समाजवाद के जनक महाराजा अग्रसेन जी की जयंति आज
महाराजा अग्रसेनजी सूर्य वंश में जन्मे। महाभारत के युद्ध में वे 15 वर्ष के थे। युद्ध हेतु सभी मित्र राजाओं को दूतों द्वारा निमंत्रण भेजे गए। पांडव दूत ने वृहत्सेन की महाराज पांडु से मित्रता को स्मृत कराते हुए राजा वल्लभसेन से अपनी सेना सहित युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था। महाभारत के इस युद्ध में महाराज वल्लभसेन अपने पुत्र अग्रसेन तथा सेना के साथ पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए युद्ध के 10वें दिन भीष्म पितामह के बाणों से बिंधकर वीरगति को प्राप्त हुए।
आत्मविस्मृति से पीडि़त समाज किस तरह अपनी जड़ों से कटने का खमियाजा भुगतता है उसका ज्वलंत उदाहरण हैं हम भारतीय। साल 1976 में 42वें संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ शब्द जोड़ते समय हम सच्चे समाजवाद के जनक महाराजा अग्रसेन जी को भूल गए और इस कल्याणकारी सिद्धांत के नाम पर विदेशी चिंतन पर आधारित ऐसी ‘सोशलिस्ट’ प्रणाली अपना ली जिसने देश में मुफ्तखोरी, गरीबी हटाओ के नाम पर वोटबैंक की राजनीति, उद्यमियों को अपमानित करने का काम किया।
फिल्मों में ‘सुखी लाला’ को चोर, शोषणकारी, गरीबों का खून पीने वाला, लंपट दिखा-दिखा कर व्यापारियों, उद्योगपतियों की छवि को दागदार किया गया। परिणाम हुआ कि देश में उद्योग, व्यापार और स्पर्धा हतोत्साहित हुई, प्रतिभा पलायन का दौर चला और गरीबी हटाओ का नारा केवल राजनीतिक नारा बन कर रह गया। अगर हमने महाराजा अग्रसेन के सच्चे समाजवाद को अपनाया होता तो निश्चित तौर पर आज हम विश्व के उन्नत राष्ट्रों की पंक्ति में खड़े होते।
महाराजा अग्रसेन ने पुन: वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य के पुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया। उनके शासन के मूल रूप से 3 आदर्श थे – लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र तथा जगत् की उन्नति मूल रूप से जिन 4 स्तंभों पर निर्भर होती हैं, वे हैं -आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व सामाजिक। अग्रसेनजी का जीवन-दर्शन चारों स्तंभों को दृढ़ करके उन्नत विश्व के नवनिर्माण का आधार बना।
महाराजा अग्रसेनजी सूर्य वंश में जन्मे। महाभारत के युद्ध में वे 15 वर्ष के थे। युद्ध हेतु सभी मित्र राजाओं को दूतों द्वारा निमंत्रण भेजे गए। पांडव दूत ने वृहत्सेन की महाराज पांडु से मित्रता को स्मृत कराते हुए राजा वल्लभसेन से अपनी सेना सहित युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था। महाभारत के इस युद्ध में महाराज वल्लभसेन अपने पुत्र अग्रसेन तथा सेना के साथ पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए युद्ध के 10वें दिन भीष्म पितामह के बाणों से बिंधकर वीरगति को प्राप्त हुए।
इसके पश्चात अग्रसेनजी ने ही शासन की बागडोर संभाली। उन्होंने बचपन से ही वेद, शास्त्र, अस्त्र-शस्त्र, राजनीति और अर्थनीति आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया। उनका विवाह नाग सम्राट कुमुद की पुत्री माधवी से हुआ। महाराजा अग्रसेन ने ही अग्रोहा राज्य की स्थापना की थी। उन्होंने कुशलतापूर्वक राज्य का संचालन करते हुए विस्तार किया तथा प्रजाहित में काम किए। वे धार्मिक प्रवृत्ति के पुरुष थे। धर्म में उनकी गहरी रुचि थी और वे साधना में विश्वास करते थे इसलिए उन्होंने अपने जीवन में कई बार कुलदेवी लक्ष्मीजी से यह वरदान प्राप्त किया कि जब तक उनके कुल में लक्ष्मीजी की उपासना होती रहेगी, तब तक अग्रकुल धन व वैभव से संपन्न रहेगा। उनके 18 पुत्र हुए जिनसे 18 गोत्र चले। गोत्रों के नाम गुरुओं के गोत्रों पर रखे गए।
महाराज अग्रसेन ने समाजवादी शासन व्यवस्था की स्थापना की जिसमें किसी भी व्यक्ति की कोई आर्थिक हानि होती तो वह राजा से ऋण ले सकता था। संपन्न होने पर वापस दे देता। इस सच्चे समाजवाद के जरिए महाराजा अग्रसेन ने समाज को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होने, परिश्रम करने और ईमानदारी से जीवन यापन करने का संदेश दिया। उनके जीवन का सबसे उत्कृष्ठ सिद्धांत रहा मितव्ययता अर्थात थोड़े में गुजर बसर करना और भविष्य के लिए संग्रहित करना। वैज्ञानिक आज जलवायु पविर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए उपभोक्तावादी संस्कृति को जिम्मेवार मानते हैं, क्योंकि यह संस्कृति प्रकृति के अधिकाधिक दोहन का समर्थन करती है। परंतु भारतीय सिद्धांत मितव्ययता का मार्ग दिखाता है और कहता है कि प्रकृति से उतना ही लो जितना कि जरूरी है।
