कानून बने हुए 14 साल, सिर्फ 2.25 फीसदी लोगों ने RTI के तहत मांगी सूचना
सूचना का अधिकार कानून को बने 14 साल गुजर चुके हैं, लेकिन देश के 97.5 फीसदी लोगों ने इसका आजतक इस्तेमाल ही नहीं किया. इसका खुलासा ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट में हुआ है.
- 97.75 फीसदी लोगों ने तो आरटीआई का कभी इस्तेमाल ही नहीं किया
- आरटीआई को लेकर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने जारी की रिपोर्ट
नई दिल्ली। मनमोहन सरकार ने सरकारी कामकाज की जानकारी मांगने का अधिकार आम जनता को देने के लिए साल 2005 में सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) बनाया गया था. यह कानून भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में बेहद कारगर हथियार भी साबित हो रहा है.
इस कानून को बने 14 साल गुजर चुके हैं, लेकिन देश के 97.5 फीसदी लोगों ने इसका आजतक इस्तेमाल ही नहीं किया. इसका खुलासा ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट में हुआ है.
रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा 78 लाख 93 हजार 687 आरटीआई आवेदन केंद्र सरकार को मिले. वहीं दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र रहा, जहां 61 लाख 80 हजार 69 आवेदन आए. इसके अलावा तमिलनाडु में 26 लाख 91 हजार 396 कर्नाटक में 22 लाख 78 हजार 82 और केरल में 21 लाख 92 हजार 571 आवेदन आए.
बिहार में वेबसाइट ही नहीं
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2005 से 2019 के बीच सिर्फ तीन करोड़ 2 लाख लोगों ने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी. यह आंकड़ा देश की कुल आबादी का 2.25 फीसदी है. इसका मतलब यह हुआ कि हिंदुस्तान की 97.75 फीसदी जनता ने आरटीआई के तहत जानकारी हासिल करने के लिए आवेदन ही नहीं किया.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि कई राज्यों के सूचना आयोग सही तरीके से काम ही नहीं कर रहे हैं. जहां एक ओर उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी रिपोर्ट पेश नहीं की है, तो दूसरी ओर बिहार सूचना आयोग की अब तक वेबसाइट ही नहीं बन पाई.
सूचना न देने पर लगा जुर्माना
पिछले 14 साल में आरटीआई के तहत आवेदन करने वाले कुछ लोगों को सरकारी विभाग और कार्यालयों ने जानकारी उपलब्ध कराने में आनाकानी भी की, जिसके चलते लोगों ने केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया. साल 2005-06 से 2018-19 के दौरान सूचना आयोग ने 15 हजार 578 मामलों का निपटारा भी किया. साथ ही आरटीआई के तहत जानकारी उपलब्ध नहीं कराने वाले लोगों पर जुर्माना लगाया.
सूचना आयोग ने सबसे ज्यादा जुर्माना आखिरी तीन साल में लगाया. इस दौरान उत्तराखंड राज्य सूचना आयोग ने 81 लाख 82 हजार रुपये और राजस्थान राज्य सूचना आयोग ने 49 लाख 20 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया.