पड़ सकती है कोरोना के ‘नेचर’ की मार, भारत में अचानक बढ़ सकती है वायरस की रफ्तार

कोरोना जिसका वैज्ञानिक नाम कोविड-19 दिया गया है उसकी शुरुआत पिछले साल दिसंबर में चीन के वुहान शहर से हुई. कोविड-19, कोरोना वायरस परिवार का नया सदस्य है जो जानवरों से उछलकर आदमी में घुस गया.

0 283
  • सरकारी स्वास्थ्य नियामक संस्था आईसीएमआर ने बढ़ाया टेस्टिंग का दायरा
  • दुनिया में 2 लाख से ज्यादा लोग कोरोना की चपेट में, मौत का आंकड़ा 8000 पार

नई दिल्ली। भारत में निमोनिया के लिए जिम्मेदार नया वायरस (पैथजोन) कोरोना अब तक 150 से ज्यादा लोगों को चपेट में ले चुका है. इंडिया टुडे की डाटा टीम डीआईयू ने बाकी देशों में बीमारी के बढ़ने की रफ्तार और टेस्टिंग के बाद नए मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद पाया कि भारत सहित दक्षिण एशिया के कई देशों में यह बीमारी और बढ़ सकती है. सरकार ने इस बीमारी की टेस्टिंग के लिए निजी प्रयोगशालाओं को मुफ्त में जांच करने के लिए कहा है. अब 500 की जगह रोजाना 8000 लोगों की टेस्टिंग करने की तैयारी चल रही है.

कोरोना वायरस ने भारत में 33 दिनों में पांच लोगों को संक्रमित किया लेकिन उसके बाद अगले 15 दिनों में 148 लोगों को चपेट में ले लिया है. ठीक इसी तरह पाकिस्तान में छह दिन में कोरोना वायरस के पांच मामले आए लेकिन अगले 11 दिनों के भीतर 236 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं. अब जरा चीन के अलावा उन देशों में इस बीमारी की रफ्तार पर गौर करिए जहां इसका कहर हजारों लोगों को चपटे में ले चुका है.

भारत और पड़ोसी देशों में कोरोना की रफ्तार

दक्षिण कोरिया में जहां कोरोना वायरस ने 29 दिन के भीतर सौ लोगों को संक्रमित कर दिया तो वहीं अगले महज 16 दिन में इस बीमारी ने सात हजार लोगों को चपेट में ले लिया. कुछ इसी तरह से इस बीमारी ने इटली और बाकी देशों में भी पांव पसारे हैं.

लेकिन सवाल यह है कि बाकी देशों के मुकाबले भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों में मरीजों की संख्या कम क्यों दिख रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि बीमारी की जांच किस स्तर पर हो रही है. भारत में यह माना गया कि ज्यादातर विदेश से आने वाले लोग इस बीमारी के वाहक हैं. इसलिए इस बीमारी की स्क्रीनिंग या जांच केवल उन्ही लोगों की हुई जो हाल फिलहाल में विदेश यात्रा से लौटे थे. लेकिन उस जांच के बावूजद यह बीमारी उन लोगों में भी फैल गई जो कभी विदेश नहीं गए. स्वास्थ्य अधिकारी इसे दूसरे चरण का संक्रमण मानते हैं. लेकिन अब अंदेशा है कि यह बीमारी समुदायिक स्तर पर संक्रमण यानी तीसरे चरण में प्रवेश करने वाली है. आईसीएमआर ने इस आशंका के मद्देनजर जांच का दायरा बढ़ा दिया है.

मरीजों के बढ़ने की रफ्तार

समय के साथ कैसे बढ़ा कोरोना वायरस

कोरोना जिसका वैज्ञानिक नाम कोविड-19 दिया गया है उसकी शुरुआत पिछले साल दिसंबर में चीन के वुहान शहर से हुई. कोविड-19, कोरोना वायरस परिवार का नया सदस्य है जो जानवरों से उछलकर आदमी में घुस गया. जांस हॉपकिंस यूनिवर्सिटी पूरी दुनिया में इस बीमारी के आंकड़े इकट्ठा कर रही है. उस आंकड़े से साफ है कि औसतन दस से पंद्रह दिन की सुस्त चाल के बाद यह बीमारी आग की तरह फैलती है.

