बठिंडा. बठिंडा के शहीद भाई मनी सिंह सरकारी अस्पताल के ब्लड बैंक में थेलेसीमिया पीड़ित मरीजों को संक्रमित एचआईवी पोजटिव रक्त चढ़ाने के मामले में पंजाब ड्रग कंट्रोल आथार्टी ने बड़ा एक्शन लिया है। इसमें सेहत विभाग को पिछले माह जहां ड्रग आथार्टी ने 7 दिसंबर तक अपना जबाव दाखिल करने के लिए कहा था वही सिविल अस्पताल प्रबंधन इस मामले में लगातार लापरवाही बरत रहा था व मामले में संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया। इसके बाद ड्रग कंट्रोल अथार्टी ने ब्लड बैंक बठिंडा का लाइसेंस आगामी 14 दिनों तक रद्द कर दिया है वही अगर मिली खामियों में सुधार नहीं किया जाता है तो यह समय सीमा और बढ़ सकती है। फिलहाल इस फैसले के बाद अब आगामी 12 जनवरी तक सिविल अस्पताल ब्लड बैंक में न तो रक्त दान किया जा सकता है और न ही किसी तरह की गतिविधी की जा सकेगी। इसमें एक राहत यह दी गई है कि ब्लड बैंक में वर्तमान समय में जो रक्त स्टोर है उसे जारी किया जा सकेगा। सिविल अस्पताल के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि रक्तदानियों के शहर बठिंडा में सरकारी ब्लड बैक को बंद किया गया है। फिलहाल इन 14 दिनों में सर्वाधिक परेशानी अस्पताल में उपचार करवाने वाले 40 से अधिक थेलेसीमिया पीड़ित बच्चों व गर्भवती महिलाओं के साथ एमरजेंसी में आने वाले मरीजों को उठानी पड़ेगी। वर्तमान में सिविल अस्पताल ब्लड बैंक में करीब 40 से 50 यूनिट रक्तदान किया जाता है। फिलहाल उक्त डूनेशन बंद होने से मरीजों को अब प्राइवेट अस्पतालों की तरफ रुख करना पड़ेगा व वहां से महंगा खून खरीदना पड़ेगा। फिलहाल इस बाबत सिविल अस्पताल के एसएमओ डा. मनजिंदर सिंह ने पुष्टी करते कहा कि ड्रग कंट्रोल अथार्टी ने 29 दिसंबर को पत्र जारी कर उन्हें ब्लड बैंक का लाइसेंस 14 दिनों के लिए सस्पेंड करने की सूचना दी है। इस दौरान स्टोर ब्लड तो जारी किया जा सकेगा लेकिन नया रक्त हासिल नहीं हो सकेगा। वर्तमान में सिविल अस्पताल में कुछ यूनिट को समाप्त हो चुके हैं लेकिन कुछ यूनिट भी काफी कम मात्रा में है क्योंकि विवाद के बाद रक्तदान में कमी आने के साथ कोराना वाय़रस के कारण लोग रक्तदान करने से गुरेज कर रहे थे।
गौरतलब है कि सिविल अस्पताल ब्लड बैंक में पिछले चार माह से संक्रमित रक्त चढ़ाने को लेकर जांच चल रही थी इसमें स्टेट ड्रग कंट्रोल आथार्टी ने ब्लड बैंक में तैनात स्टाफ, उनकी काबलियत, अनुभव, रुटीन जांच सहित कई लापरवाहियों को लेकर राज्य सेहत विभाग के मार्फत सिविल अस्पताल प्रबंधन को नोटिस जारी किया था। इसमें सात दिनों में जबाव तलब करने की हिदायत दी थी लेकिन सिविल अस्पतालव प्रबंधन लगातार हो रही लापरवाही व खामियों को छिपाने के लिए ब्लड बैंक की जानकारी देने से कतराता रहा वही अथार्टी से जबाव देने के लिए समय मांग रहा था। फिलहाल सिविल अस्पताल की लेटलतीफी व लापरवाही का खामियाजा जहां शहरवासियों को भुगतना पड़ रहा है वही एमरजेंसी में आने वाले मरीजों, गर्भवती महिलाओं, आपरेशन करवाने वाले मरीजों के साथ थेलेसीमिया पीड़ित बच्चों को परेशानी से दो चार होना पड़ेगा। समाज सेवी व प्रमुख रक्तदानी बिरू बांसल का कहना है कि सेहत विभाग की लापरवाही व लगातार की जा रही गलतियों के कारण जहां बठिंडा को बदनाम होना पड़ा वही इसका सीधा असर रक्तदानियों पर भी पड़ रहा है। अस्पताल प्रबंधन समय रहते खामियों में सुधार कर लेता व गलतियों को दोहराने से बचता तो यह स्थिति पैदा नहीं होती।
