तांबे की सतह पर घंटों नहीं मिनटों में खत्‍म हो जाता है कोरोना वायरस

वैज्ञानिकों ने पिछले महीने बताया था कि SARS-CoV-2 प्‍लास्टिक और मेटल पर कुछ दिन तक जिंदा रह सकता है, लेकिन तांबे की सतह (Copper Surface) पर कुछ घंटों में खत्‍म हो जाता है. अब शोध में पता चला है कि तांबे की सतह पर कोरोना वायरस कुछ मिनट में ही खत्‍म हो जाता है.

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कोरोना वायरस के अलग-अलग सतहों पर जिंदा रहने के समय को लेकर दुनियाभर में लगातार शोध चल रहे हैं. शोधकर्ताओं ने पिछले महीने दावा किया था कि न्‍यू नोवल कोरोना वायरस (Coronavirus) कांच, प्‍लास्टिक और स्‍टील पर कुछ दिन तक जिंदा रह सकते है. वहीं, तांबे (Copper) की सतह पर कुछ ही घंटों में खत्‍म हो जाता है. ये बात ब्रिटेन में माइक्रोबायोलॉजी (Microbiology) के रिसर्चर कीविल (Keevil) को कुछ ठीक नहीं लगी. वह ये सोच रहे थे कि कोरोना वायरस तांबे की सतह पर कई घंटे तक कैसे जिंदा रह सकता है.

कीविल दो दशक से ज्‍यादा समय से तांबे के एंटी-माइक्रोबियल (Antimicrobial) प्रभावों का अध्‍ययन कर रहे हैं. उन्‍होंने अपनी प्रयोगशाला में मिडिल ईस्‍ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) और स्‍वाइन फ्लू (H1N1) के वायरस पर तांबे के असर का परीक्षण किया है. हर बार तांबे के संपर्क में आने के कुछ ही मिनटों में वायरस खत्‍म हो गया. वह कहते हैं कि तांबे के संपर्क में आने के कुछ ही मिनट में वायरस की धज्जियां उड गईं.

तांबे की सतह बिना साफ किए भी खत्‍म करती है वायरस
कीविल ने 2015 में COVID-19 वायरस के परिवार के ही कोरोना वायरस 229E पर ध्‍यान दिया. ये वायरस संक्रमित व्‍यक्ति में जुकाम और निमोनिया की शिकायत होती है. कीविल ने जब इस कोरोना वायरस का तांबे की सतह से संपर्क कराया तो यह भी मिनटों में खत्‍म हो गया, जबकि ये स्‍टेनलेस स्‍टील और कांच पर 5 दिन तक जिंदा रहा.

एडिनबर्ग में रॉयल ऑब्‍जर्वेटरी के ईस्‍ट टॉवर में तांबे का इस्‍तेमाल किया गया है. इसमें हरा नजर आ रहा हिस्‍सा भी तांबे का है, जिसे 1894 में लगाया गया था. ये हिस्‍सा आज भी वायरस के खिलाफ काम करता है.

उनके मुताबिक, ये दुर्भाग्‍य ही है कि हमने साफ दिखने के कारण साार्वजनिक और सबसे ज्‍यादा टच की जाने वाली जगह पर स्‍टेनलेस स्‍टील को ही तव्‍वजो दी. लेकिन, यहां सवाल ये है कि निश्चित तौर पर स्‍टील बाकी धातुओं के मुकाबले साफ दिखता है, लेकिन हम उसे कितनी बार स्‍वच्‍छ करते हैं. ऐसे में ये संक्रमण फैला सकता है. वहीं, तांबे की सतह को बार-बार साफ करने की जरूरत नहीं होती है. ये बिना साफ किए भी अपने संपर्क में आने वाले वायरस या बैक्टिरिया को खत्‍म कर देता है.

‘तांबे से प्राचीन काल के इलाज पर आधुनिक मुहर है शोध’
मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना में माइक्रोबायोलॉजी और इम्‍यूनोलॉली के प्रोफेसर माइकल जी. श्मिट कहते हैं कि कीविल का काम तांबे के जरिये प्राचीन काल के इलाज पर आधुनिक शोध की मुहर है. वह कहते हैं कि लोग जर्म्‍स या वायरस को जानने से बहुत ही तांबे की कई बीमारियों के इलाज करने की क्षमता को पहचान गए थे. वह कहते हैं कि तांबा मानव को प्रकृति का वरदान है.

