नेपालः पीएम केपी शर्मा ओली ने अचानक बुलाई कैबिनेट मीटिंग, संसद भंग करने का फैसला
नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली द्वारा कैबिनेट की आपातकालीन बैठक बुलाई गई है। ऊर्जा मंत्री बारसमन पुन ने बताया कि मंत्रिपरिषद ने संसद को भंग करने की सिफारिश की है और यह सिफारिश राष्ट्रपति को भेजी दी गई गई है।
नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने रविवार को अचानक कैबिनेट मीटिंग बुलाकर संसद भंग करने का निर्णय लिया है. पीएम केपी शर्मा ओली ने कैबिनेट की सिफारिश को राष्ट्रपति के पास भेज दिया है.
Nepal: At an emergency meeting called by PM KP Sharma Oli, the council of ministers recommends to dissolve the Parliament. "It (recommendation) has been sent to the President," says Energy Miniter Barsaman Pun.
— ANI (@ANI) December 20, 2020
नेपाल के ऊर्जा मंत्री बर्समान पुन ने बताया कि पीएम केपी शर्मा ओली की ओर से बुलाई गई एक आपातकालीन बैठक में कैबिनेट ने संसद को भंग करने की सिफारिश की. सिफारिश को राष्ट्रपति के पास भेजा गया है. वहीं सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ ने कहा कि यह निर्णय जल्दबाजी में किया गया है क्योंकि आज सुबह कैबिनेट की बैठक में सभी मंत्री उपस्थित नहीं थे. यह लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है और राष्ट्र को पीछे ले जाएगा. इसे लागू नहीं किया जा सकता.
नेपाल में यह राजनीतिक घटनाक्रम तब सामने आया है जब हाल ही में नेपाली कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि ओली सरकार देश में राजतंत्रवादियों का खुलकर समर्थन कर रही है.
नेपाल की मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि के पी शर्मा ओली सरकार देश के विभिन्न हिस्सों में राजशाही समर्थक रैलियों को रणनीतिक तरीके से सपोर्ट कर रही है. इन रैलियों में संवैधानिक राजतंत्र को बहाल करने और देश को हिंदू राष्ट्र के रूप में फिर से स्थापित करने की मांग की गई थी.
ओली ने रविवार सुबह 10 बजे कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई थी। माना जा रहा था कि इसमें ओली सरकार संवैधानिक परिषद अधिनियम (कार्य, कर्तव्य और प्रक्रिया), 2010 में संशोधन को वापस लेने की सिफारिश करेगी, लेकिन इसके बजाय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रपति से संसद को भंग करने की सिफारिश कर दी।
इससे पहले ओली द्वारा लाए गए संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने मंगलवार को मंजूरी दे दी थी, जिसे वापस लेने का ओली पर दबाव था। इसके मुताबिक कोरम पूरा नहीं होने पर भी परिषद की बैठक बुलाई जा सकती है।
अध्यादेश को मंजूरी मिलने के बाद ओली को परिषद की बैठक बुलाने और तीन सदस्यों की उपस्थिति में भी फैसले लेने का अधिकार मिल गया है। संवैधानिक परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। इसमें चीफ जस्टिस, प्रतिनिधि सभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर, नेशनल असेंबली के चेयरमैन और मुख्य विपक्षी दल के नेता सदस्य के रूप में इसमें शामिल होते हैं। परिषद संवैधानिक संस्थाओं, न्यायपालिका और विदेशी मिशनों जैसे अहम जगहों में प्रमुख पदों पर नियुक्ति की सिफारिश करती है।