिकन सीनेटर्स ने अफगानिस्तान में छोड़े गए अमेरिकी हथियारों का हिसाब मांगना शुरू कर दिया है। अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन को लिखे एक पत्र में सीनेटर्स ने लिखा कि वे तालिबानी लड़ाकों के कब्जे में ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर देखकर सहम गए हैं। यह सोचना भी मुश्किल है कि अमेरिकी लोगों के टैक्स से खरीदे गए आधुनिक तकनीक वाले सैन्य साजो-सामान तालिबान और उनके आतंकी सहयोगियों के हाथों में आ गए हैं। अफगानिस्तान से वापसी की घोषणा करने से पहले अमेरिकी संपत्ति को बचाना रक्षा विभाग की सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए थी।
तालिबान के कब्जे में क्या-क्या?
1. वाहन
तालिबान ने जिन अमेरिकी हथियारों पर कब्जा जमाया है, उनमें सैनिकों के कई वाहन शामिल हैं। 2016 तक अमेरिका ने करीब 75 हजार वाहन अफगान सेना को दिए थे, जबकि पिछले चार सालों में ही 10 हजार और वाहन अफगानिस्तान पहुंचाए गए। इस लिहाज से तालिबान की पहुंच इस समय 85 हजार सैन्य वाहनों तक है, जिसमें 45 हजार लाइट टैक्टिकल व्हीकल से लेकर 30 हजार हमवी, करीब 200 पर्सनल आर्मर्ड कैरियर (मुख्य तौर पर टैंक) भी शामिल हैं।
2. एयरक्राफ्ट
इसी महीने तालिबान ने अमेरिका के ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर और ए-29 सुपर टुकानो एयरक्राफ्ट कब्जा लिए। एक ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर की कीमत 155 करोड़ रुपए आंकी जाती है। बताया जाता है कि अफगान सेना के पास तकरीबन 45 ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर मौजूद थे। इसके अलावा उसके पास 50 एमडी-530एस और 56 एमआई-17 हेलिकॉप्टर भी थे। अफगान वायुसेना के पास 23 सुपर टुकानों अटैक हेलिकॉप्टर के अलावा सी-208, सी-182, सी-130 सुपर हर्क्युलीस, टी-182, जी-222 और एन-32 जैसे ट्रांसपोर्ट विमान भी मौजूद थे। 18 यूटिलिटी एयरक्राफ्ट और एसी-208 फिक्स विंग एयरक्राफ्ट भी अफगान वायुसेना का हिस्सा रहे।
बताया गया है कि अफगान वायुसेना के कई सैनिक तालिबान के खिलाफ चलाए जा रहे अपने मिशन के दौरान एयरक्राफ्ट लेकर ही पड़ोसी देश चले गए। उज्बेकिस्तान सरकार ने दावा किया है कि बीते दिनों 46 अफगान एयरक्राफ्ट उसकी जमीन पर उतरे, जिनमें 24 हेलिकॉप्टर शामिल हैं। वहीं, कुछ और विमानों के पड़ोसी ताजिकिस्तान जाने की भी आशंका है। इसके बावजूद तालिबान के कब्जे में करीब 150 एयरक्राफ्ट्स होने का अनुमान लगाया गया है।
अमेरिकी अफसरों के मुताबिक, अगर तालिबान के आतंकी अमेरिकी विमानों को उड़ा नहीं पाए, तो भी उनके लिए हमारी तकनीक काफी अहम साबित हो सकती है, क्योंकि इनकी पुर्जों की कीमत ही उन्हें जबरदस्त फायदा पहुंचा सकती है। एक सैन्य विमान की कंट्रोल स्टिक की कीमत 18 हजार डॉलर (करीब 13 लाख रुपए) और फ्यूल टैंक 35 हजार डॉलर (करीब 25 लाख रुपए) तक में बिकता है।
3. बंदूकें
अमेरिका की तरफ से अफगान सेना को बीते 20 सालों में चार लाख रायफल्स, 1.5 लाख से ज्यादा पिस्तौल, करीब 65 हजार मशीन गन दी गईं। इसके अलावा उसे ग्रेनेड लॉन्चर, शॉटगन, रॉकेट-प्रोपेल्ड वेपन्स और मोर्टार लॉन्चर दिए गए। डीओडी की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल तालिबान 20 सालों में अफगानिस्तान को मुहैया कराए गए 6 लाख से ज्यादा आधुनिक हथियारों तक पहुंच बनाकर अपनी स्थिति और मजबूत कर सकता है।
अफगान सेना के पास जो सबसे आम बंदूक थी, वह थी एम16 राइफल, जिसकी कीमत 750 डॉलर से लेकर 12 हजार डॉलर (करीब 55 हजार रुपए से 9 लाख रुपए) तक जा सकती है। इसके अलावा मशीन गन एम240 मॉडल की कीमत 6.67 लाख रुपए और ग्रेनेड लॉन्चर की कीमत 3.70 लाख रुपए तक जाती है। उधर सैनिकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली जीलॉक जेनरेशन की 0.4 कैलिबर गोली वाली पिस्तौल की कीमत 24 हजार रुपए तक आंकी जाती है।
4. निगरानी-जासूसी उपकरण
अफगानिस्तान में अल-कायदा को खत्म करने के लिए अमेरिका की तरफ से जब अफगान सेना को तैयार करना शुरू किया गया, तो उन्हें पारंपरिक हथियारों के साथ खुफिया तंत्र मजबूत करने लायक उपकरण चलाने की ट्रेनिंग भी दी गई। आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका ने अफगान सेना और पुलिस को 16 हजार से ज्यादा ऐसे उपकरण दिए, जिनके जरिए आतंकी संगठन के खिलाफ निगरानी और जासूसी तंत्र काफी मजबूत हुए। इनमें नाइट विजन डिवाइस से लेकर रेडियो मॉनिटरिंग सिस्टम और मानवरहित ड्रोन्स भी शामिल रहे हैं, जिन्हें आतंकियों को ढूंढ कर बम बरसाने के लिए जाना जाता है।
कीमतों की बात करें तो एक नाइट विजन गॉगल की कीमत 8 करोड़ डॉलर (करीब 589 करोड़ रुपए) तक हो सकती है। इसके अलावा रेडियो उपकरणों (रिसीवर, ट्रांसमीटर, एम्पलीफायर, रिपीटर) की कीमत 3.5 लाख डॉलर (करीब 2.5 करोड़ रुपए) तक जा सकती है। हालांकि, अमेरिकी सेना के लिए एक सुकून की बात यह है कि तालिबान को इन उपकरणों को चलाने के लिए काफी ट्रेनिंग की जरूरत पड़ सकती है, जिसके बिना यह उपकरण उनके लिए पूरी तरह बेकार होंगे।