- मुंबई में आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई पर बवाल
- लगातार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोग
- बॉम्बे हाईकोर्ट-NGT से मिल चुकी है मंजूरी
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की देवेंद्र फडणवीस सरकार के सामने नया मुद्दा खड़ा हो गया है. मुंबई की आरे कालोनी में मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए पेड़ों को काटा जा रहा है, लेकिन इस मुद्दे पर जोरदार विरोध हो रहा है. करीब 2500 से अधिक पेड़ों का काटा जाना राज्य सरकार के लिए मुसीबत बन गया है, हालांकि ये भी सच है कि इस मसले पर बॉम्बे हाईकोर्ट, NGT की ओर से ग्रीन सिग्नल पहले ही मिल चुका था.
लेकिन इसके बाद वन विभाग ने आरे कॉलोनी इलाके को जंगल मानने से इनकार किया और इसके बाद NGT ने उस इलाके में केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र वाली जमीन को छोड़कर राज्य की भूमि पर निर्माण को ‘ग्रीन सिग्नल’ दे दिया.
चुनावी मुद्दा ना बन जाए आरे!
महाराष्ट्र में इस बार चुनाव हैं और इस बीच इस विवाद ने राष्ट्रीय राजनीति में भी जगह बना ली है. भाजपा के साथ गठबंधन में होने के बावजूद शिवसेना ने आरे में पेड़ कटाई का विरोध किया है और ऐसा करने वालों पर एक्शन लेने की बात की है. आदित्य ठाकरे लगातार सोशल मीडिया पर मोर्चा खोले हुए है, ऐसे में आने वाले दिनों में ये मसला चुनावी दंगल का रूप ले सकता है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मुंबई के आरे में मेट्रो कार शेड बनना है. इसके लिए आरे के जंगलों के करीब 2,700 पेड़ काटे जाने है जिसका विरोध हो रहा है. मेट्रो के लिए पेड़ों की कटाई का मुंबई की सड़कों पर उतरकर लोग विरोध दर्ज करा रहे हैं. इस मामले में ‘सेव आरे’ प्रोटेस्ट चल रहा है, सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाए जा रहे हैं.
बॉम्बे हाईकोर्ट से मिली थी इजाजत
मुंबई में मेट्रो प्रोजेक्ट-3 के लिए इन पेड़ों को काटा जा रहा था, लेकिन कई प्रदर्शनकारी, सेलेब्रिटी इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. आरे के इन पेड़ों को मुंबई का फेफड़ा कहा जाता है, कटाई के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं. जिसमें इन्हें जंगल घोषित किए जाने की अपील की, ताकि पेड़ ना काटे जा सकें. हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन्हें जंगल नहीं माना और तुरंत पेड़ों की कटाई का काम शुरू हो गया.
NGT ने भी दी थी मंजूरी!
बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका से पहले ही पर्यावरण संरक्षण संगठन वनशक्ति और आरे बचाओ ग्रुप के बैनर तले इस मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सामने उठाया गया, जिसके बाद NGT की पुणे बेंच ने दिसंबर 2016 में निर्माण न कराने का आदेश दिया था.