नवरात्र शुरू होते ही मंदिरों के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुल चुके हैं. देश के बड़े-बड़े मंदिरों के बाहर भक्तों की भारी भीड़ दर्शन के लिए इकट्ठा हो रही है. भारत में ऐसे कई मंदिर हैं जिनकी लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली है. देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर से यहां श्रद्धालु आते हैं. कुछ मंदिर अपनी भव्यता और प्राचीन महत्व के लिए जाने जाते हैं, तो कुछ अपने अकूत खजाने के लिए. भारत में मंदिरों के चढ़ावे में श्रद्धालु नकदी के अलावा सोना-चांदी भी भेंट करते हैं.
नवरात्र के शुभ अवसर पर हम आपको देश के सबसे अमीर मंदिरों से रू-ब-रू करवाएंगे. मंदिर के चढ़ावे में आने वाली धन राशि से लेकर सोने-चांदी के जेवरात के बारे में आपको विस्तार से बताएंगे. चढ़ावे में आने वाली इस संपत्ति का आखिर क्या किया जाता है. आइए पहले नवरात्र पर आपको देश के पांचवें सबसे अमीर मंदिर से रू-ब-रू करवाते हैं.
माता वैष्णो देवी का मंदिर जम्मू के निकट त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित है. कटरा इस तीर्थ का आधार शिविर है. यहीं से श्रद्धालु वैष्णो देवी के दरबार में जाने के लिए चढ़ाई शुरू करते हैं. तिरुपति मंदिर के बाद सालाना सबसे ज्यादा श्रद्धालु वैष्णो देवी के दरबार में माथा टेकने के लिए ही पहुंचते हैं.
वैसे तो सालभर मां के दरबार में श्रद्दालुओं के बड़ी संख्या में पहुंचने का सिलसिला चलता रहता है, लेकिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के प्रतीक नवरात्र के नौ दिन यहां की रौनक देखते ही बनती है. नवरात्रों में पूरे नौ दिन यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. मंदिर का संचालन श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की ओर से किया जाता है. ये बोर्ड वर्ष 1986 में बनाया गया. चढ़ावे और अन्य स्रोतों से मंदिर की वार्षिक आय करीब 500 करोड़ रुपए है. दान में नकदी के अलावा श्रद्धालु सोना-चांदी भी भेंट में चढ़ाते हैं.
मंदिर का संचालन श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की ओर से किया जाता है. ये बोर्ड वर्ष 1986 में बनाया गया. चढ़ावे और अन्य स्रोतों से मंदिर की वार्षिक आय करीब 500 करोड़ रुपए है. दान में नकदी के अलावा श्रद्धालु सोना-चांदी भी भेंट में चढ़ाते हैं.मंदिर का संचालन श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की ओर से किया जाता है. ये बोर्ड वर्ष 1986 में बनाया गया. चढ़ावे और अन्य स्रोतों से मंदिर की वार्षिक आय करीब 500 करोड़ रुपए है. दान में नकदी के अलावा श्रद्धालु सोना-चांदी भी भेंट में चढ़ाते हैं.
बोर्ड की साइट के मुताबिक बहुत सी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं और लोगों के हित से जुड़े कार्य बोर्ड के हाथ में हैं. इनमें सरस्वती धाम का परिचालन भी शामिल है जिससे यात्रियों को रहने के लिए अतिरिक्त निवास स्थान उपलब्ध होगा. त्रिकुटा भवन, कटरा में 800 बिस्तर की एक शायनशाला है जो माध्यम वर्ग की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई है.
इसके अलावा कटरा में 2.4 किलोमीटर सर्कुलर रोड के निर्माण से बस स्टैंड पर पहले की तुलना में भीड़-भाड़ कम हुई है. यात्रा की सही ढंग से व्यवस्था और निगरानी के लिए एक्स-रे मशीनें और सीसीटीवी कैमरे पूरे यात्रा मार्ग पर लगाए गए हैं.
पौराणिक महत्व-
मंदिर के बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक अधिकतर प्राचीनतम पवित्र मंदिरों की यात्राओं की तरह ही यह निश्चित कर पाना असंभव ही है कि इस पवित्र मंदिर की यात्रा कब आरम्भ हुई. गुफा के भू-वैज्ञानिक अध्ययन से पता चलता है कि इस पवित्र गुफा की आयु लगभग एक लाख वर्ष की है. चारों वेदों में प्राचीनतम ऋग्वेद में त्रिकुट पर्वत का संदर्भ मिल जाता है.
यह भी विश्वास किया जाता है कि पाण्डवों ने ही सबसे पहले देवी माता के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करते हुए कौल कंडोली और भवन में मंदिर बनवाए. त्रिकूटा पहाड़ के बिल्कुल साथ लगते एक पहाड़ पर पवित्र गुफा को देखते हुए पांच पत्थरों के ढांचे पांच पाण्डवों के प्रतीक माने जाते हैं.
कुछ परम्पराओं में इस पवित्र गुफा मंदिर को देवी मां के शक्ति पीठों में सर्वाधिक पवित्र माना जाता है क्योंकि सती माता का सिर यहां गिरा है. कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार लोग यह मानते हैं कि यहां सती माता की दायीं भुजा गिरी थी. परंतु कुछ पाण्डुलिपियां इस विचार से सहमत नहीं हैं, वहां यह माना गया है कि सती की दायीं भुजा कश्मीर में गांदरबल के स्थान पर गिरी थी. निसंदेह श्री माता वैष्णो देवी जी की पवित्र गुफा में मानवीय भुजा के पत्थर के अवशेष देखे जा सकते हैं, जो वरदहस्त के रूप में प्रसिद्ध है.