इस मामले में विजिलेंस विभागने भी जांच शुरू कर रखी है। सिविल अस्पताल की तरफ से गठित की गई जांच टीम के एक सदस्य व दो डाक्टरों की टीम ने विजिलेंस अधिकारियों के सामने पेश होकर पूरे मामले की जानकारी दे चुके हैं व मामले में अब तक सेहत विभाग की तरफ से की गई कारर्वाई व जांच के विभिन्न तथ्यों के बारे में जानकारी दे चुके हैं। इस मामले में राज्य सेहत विभाग ने विभागीय व सरकारी एजेंसी के मार्फत पूरे मामले की जांच करवाने की हिदायत दी थी। वही राज्य के बाल सुरक्षा कमिशन की तरफ से भी सरकार को पत्र लिखकर मामले की गहराई से जांच करवाने व इसमें शामिल दोषियों के खिलाफ बनती कानूनी कारर्वाई करने के निर्देश दिए थे व 17 दिसंबर तक पूरी जांच रिपोर्ट आयोग को सौंपने के लिए कहा था। आयोग की हिदायत के अनुसार सिविल अस्पताल प्रबंधन व सरकार की तरफ से मामले की जांच आयोग को 17 दिसंबर को सौंपनी थी लेकिन इसमें 14 दिसंबर को जांच टीम का गठन किया गया था जिसमें संभावना जताई जा रही है कि आयोग के पास पूरी रिपोर्ट 26 दिसंबर तक ही जमा हो सकेगी लेकिन यह भी संतोषजनक नहीं रहा। इससे पहले ड्रग कंट्रोल आथार्टी की तरफ से ब्लड़ बैक स्टाफ, उनके अनुभव व तैनाती को लेकर 7 दिसंबर को मांगी रिपोर्ट भी पेश नहीं हो सकी थी व इसमें भी सेहत विभाग ने आथार्टी से सात से 10 दिन का समय और देने के लिए कहा था। फिलहाल सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक में पूर्व में तैनात रहे अधिकारियों व कर्मियों की लापरवाही को लेकर सेहत विभाग के अधिकारियों की तरफ से जांच को धीमी गति से चलाने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं व बाल सुरक्षा आयोग भी इसमें कड़ी टिप्पणी कर सेहत विभाग को फटकार लगा चुका है लेकिन जमीनी स्तर पर इस फटकार का विभाग के अफसरों पर कोई असर होता नहीं दिखाई दे रहा है।
कर्मचारियों द्वारा एक महिला और चार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआईवी संक्रमित ब्लड इश्यू करने का तीन अक्टूबर 2020 से लेकर सात नवंबर 2020 के मध्य खुलासा होने के बाद अब जहां विजिलेंस ने मामले की जांच आगे बढ़ाई है वही पिछले पांच साल में ब्लड बैंक में कितने लोगों को रक्त चढ़ाया गया व किन लोगों ने रक्त दान किया की विस्तृत रिपोर्ट भी पांच सदस्यों की टीम बना रही है। उक्त टीम को हिदायत दी गई है कि रक्तदान करने व रक्त लेने वाले लोगों लोगों के ब्लड सैंपल लेकर एचआईवी टेस्ट करने के साथ बैंक में बरती गई किसी तरह की अनियमियतता की विस्तर से जांच करने की हिदायत है। इसमें जांच की जरुरत इसलिए भी पड़ी कि ब्लड बैंक कर्मचारियों द्वारा उक्त संक्रमित ब्लड मरीजों को जानबूझकर इश्यू किया गया या फिर यह लापरवाही के चलते हुआ, इन सब सवालों के जवाब विजिलेंस के साथ पांच सदस्यों की टीम करेगी। सेहत विभाग के सेक्रेटरी हेल्थ हुस्न लाल द्वारा उक्त मामले की जांच विजिलेंस से करवाए जाने के एलान