वह बताते हैं कि कीविल की टीम ने न्‍यूयॉर्क शहर के ग्रैंड सेंट्रल टर्मिनल की पुरानी रेलिंग का परीक्षण किया था. इस रेलिंग का कॉपर आज भी उसी तरह काम कर रहा है, जैसे 100 साल पहले करता था. तांबे का एंटी-माइक्रोबियल प्रभाव कभी खत्‍म नहीं होता है. तांबे के बारे में प्राचीन काल के लोग जो कुछ जानते थे, आज के वैज्ञानिक और संस्‍थाएं सिर्फ उनकी पुष्टि कर रहे हैं. पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने 400 कॉपर सरफेस को एंटी-माइक्रोबियल सतह के तौर पर रजिस्‍टर किया है.

शोध: 58 फीसदी लोगों को नहीं हुआ अस्‍पताल में संक्रमण
प्रोफेसर माइकल का कहना है कि सोने (Gold) और चांदी (Silver) जैसी भारी धातुएं एंटी-बैक्टिरियल होती हैं, लेकिन तांबा वायरस को भी खत्‍म कर सकता है. कीविल बताते हैं कि वायरस या बैक्टिरिया तांबे की सतह पर आने के कुछ ही मिनट में खत्‍म हो जाते हैं. ये ठीक वैसा ही है जैसे कोई बाहरी चीज नजर आते ही मिसाइल उस पर हमला कर दे और कुछ ही देर में उसे नष्‍ट कर दे. डॉ. माइकल ने शोध किया कि तांबे को अस्‍पताल (Hospitals) में उस जगह लगाने से संक्रमण पर क्‍या असर होगा, जिसे लोग बार-बार छूते हों.

मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना में माइक्रोबायोलॉजी और इम्‍यूनोलॉली के प्रोफेसर माइकल जी. श्मिट ने अस्‍पतालों में बार-बार छुई जाने वाली जगहों पर कॉपर का इस्‍तेमाल कर संक्रमण पर असर का शोध किया.

सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल (CDC) के मुताबिक हर संक्रमित के इलाज पर करीब 50 हजार डॉलर खर्च होता है. डॉ. माइकल के शोध को रक्षा विभाग (DOD) ने स्‍पॉन्‍सर किया. डॉ. माइकल ने 3 अस्‍पतालों की स्‍टेयर्स की रेलिंग के साथ ही ट्रे टेबल्‍स और कुर्सियों के हैंडल्‍स पर तांबे की परत का इस्‍तेमाल किया. करीब 43 महीने चले शोध में पता चला कि रुटीन इंफेक्‍शन प्रोटोकॉल का पालन करने वाले अस्‍पतालों के मुकाबले इन तीनों अस्‍पतालों में लोगों को संक्रमण 58 फीसदी कम हुआ.

सार्वजनिक जगहों पर तांबे के इस्‍तेमाल से इंफेक्‍शन का खतरा कम
जीका वायरस आने के बाद रक्षा विभाग का ध्‍यान उस पर चला गया तो डॉ. माइकल का शोध रुक गया. इसके बाद डॉ. माइकल ने एक मैन्‍युफैक्‍चरर के साथ काम करना शुरू किया, जो अस्‍पतालों के लिए बेड बनाता था. उन्‍होंने दो साल के अध्‍ययन के बाद अपनी रिपोर्ट जारी की. इसमें बताया गया कि जिन बेड में कॉपर की रेलिंग का इस्‍तेमाल किया गया था, उन पर मरीजों को संक्रमण के खतरे की दर 9 फीसदी रही, जबकि प्‍लास्टिक की रेलिंग वालों को इसका जोखिम 90 फीसदी रहा.

एक अन्‍य अध्‍ययन से पता चला कि अगर आप किसी अस्‍पताल में या सार्वजनिक जगह पर तांबे का ज्‍यादा से ज्‍यादा इस्‍तेमाल करते हैं तो वहां संक्रमण फैलने की आशंका बहुत कम हो जाती है क्‍योंकि ये हर समय अपने काम में लगी रहती है. ऐसा नहीं है कि तांबे की सतह का इस्‍तेमाल करने के बाद आपको सफाई की जरूरत नहीं है, लेकिन आने वहां कुछ ऐसा लगा दिया है जो हर वक्‍त वायरस और बैक्टिरिया को खत्‍म कर रहा है. डॉ. माइकल और कीविल कहते हैं कि इन तमाम शोध के बाद भी कोविड-19 से बचाव के लिए लोगों को बार-बार साबुन से अपने हाथ धोते रहना है.

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