पाकिस्तान में शिक्षा के हालात बेहद चिंताजनक, 2.3 करोड़ बच्चे नहीं जाते स्कूल
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान के अंग्रेजी मीडियम स्कूल के टीचर भी इंग्लिश बोलना नहीं जानते हैं.
पाकिस्तान में स्कूलों की हालत को लेकर ये खुलासे एक रिपोर्ट में हुए हैं. ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने दावा किया है कि विल्सन सेंटर एशिया प्रोग्राम की तरफ से जारी एक नई रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आए हैं. इस रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘क्यों पाकिस्तानी बच्चे पढ़ नहीं पाते?’ रिपोर्ट में पाकिस्तानी शिक्षा व्यवस्था की कमजोरियों और उन कारणों के बारे में बताया गया है जिनके कारण स्कूल पढ़ने और सीखने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं.
काफी ज्यादा है शिक्षा का बजट
ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में शिक्षा पर बजट में कोई कमी है. पाकिस्तान में शिक्षा के सुधार के लिए बाहरी देशों से वित्तिय सहायता मिलती है और 2001 के बाद से शिक्षा का बजट 18 प्रतिशत बढ़ाया गया है. वास्तव में पाकिस्तान का शिक्षा बजट, वहां के रक्षा बजट को टक्कर देता है.
इसीलिए विद्यार्थियों के पढ़ने और सीखने की कमी और शिक्षा की खराब गुणवत्ता और भी बड़ा मामला बनकर सामने आया है. यह मामला उन लोगों के लिए भी चिंता का विषय है जो कि वहां शिक्षा सुधार के कार्यक्रम चला रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, स्कूलों में होने के बावजूद पाकिस्तान में तीसरे ग्रेड के केवल आधे से कम विद्यार्थी उर्दू या स्थानीय भाषाओं में एक वाक्य पढ़ सकते हैं. इसका मुख्य कारण शिक्षा में विदेशी भाषाओं का भी उपयोग है. नतीजा विद्यार्थी अपने पाठों को समझने में असफल रहते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर ड्रॉप-आउट की समस्या बढ़ जाती है.
टीचर भी नहीं बोल पाते अंग्रेजी
पेशावर के एक लड़कियों के स्कूल में पाया कि वहां की कुल 120 छात्राओं में से केवल एक ही ठीक से पढ़ लिख पा रही थी. रिपोर्ट पर काम करने वाली नवीवालास ने कहा, “इसकी साफ वजह यह है कि इस इलाके में लोगों की भाषा पश्तो है न की उर्दू. लेकिन जब बच्चा पढ़ने के लिए स्कूल में आता है तो उसे उर्दू में लिखना पढ़ना सिखाया जाता हैं, जिसे वह समझ नहीं पाता.”
नवीवाला ने कहा, “ग्रेड एक में आने के साथ ही उसके पास चार भाषा में किताबें होती है,-उर्दू, अंग्रेजी, अरबी और पश्तो. इनमें से तीन उसके लिए अनजानी होती हैं.” रिपोर्ट में कहा गया है, “ब्रिटिश काउंसिल के एक सर्वे में पाया गया कि पंजाब में अंग्रेजी मीडियम के निजी स्कूलों में 94 फीसदी शिक्षकों को खुद अंग्रेजी बोलनी नहीं आती है.”