अयोध्या पर बोले CJI- सुनवाई के लिए सिर्फ साढ़े दस दिन…वरना फैसला देने का चांस खत्म

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने गुरुवार को बड़ी टिप्पणी की. चीफ जस्टिस ने कहा कि अयोध्या केस में सुनवाई 18 अक्टूबर तक खत्म होना जरूरी है. अगर सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरी नहीं हुई तो फैसला देने का चांस खत्म हो जाएगा.

  • सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की सुनवाई
  • गुरुवार को रोजाना सुनवाई का 32वां दिन
  • चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने की बड़ी टिप्पणी

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने गुरुवार को बड़ी टिप्पणी की. चीफ जस्टिस ने कहा कि अयोध्या केस में सुनवाई 18 अक्टूबर तक खत्म होनी जरूरी है. अगर सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरी नहीं हुई तो फैसला देने का चांस खत्म हो जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को अयोध्या केस पर सुनवाई का 32वां दिन है. गुरुवार को जैसे ही मामले की सुनवाई शुरू हुई तो सबसे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले पर अपनी राय आगे रखी. चीफ जस्टिस ने एक बार फिर इस बात का जिक्र किया कि इस केस की सुनवाई 18 अक्टूबर तक खत्म होना जरूरी है. अगर हमने चार हफ्ते में फैसला दे दिया तो ये एक तरह का चमत्कार होगा.

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या जमीन विवाद को लेकर गुरुवार को 32वें दिन सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों से पूछा कि उन्हें दलीलें पूरी करने में और कितना समय लगेगा। मामले की सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि यह सब 18 अक्टूबर तक पूरा हो जाना चाहिए, क्योंकि उसके बाद एक दिन भी अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा। इससे पहले भी कोर्ट ने कहा था कि वह मामले की सुनवाई 18 अक्टूबर तक खत्म करना चाहता है, ताकि जजों को फैसला लिखने में 4 हफ्ते का वक्त मिले।

सीजेआई ने यह भी कहा कि 18 अक्टूबर के बाद दिवाली की एक हफ्ते की छुट्टियां भी हैं। वहीं, हिंदू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि जिरह में तीन से चार दिन लगेंगे। 28 सितंबर और एक अक्टूबर को हम रिज्वाइंडर दाखिल करेंगे।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अगर सुनवाई 18 अक्टूबर तक खत्म नहीं हुई तो फैसला देने का चांस खत्म हो जाएगा. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस बोले कि आज का दिन (गुरुवार) को मिलाकर हमारे पास सिर्फ सुनवाई खत्म करने के लिए साढ़े 10 दिन बचे हैं.

गुरुवार की सुनवाई के बड़े अपडेट्स:

  • अदालत में मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि ASI की रिपोर्ट में विवादित भूमि के नीचे खुदाई में करीब 50 खंभों पर टिका तीन स्तरीय निर्माण मिला है, लेकिन सभी मंजिलें अलग-अलग काल में बनी थीं. पहला शायद ढह गया या धंस गया तब दूसरा बना था. उन्होंने कहा कि ASI ने सिर्फ चार खंभे ही एक्सपोज़ किए थे.
  • इस पर जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या ये खंभे 50 मीटर वाली दीवार को सपोर्ट करने को थे? मीनाक्षी अरोड़ा ने जवाब दिया कि नहीं, खंभे दीवार से अलग थे. क्या कहीं ये ब्यौरा है कि वो चार खंभे अलग काल में और बाकी 46 खंभे अलग अलग काल में बने?
  • गुरुवार को अयोध्या सुनवाई का 32वां दिन है. ASI रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्षकारों की ओर से मीनाक्षी अरोड़ा ने अपनी दलील रखी थी. इसपर मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा कि ASI रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है. दरअसल, मीनाक्षी अरोड़ा ने बुधवार को कहा था कि ASI की रिपोर्ट पर कोई साइन नहीं थे.
  • अब गुरुवार को मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि ASI द्वारा वर्णित अधिकांश अवधि का मंदिर की अवधि से कोई लेना-देना नहीं है. (सुंगा, कुषाण, गुप्त आदि)
  • इस पर जस्टिस बोबड़े ने उनसे पूछा कि आप सीधे विक्रमादित्य पर बताइए. जस्टिस भूषण ने कहा कि गुप्त के बाद कोई विक्रमादित्य नहीं था. मीनाक्षी अरोड़ा ने इसपर जवाब दिया कि विक्रमादित्य का संबंध सुंगा से है, गुप्त से नहीं है. जवाब में जस्टिस भूषण ने कहा कि वह गुप्त के हैं, आप कृपया फिर चैक करें.
  • अपनी दलील में मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि ASI ने खुद स्वीकार किया था उसको परतों की पहचान करने में दिक्कत हुई थी. कुल 184 हड्डियां मिली थी लेकिन हाईकोर्ट ने सिर्फ 21.2% का ही अध्ययन किया था. उन्होंने 9 सभ्यताओं के आधार पर 9 समयकाल के बारे में बताया था.
  • मीनाक्षी ने कहा कि ASI ने जिन सभ्यताओं के बारे में बताया है उनका मंदिर से कोई लेना देना नहीं है. उन्होंने बताया कि कार्बन डेटिंग का इस्तेमाल यह पता करने के लिए किया जाता है कि और चीज़ कितनी पुरानी है. लेकिन ASI  हड्डियों का इस्तेमाल नहीं करता इसलिए इनकी कार्बन डेटिंग नहीं की गई.

