पंजाब से नशा खत्म करने के लिए इच्छाशक्ति की आवश्यकता

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पंजाब के जिन नशा तस्करों के संबंध पाकिस्तान में बैठे असामाजिक तत्वों से हैं, उनके बारे में पता लगाना पुलिस की प्राथमिकता में होना चाहिए। पहले यह शिकायतें आती रही हैं कि पुलिस जब किसी तस्कर को पकड़ती है, तो उसे छोड़ने के लिए दबाव बनाया जाता है। पंजाब से नशे की समस्या खत्म करने के लिए पुलिस की ओर से अभियान चलाकर नशा तस्करों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई आवश्यक है। जिस तरह से बरनाला में मेडिकल नशा बेचने वाले दुकानदार को गिरफ्तार करवाने के लिए सत्तापक्ष के विधायक ने अधिकारियों को फोन करके कार्रवाई के लिए कहा उसी तरह की सक्रियता समय की मांग है। वैसे भी नई सरकार से जनता को बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। प्रदेश में नशा तस्करी सरकार व पुलिस के तमाम दावों के बावजूद रुक नहीं रही है। पिछले तीन चुनावों से नशा मुद्दा बन रहा है। कांग्रेस सरकार ने पांच वर्ष पहले नशे पर नकेल कसने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया था। शुरू में तो एसटीएफ की ओर से चलाए गए अभियान का असर दिखा, लेकिन कुछ समय बाद नशा तस्करों के मन से पुलिस का खौफ खत्म हो गया। अमृतसर में सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने दो तस्करों को गिरफ्तार कर पौने तीन किलो हेरोइन बरामद की।

लुधियाना में भी ढाई किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई और मोगा में साढ़े तीन किलो अफीम के साथ पति-पत्नी गिरफ्तार किए गए। इन घटनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस नशे की सप्लाई लाइन अभी तक ब्रेक नहीं कर पाई है। आए दिन पाकिस्तान की ओर से भारतीय सीमा में प्रवेश करने वाले ड्रोन सुरक्षा बलों के लिए नई चुनौती बन गए हैं। पाकिस्तान में बैठे तस्कर ड्रोन के माध्यम से प्रदेश में हेरोइन व हथियार भेज रहे हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप की बात पूर्व डीजीपी ने भी स्वीकार की थी। नई सरकार नशे की समस्या को उच्च प्राथमिकता में लेते हुए यदि इच्छाशक्ति दिखाती है तो निश्चित रूप से इसके बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।

ओपीएड। निर्भरता के आधार पर पंजाब में नशीले पदार्थों की समस्या की हद का आकलन तर्कसंगत है क्योंकि इससे कि पता चलता है कि बाज़ार में किसकी खपत सबसे अधिक है, हालांकि पिछली रिपोर्ट 12 वर्ष पुरानी है, जिसे अब भी व्यापक रूप से उद्धृत किया जाता है।
ड्रग्स एवं क्राईम पर संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में पंजाब में 56 फीसदी अफीम उपयोगकर्ता हैं, जो कि देश में सबसे अधिक हैं। 11 फीसदी के साथ राजस्थान दूसरे एवं 6 फीसदी के साथ हरियाणा तीसरे स्थान पर है। तीनों राज्यों में केवल पंजाब में प्रोपोक्सीफीन के दुरुपयोग की रिपोर्ट दर्ज की गई थी। यह एक मादक नशा है जो दर्द से निजाद के लिए एक इंजेक्शन के रूप में उपयोग किया जाता है। देश भर में 203 भाग लेने वाले केन्द्रों से नशीली दवाओं के सेवन की निगरानी प्रणाली के आंकड़ों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार इसका इस्तेमाल करने वाले दूसरे राज्य नागालैंड और मिजोरम हैं। सिंथेटिक नशा का सेवन, 70 फीसदी नशा करने वाले लोगों द्वारा किया जाता है, इसके बाद ओपीएड के संयोजन और मोरफिन सहित और अन्य सीडेटिव का उपयोग होता है।

100,000 लोगों पर 837 ओपीएड के आदि
एम्स के निष्कर्ष के अनुसार पंजाब में प्रति 100,000 लोगों पर 837 ओपीएड के आदि लोग हैं, जो राज्य के 280 लाख की आबादी का 0.84 फीसदी है। यह आंकड़े अकेले ही, देश भर में नशे की दवाओं के आदि लोगों की संख्या में तीन गुना है। समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुमान के अनुसार देशभर में 3 मिलियन या 30 लाख लोग नशे के आदि हैं यानि कि प्रति 100,000 लोगों पर 250 लोग या कुल जनसंख्या का 25 फीसदी लोग नशे की लत के शिकार हैं।
पंजाब में नशीली दवाओं के उपयोग का अनुमान चयनित नमूना समूहों के सर्वेक्षणों के माध्यम से किया गया है, जैसा कि वैज्ञानिक अध्ययनों में होता है। पंजाब में राज्य -व्यापी जनगणना प्रकार का सर्वेक्षण कभी नहीं हुआ है। ड्रग्स की परिभाषा, शराब और तंबाकू के साथ-साथ नशीले पदार्थों सहित, जैसा कि कई अध्ययनों में नशीली दवाओं के इस्तेमाल के संबंध में बताया गया है, पंजाब में नशीली दवाओं का प्रयोग अधिक पाया गया है। पंजाब में ग्रामीण परिवारों में से दो –तिहाई परिवारों में से कम से कम एक नशीली दवाओं का आदि है। एक निष्क्रिय पंजाबी की नशे की दवा लेने की छवि के विपरीत, नशा करने वाले आईडीसी के नमूने का केवल 16 फीसदी बेरोज़गार थे।
लेखक-नितिन सिंगला,बठिंडा
मोबाइल नंबर-9855151929

 

 

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