बड़ी कामयाबी: इस पालतू जानवर में मिली कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी
एक नई स्टडी (study) के नतीजे बताते हैं कि लामा (llama) नामक पशु के खून में पाई जाने वाली एंटीबॉडी कोरोना वायरस (coronavirus antibody) पर काफी असरदार है. ये एंटीबॉडी वायरस से जुड़कर उसे स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने से रोक पाती है.
दुनियाभर के देश कोरोना संक्रमण (corona infection) से लड़ रहे हैं. इस बीच टीके (vaccine) या कारगर दवा की खोज भी चल रही है. इसी दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास (University of Texas) की एक स्टडी पॉजिटिव खबर दे रही है. इसके मुताबिक लामा (Llama) के शरीर से निकलने वाली 2 खास तरह की एंटीबॉडीज (antibodies ) को मिलाने पर तैयार नई एंटीबॉडी वायरस को इंसानी कोशिकाओं से जुड़ने से रोक देती है. ये स्टडी 5 मई को वैज्ञानिक जर्नल Cell में छपी है.
क्या दिखा स्टडी में
बता दें कि कोरोना वायरस असल में स्पाइक यानी नुकीली संरचना वाला होता है जो हमारे शरीर की कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीन से काफी अच्छे से जुड़ पाता है. दूसरे वायरसों की बजाए कोरोना की यह कांटेदार संरचना ही उसे हमारे लिए ज्यादा घातक बना चुकी है. इसी लाइन को लेकर दुनिया के तमाम वैज्ञानिक जुटे हुए हैं कैसे वायरस और शरीर में उपस्थित कोशिका के इस बॉन्ड को कमजोर किया जाए. इसी सिलसिले में ऑस्टिन की टेक्सास यूनिवर्सिटी ने देखा कि लामा नामक पशु की एंटीबॉडी वायरस से खुद जुड़कर उसे कोशिकाओं से जुड़ने से रोक रही है. इस बारे में शोध में शामिल एक साइंटिस्ट और मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट जैसन मैकलेनन (Jason McLellan) का मानना है कि ये ऐसी कुछ ही एंटीबॉडीज में शामिल हैं जो SARS-CoV-2 के असर को न्यूट्रलाइज करता दिख रहा है.
ये ऊंट और भेड़ के बीच की प्रजाति है, जो दक्षिण अमेरिका में पाई जाती है
विंटर नाम के बिल्जेयन लामा में इसकी खोज हुई
क्या है लामा पशु
ये ऊंट और भेड़ के बीच की प्रजाति है, जो दक्षिण अमेरिका में पाई जाती है. आमतौर पर ये ऊन, मांस और सामान ढोने के काम आते हैं. इनमें कई खासियतें हैं, जैसे बेहद मिलनसार लामा का ऊन काफी अच्छी क्वालिटी का माना जाता है क्योंकि इनमें लैनोनिन नहीं होता है. बता दें कि लैनोनिन एक तरह की वैक्स है जो ऊन प्रोड्यूस करने वाले पशुओं से निकलता है. लामा जंगली पशु होने के बाद भी इन्हें ट्रेनिंग देना काफी आसान है. एक-दो बार सिखाने पर ही ये कोई भी काम सीख जाते हैं.
कोरोना वायरस नुकीली संरचना वाला होता है जो हमारे शरीर की कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीन से काफी अच्छे से जुड़ पाता है
बता दें कि ऊंटों की इस खास प्रजाति, जिससे लामा आता है, उनके शरीर में इंसानों से अलग तरह की एंटीबॉडी बनती है. इनका आकार भी हमारे शरीर में पाई जाने वाली एंटीबॉडीज से अलग होता है. ये भी एक बड़ी वजह है कि वैज्ञानिक मान रहे हैं कि स्टडी पूरी तरह से कामयाब हो तो इस एंटीबॉडी को नेब्युलाइजर की तरह इस्तेमाल किया जा सकेगा ताकि सांस के जरिए ये भीतर पहुंच जाएं.
अब टेक्सास यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक इस एंटीबॉडी पर प्री-क्लिनिकल स्टडी शुरू कर चुके हैं. उनके मुताबिक वैक्सीन बन भी जाए तो भी शरीर के भीतर इसके असर में 1 या 2 महीने लगते हैं. लेकिन अगर एंटीबॉडी थैरेपी काम कर जाए तो लोगों के शरीर में सीधे एंटीबॉडी डाल दी जाएगी. इससे वे तुरंत ही कोरोना वायरस से सुरक्षित हो जाएंगे. ये तरीका वायरस से लिए संवेदनशील लोगों जैसे बुजुर्गों के लिए फायदेमंद हो सकता है.