फ्रेंच आल्प्स में एक क्लस्टर का अध्ययन किया गया. जिसमें पता चला कि एक कोरोना पॉज़िटिव बच्चा 100 से ज़्यादा लोगों के संपर्क में आया था, लेकिन उनमें से एक में भी उस बच्चे से वायरस नहीं गया था.

आइसलैंड, दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड और इटली में सामुदायिक अध्ययनों में पाया गया कि बच्चों में वयस्कों की तुलना में वायरस होने की संभावना कम थी. इतालवी क्षेत्र ने अपनी 70% आबादी का टेस्ट किया था और ये अध्ययन उसने अपनी उस पूरी टेस्टेड आबादी पर किया था.

दुनियाभर के रिसर्चरों की एक टीम ने सबूतों का रिव्यू करके पाया: “ट्रांसमिशन में बच्चों की भूमिका साफ नहीं है, लेकिन लगातार मिलने वाले सबूत दिखाते हैं कि बच्चों के संक्रमण की चपेट में आने की संभावना कम होती है, और ऐसा भी कम ही होता है कि बच्चे इंफेक्शन घर में लेकर आएं.”

एक थ्योरी कहती है कि बच्चों में आम तौर पर लक्षण नहीं होने या हल्के लक्षण होने का कारण होता है कि उनके फेफड़ों में वो रिसेप्टर्स कम होते हैं, जिसका इस्तेमाल कर कोरोना सेल्स को इंफेक्ट करता है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अबतक ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है, जो इस थ्योरी को सपोर्ट करता हो.

कोरोना के दौर में स्कूल खोलने के क्या ख़तरे हैं?

स्कूल के कर्मचारियों को कितना ख़तरा?

स्कूल में ज़्यादा बच्चे आएंगे, इसका मतलब ज़्यादा शिक्षक भी काम पर आएंगे, और बच्चों के मां-बाप स्कूल के गेट पर होंगे, और ये साफ़ नहीं है कि जब इतने व्यस्क भी आपस में संपर्क में आएंगे तो कोरोना वायरस के फैलाव पर कितना असर पड़ेगा.

विशेषज्ञों को आशंका है कि इससे वायरस का फैलाव बढ़ सकता है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के एक अध्ययन में बताया गया है कि पर्याप्त कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के बिना अगर ब्रिटेन में स्कूल खुलते हैं तो इसकी दूसरे दौर की लहर में भूमिका होगी और दूसरे दौर की लहर में पहले दौर से ज़्यादा संक्रमण के मामले हो सकते हैं.

कोरोना के दौर में स्कूल खोलने के क्या ख़तरे हैं?

अगर बच्चे दोबारा स्कूल नहीं गए तो क्या होगा?

स्कूल खुलने से संक्रमण फैलने का कुछ ख़तरा है ही, लेकिन स्कूल ना खुलने के भी अपने ख़तरे हैं – बस ये ख़तरे थोड़े अलग हैं. सेज संस्था का कहना है कि स्कूल बंद रहने से बच्चों के एजुकेशनल आउटकम पर फर्क पड़ने का ख़तरा है, जिसकी वजह से बच्चों की साइकोलॉजिकल वेल बीइंग और लॉन्ग टर्म डेवलपमेंट पर असर पड़ेगा. इसका सबसे ज़्यादा असर उन बच्चों पर होगा जो पहले से ही कई सुविधाओं से वंचित रहते हैं.

कोरोना के दौर में स्कूल खोलने के क्या ख़तरे हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि स्कूल दोबारा खोलना बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जबतक वैक्सीन नहीं आ जाती, देशों को ज़्यादा टेस्ट करने चाहिए और कोविड-19 के मरीज़ों को अलग कर देना चाहिए.

उनका कहना है कि देशों को स्कूल वापस खोलने चाहिए, ताकि बच्चों की पढ़ाई और ओवर ऑल हेल्थ प्रभावित ना हो. हालांकि सौम्या स्वामीनाथन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रशासन को ये सुनिश्चित करना होगा कि स्कूलों में सैनिटाइजेशन किया जाए और स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाया जाए.

डॉ रवि मलिक भी कहते हैं कि स्कूल खोलने में बहुत सावधानी बरतनी होगी.

वो कहते हैं, “जब भी हम स्कूल खोलेंगे तो हमें शिक्षकों को अच्छे से प्रशिक्षित करना होगा, सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना है, जिस क्लास में पहले 50 बच्चे बैठते थे, हो सकता है अब वहां 20 ही बैठें. उनको दूर-दूर बिठाना होगा. उनको प्रोपर मास्क और सभी सुरक्षा की चीज़ें पहनाकर बिठाना होगा. क्लासरूम के बाहर सैनेटाइज़र लगे होने चाहिए. पीने वाले पानी के पास सैनेटाइज़ लगे होने चाहिए. हर जगह पर हैंड सैनेटाइज़र होने चाहिए और टीचर्स को ये भी पता होना चाहिए कि अगर बच्चा बीमार होता है तो उन्हें क्या करना है.”

हालांकि ग्रामीण अंचल और अर्बन स्लम स्कूलों में पानी की कमी के साथ बार-बार हाथ धोने की कितनी सुविधा होगी, इसे लेकर सवाल कायम हैं.

सौजन्य-बीबीसी हिंदी