के बाद अब विभाग इसकी बारीकी से जांच करेगा जिसके बाद पूरे मामले के पटाक्षेप होने की उम्मीद बढ़ गई है। विजिलेंस जांच मामले में एचआईवी किट मुद्दे को शामिल किया गया है जिसमें अस्पताल कमेटी की ओर से अपनी आरंभिक जांच के दौरान शक जताया गया था कि लॉकडाउन के दौरान ब्लड बैंक कर्मचारियों द्वारा ब्लड इश्यू करते समय एचआईवी किट का प्रयोग ही नहीं किया गया। वही कीटों को बाहर किसी व्यक्ति व संस्था को देने के आरोप भी लगाए गए। इसमें पहले चरण की जांच में तत्कालीन ब्लड बैंक कर्मियों की तरफ से 600 टेस्ट कीटों को बाहर से मंगवाने का खुलासा हुआ था। मामले की जांच कर रहे विजिलेंस विभाग ने सिविल अस्पताल प्रबंधन से ब्लड बैंक का पूरा रिकार्ड तलब किया है। वहीं अब तक की जांच रिपोर्ट भी विभाग को जमा करवाने के लिए कहा गया है। इस जांच में राज्य बाल सुरक्षा आयोग की तरफ से सेहत विभाग की तरफ से की गई जांच में उठाए सवालों की बारीकी से तलाश की जाएगी। अस्पताल टीम की जांच में पूर्व बीटीओ बलदेव सिंह रोमाणा की तरफ से कथित तौर पर 600 एचआईवी टेस्ट किट जोकि बाहर से मंगवाकर बैंक के स्टाक रूम में रखी गई थी, उसकी भी जांच विजिलेंस करेगी। इस जांच में यह पता लगाया जाएगा कि उक्त किट कहां से लाई गई थीं व सेहत विभाग के पास जो स्टाक था, वह कहां गया क्योंकि अभी तक इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिल पाया है। इस जांच के बाद ब्लड बैंक में चल रहे बड़े घपले की आशंका से भी पर्दा पूरी तरह हट जाएगा। फिलहाल विजिलेंस विभाग को ब्लड बैंक बठिंडा में पिछले पांच साल के रिकार्ड को देखने व इसमें किसी तरह की अनियमितता की जांच के लिए भी कहा है। सिविल अस्पताल प्रबंधन पर भी इस मामले को दबाने व असली आरोपियों को बचाने के आरोप थैलेसीमिया एसोसिएशन व अन्य एनजीओ लगाते रहे हैं।
ढाई माह में थैलेसीमिया पीड़ित चार बच्चों सहित पांच लोगों को चढ़ाया गया था एचआईवी संक्रमित खून
तीन अक्टूबर 2020 से लेकर अब तक करीब ढाई माह में बठिंडा के सिविल अस्पताल स्थित ब्लड बैंक से जारी हुए संक्रमित खून से पांच लोग एचआईवी संक्रमित हो चुके हैं। इसमें सबसे चिंताजनक व अमानवीय पहलू यह है कि एचआईवी पॉजिटिव रक्त चार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को भी चढ़ाया गया है। इस मामले के सामने आने के बाद स्टेट कमेटी के साथ एड्स कंट्रोल सोसायटी के पदाधिकारियों द्वारा भी जांच की गई थी। इसमें अक्टूबर माह में ब्लड बैंक में तैनात तीन कर्मियों को निलंबित कर दिया गया था व उनके खिलाफ पुलिस के पास आपराधिक मामला दर्ज करने की सिफारिश की गई थी। इसमें एक रेगुलर कर्मी बलदेव सिंह रोमाणा को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वहीं हाल ही में बाल आयोग की सिफारिश पर बठिंडा पुलिस ने महिला लैब टेक्नीशियन रिचा गोयल को भी मामले में आरोपी बनाया है, लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई है। वहीं पूर्व बीटीओ करिश्मा गोयल पर फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की गई है। वहीं 7 नवंबर, 2020 को सेहत विभाग सेहत मंत्री के आदेश पर चार लैब टेक्नीशियनों को इसी केस में डिसमिस किया जा चुका है।