हफ्ते में पांच दिन और एक घंटा एक्सट्रा हो रही सुनवाई

आपको बता दें कि इससे पहले भी चीफ जस्टिस रंजन गोगोई इस बात पर टिप्पणी कर चुके हैं कि सभी पक्षों को कोशिश करनी चाहिए कि 18 अक्टूबर तक अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हो सके. इसके बाद क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को एक महीने का वक्त इस मसले का फैसला लिखने के लिए चाहिए होगा.

चीफ जस्टिस के इसी बयान के बाद सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की सुनवाई का समय बढ़ा दिया था. सुप्रीम कोर्ट में अब रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद हफ्ते में पांच दिन सुना जा रहा है, साथ ही साथ इस मसले को अदालत रोजाना एक घंटा अधिक सुन रही है.

यानी सुनवाई अब शाम 5 बजे तक सुनवाई की जा रही है. अदालत ने इस मामले में ये भी कहा था कि अगर जरूरत पड़ती है तो अदालत शनिवार को भी सुनवाई कर सकती है.

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई जारी रही और ASI की ओर से दलीलें पेश की गईं. अभी तक निर्मोही अखाड़ा, हिंदू महासभा, रामलला, मुस्लिम पक्ष सभी अपनी दलीलें अदालत में पेश कर चुके हैं.

कोर्ट ने कहा- उम्मीद है 18 तक सुनवाई निपट जाएगी

सीजेआई ने मुस्लिम पक्षकारों से पूछा कि क्या वे दो दिनों में अपनी दलीलें पूरी कर लेंगे। इसके जबाव में पक्षकार राजीव धवन ने कहा कि वह इसे खत्म करने की कोशिश करेंगे। मुस्लिम पक्षकार मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि वह आज शाम तक अपनी दलीलें पूरी कर लेंगी। धवन ने कहा कि वे भी दो दिनों में रिज्वाइंडर दाखिल करने की कोशिश करेंगे। इसके बाद सीजेआई ने कहा- फिर हम उम्मीद कर सकते हैं कि सुनवाई 18 अक्टूबर तक निपट जाएगी।

राम चबूतरा जन्मस्थान नहीं- मुस्लिम पक्षकार

31वें दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वकील जफरयाब जिलानी ने कहा था कि हमें यह कतई स्वीकार नहीं कि राम चबूतरा भगवान राम का जन्मस्थान है। यह केवल हिंदुओं का विश्वास है। मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने दलील दी थी कि हिंदू पक्ष ने जन्मस्थान को लेकर पुरातात्विक सबूतों (एएसआई) को नकार दिया था। हिंदू पक्ष ने कहा था कि पुरातत्व विज्ञान, भौतिकी और रसायन विज्ञान की तरह नहीं है। यह एक सामाजिक विज्ञान है और इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

बाबरी मस्जिद में 1949 तक नमाज हुई : मुस्लिम पक्ष
धवन ने दलील दी थी कि 1528 में मस्जिद बनाई गई थी और 22 दिसंबर 1949 तक वहां लगातार नमाज हुई। वहां तब तक अंदर कोई मूर्ति नहीं थी। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जजों के फैसलों के हवाले से मुस्लिम पक्ष के कब्जे की बात कही। उन्होंने कहा था कि बाहरी अहाते पर ही उनका अधिकार था। दोनों पक्षकारों के पास 1885 से पुराने राजस्व रिकॉर्ड भी नहीं हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने के लिए कहा था
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान को मिले। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

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