हालांकि अगर पहले से जरूरी ऐहतियाती कदम उठाए जाते हैं तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन दक्षिण एशिया में सरकारें काम करती हैं या स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं की जो हालत है उसमें इसके फैलाव को रोकना बड़ी चुनौती है.

ग्राफ बता रहे हैं कि किस तरह शुरुआती दिनों में की गई लापरवाही इटली, दक्षिण कोरिया और ईरान में तबाही बनकर आ गई है. तकरीबन ये सभी देश शुरुआत में चुक गए और अब आपाधापी में रोकने के लिए हांथपांव मार रहे हैं.

एक्सपर्ट का मानते हैं कि यह बीमारी खराब स्वास्थ्य सेवाओं और खराब मैनेजमेंट की वजह से भी फैल रही है. टी जैकब जॉन जो कि वेल्लोर के मेडिकल कॉलेज में क्लनिकल विरोलॉजी (विषाणु विज्ञान) के रिटायर प्रोफेसर हैं, उनका कहना है कि यह वायरस सभी जगह फैल जाएगा. इससे जुड़ी मृत्युदर और फैलाव स्वास्थ्य सेवाओं के स्टैंडर्ड पर निर्भर करेगा”.

मृत्युदर

जॉन जो कि भारत सरकार के एडवाइजरी ग्रुप का नेतृत्व कर चुके हैं और पिछले कई संक्रण से जुड़ी बीमारियों से लड़ने वाली टीम के सदस्य रहे हैं. उनका कहना है कि “हमारी स्वास्थ्य सेवाएं विकसित देशों के स्तर की नहीं है. ऐसे में हो सकता है कि हमारे यहां मृत्यु दर ज्यादा हो’’.

फिलहाल भारत में कोरोना वायसर से जुड़ी मृत्यु दर 2.10 फीसदी है. यह दर कुल मरीजों की संख्या और मृत्यु का अनुपात होता है. भारत में यह दर विश्व स्वास्थ्य संगठन के हाल के 3.4 के अनुपात से कम है. मृत्यु दर हमेशा सही तस्वीर नहीं बताती. जैसे जितनी जांच बढ़ेगी उतनी मरीजों की संख्या सामने आएगी. जिससे यह अनुपात भी कम दिखेगा.

दुनिया में बढ़ रहा कोरोना का कहर

जॉन ने H1N1 वायरस से जुड़े अपने अनुभव के आधार पर कोरोना वायरस की गंभीरता और असर को समझाने की कोशिश की है. उनका कहना है कि देश की कुल 1.3 अरब आबादी में 80 करोड़ युवा है. अगर दस फीसदी युवा संक्रमित होते हैं तो यह संख्या आठ करोड़ होगी. और इनमें से दस फीसदी जो ज्यादा संवेदनशील है (खासकर बुजुर्ग और डायबटिज जैसे बिमारियों से ग्रस्त लोग जिनकी संख्या करीब 80 लाख है) वे गंभीर रूप से संक्रमित होंगे. अब अगर मृत्युदर एक फीसदी हुई तो महज एक साल में 80 हजार लोग और दो फीसदी होने पर एक लाख साठ हजार लोग मर सकते हैं.

भारत में ज्यादातर कोरोना के मामले विदेश से आयातित हैं लेकिन इन लोगों ने देश के कई लोगों को संक्रमित कर दिया है. अब सवाल है कि जो देशी लोग संक्रमित तो हैं लेकिन जांच से बाहर उसके खतरे को गंभीरता से लेना होगा क्योंकि इस बीमारी का अभी कोई इलाज नहीं है लेकिन कुछ ऐहतियाती उपाय आपको संक्रण से दूर रख सकते हैं.

Leave A Reply

Your email address will not be published.