प्रकृति का दोहन होना चाहिए न कि शोषण। गांधी जी भी कहा करते थे कि धरती अपनी सारी संतानों का पेट तो भर सकती है परंतु एक व्यक्ति के लालच को पूरा नहीं कर सकती। महाराजा अग्रसेन इसी सिद्धांत के उपासक थे और शायद उन्होंने वर्तमान की चुनौती को युगों पहले ही ताड़ लिया। चूकवश आज मितव्ययता को कृपणता (कंजूसी) समझ लिया जाता है परंतु ऐसा नहीं है क्योंकि यूं होता तो इस देश में चलने वाले आधे से अधिक सामाजिक कार्य महाराजा अग्रसेन जी के वंशजों के नाम पर न चलते होते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ठीक कहते हैं कि देश के विभिन्न नगरों में चलने वाले स्कूल, धर्मशालाएं, अस्पताल, सामाजिक कार्यों के न्यास अग्रबंधुओं के नाम से ही चलते हैं।
अगर अग्रवाल समाज कृपण होता तो यह संभव नहीं होता। अग्रसेन जी के शासनकाल में हर व्यक्ति भगवान के नाम पर अपने राज्य और धार्मिक कार्यों के लिए अपनी आय का 10वां भाग निकालता। राज्य का हर व्यक्ति अपनी आजीविका अन्य साधनों या किसी व्यापार द्वारा करता था, परंतु राष्ट्र पर विपत्ति आने के समय सब वर्ग के लोग हथियारों से युद्ध को तैयार हो जाते। समाज व्यवस्था उनके लिए कर्तव्य थी इसलिए कर्तव्य से कभी पलायन नहीं किया तो धर्म उनकी आत्मनिष्ठा बना इसलिए उसे कभी नकारा नहीं।
महाराज अग्रसेन ने बहुत सारे यज्ञ किए। एक बार यज्ञ में बलि के लिए लाए गए घोड़े को बहुत बेचैन और डरा हुआ पा उन्हें विचार आया कि ऐसी समृद्धि का क्या फायदा, जो मूक पशुओं के खून से सराबोर हो। उसी समय उन्होंने पशुबलि पर रोक लगा दी इसीलिए आज भी अग्रवंश हिंसा से दूर ही रहता है। उनकी दंडनीति और न्यायनीति आज प्रेरणा है। महाराजा अग्रसेनजी ने राजनीति का सुरक्षा कवच धर्मनीति को माना। राजनेता के पास शस्त्र है, शक्ति है, सत्ता है, सेना है फिर भी नैतिक बल के अभाव में जीवन-मूल्यों के योगक्षेम में वे असफल होते हैं इसीलिए उन्होंने धर्म को जीवन की सर्वोपरि प्राथमिकता के रूप में प्रतिष्ठापित किया। इसी से नए युग का निर्माण, नए युग का विकास वे कर सके।
महाराज अग्रसेन के राज की वैभवता से उनके पड़ोसी राजा बहुत जलते थे इसलिए वे बार-बार अग्रोहा राज्य पर आक्रमण करते रहते। बार-बार हार के बावजूद वे अग्रोहा पर आक्रमण करते रहे जिससे राज्य की जनता में तनाव बना ही रहता था। इन युद्धों के कारण अग्रसेनजी के प्रजा की भलाई के कामों में विघ्न पड़ता। लोग भी भयभीत और रोज-रोज की लड़ाई से त्रस्त हो गए थे। एक बार अग्रोहा राज्य में बड़ी भीषण आग लगी। उस अग्निकांड से हजारों लोग बेघर हो गए और जीविका की तलाश में विभिन्न प्रदेशों में जा बसे। उन्होंने अपनी पहचान नहीं छोड़ी, वे सब आज भी अग्रवाल ही कहलाना पसंद करते हैं। आज भी वे सब महाराज अग्रसेन द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण कर समाज की सेवा में लगे हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार देश के आयकर में अधिकतर भाग अग्रवंशियों का ही होता है। देश के उद्योगिक, वाणिज्यिक, व्यापारिक विकास और सकल घरेलू उत्पाद में अग्रवंशियों का अहम योगदान है।
प्रसन्नता की बात है कि देश में वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने महाराजा अग्रसेन जी के सच्चे समाजवादी सिद्धांत के मर्म को जाना है। तभी तो देश में मेक इन इंडिया, कौशल विकास, स्टार्ट अप, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं जिससे देश में उद्यमशीलता व व्यापार को प्रोत्साहन मिला है। जीएसटी से एक राष्ट्र एक कर की व्यवस्था कर उद्यमियों की दशकों पुरानी मांग को स्वीकार किया गया है। ईज आफ डूइंग में भारत ने अपनी रेंकिंग में भारत ने आशातीत सुधार किया है। जिस दिन देश का सर्वांगीण विकास होगा उसी दिन महाराजा अग्रसेन जी के सपना साकार होगा और आशा की जानी चाहिए कि वह दिन जल्द से जल्द आने वाला है।
एडवोकेट नवीन सिंगला
मो. 98142-50660
(स्तंभकार अग्रवाल समाज के प्रबुद्ध चिंतक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं)