सचिन पायलट समझ गए थे कि जब तक वसुंधरा सक्रिय नहीं होंगी, गहलोत सरकार का गिरना मुश्किल है; इसलिए सुलह का रास्ता चुना

राजस्थान के सियासी घटनाक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुप्पी सबसे ज्यादा चौंकाने वाली रही वसुंधरा 4 दिन पहले दिल्ली गई थीं, वहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी

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राजस्थान की राजनीति में एक महीने से जारी घमासान में सचिन पायलट की घर वापसी के साथ हैप्पी एंडिंग हो गई। शुरुआत में बेहद आक्रामक दिख रहा पायलट गुट आखिर सुलह की टेबल पर कैसे आ गया? सियासी गलियारों में इसके पीछे कई मतलब निकाले जा रहे हैं। सबसे ज्यादा चर्चा में हैं भाजपा नेता और प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे।

राजनीति के जानकार मान रहे हैं कि वसुंधरा ने 4 दिन पहले दिल्ली पहुंचकर भाजपा आलाकमान को तेवर दिखाए। लेकिन, उसका असर कांग्रेस में पायलट गुट की घर वापसी के रूप में दिखा। इस पूरे मामले में वसुंधरा की भूमिका को इन 4 पॉइंट्स में समझिए-

1. गहलोत सरकार गिराने में वसुंधरा की दिलचस्पी नहीं थी
पायलट विवाद के बाद अगर वसुंधरा सक्रिय होतीं तो गहलोत सरकार को गिराया जा सकता था। लेकिन, वसुंधरा ने चुप्पी साधे रखी। क्योंकि, ये तय था कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती तो भी मुख्यमंत्री का ताज वसुंधरा के सिर पर नहीं सजना था। इसलिए, किसी और के लिए सक्रिय होने के बजाय वे दूर बैठकर नजारा देखती रहीं। भाजपा के सहयोगी दल रालोपा के सांसद हनुमान बेनीवाल ने खुलेआम वसुंधरा पर यह आरोप लगाया।

2. भाजपा के 45 से ज्यादा विधायक वसुंधरा समर्थक
वसुंधरा पर आरोप लगे कि वे गहलोत सरकार की मदद कर रही हैं। ये बात भले ही सच नहीं हो, लेकिन ये सही है कि गहलोत सरकार को गिराने में भी उनकी दिलचस्पी नहीं थी। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि पायलट की बगावत के बाद भाजपा ने जो रणनीति बनाई थी, उसमें वसुंधरा कहीं नहीं थीं। भाजपा ने जब अपने कई विधायकों को जोड़-तोड़ से बचाने के लिए भेजा तब भी वसुंधरा समर्थक विधायक नहीं माने थे। राजस्थान में भाजपा के 72 विधायकों में 45-46 विधायक वसुंधरा समर्थक बताए जाते हैं। एक महीने के इंतजार के बाद पायलट गुट समझ गया कि गहलोत सरकार गिराने में वसुंधरा की कोई रुचि नहीं है। ऐसे में पायलट गुट ने कांग्रेस में वापसी के रास्ते तलाशने शुरू कर दिए।

3. वसुंधरा ने भाजपा आलाकमान को भी संदेश दिया
राजनीतिक हलकों में ऐसा माना जा रहा है कि वसुंधरा ने चुप्पी साधकर चतुराई से अपना मकसद पूरा कर लिया। वे पार्टी आलाकमान को साफ संदेश देने में भी सफल रहीं कि राजस्थान में उनकी अनदेखी कर काम नहीं चल सकता। इस मामले में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत काफी सक्रिय थे। लेकिन, गहलोत सरकार गिराने का प्लान फेल होने के बाद वसुंधरा ये मैसेज देने में भी कामयाब रहीं कि प्रदेश में पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत है और पार्टी के नए चेहरे अभी उतने मैच्योर नहीं हैं।

4- राजस्थान में भैरोसिंह शेखावत युग के बाद भाजपा पर वसुंधरा का राज
भैरोसिंह शेखावत का दौर खत्म होने के बाद करीब 2 दशक से राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे का एकछत्र राज रहा है। प्रदेश में उन्हें चुनौती देने वाला पार्टी में कोई नेता नहीं रहा, लेकिन भाजपा में मोदी युग शुरू होने के साथ ही प्रदेश में नए समीकरण बनने शुरू हो गए। पार्टी ने पुराने नेताओं की जगह युवा चेहरों को तरजीह देना शुरू किया। पार्टी की सोच रही है कि दूसरी लाइन के 60 से कम उम्र के नेताओं को आगे बढ़ाया जाए, ताकि नई लीडरशिप तैयार हो सके। इसे ध्यान में रख पार्टी ने गजेन्द्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे नेताओं को बढ़ाना शुरू कर दिया।

वहीं मोदी-शाह की जोड़ी से वसुंधरा राजे की कभी पटरी नहीं बैठी। वसुंधरा एकमात्र ऐसी नेता हैं जो इस जोड़ी से अपनी बात मनवाने में हमेशा कामयाब रहीं। अब मोदी-शाह की जोड़ी ने राजस्थान में नए नेता के हाथ में बागडोर सौंपना तय कर लिया है। इसके पीछे यह सोच रही कि अगले चुनाव तक वसुंधरा 70 की हो जाएंगी। इसी सिलसिले में केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को पूरी तरह से सक्रिय कर दिया गया।

राजस्थान की सियासी उठापटक 32 दिन बाद खत्म हो गई। सचिन पायलट की कांग्रेस में वापसी के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान आए। गहलोत ने कहा कि सीएम होने के नाते यह मेरी जिम्मेदारी है कि अगर मेरे विधायक मुझसे खफा हैं तो मैं उनका दिल जीतूं। मैं कोशिश करूंगा कि यह पता लगा सकूं कि उनसे क्या वादे किए गए थे और वो क्यों शिकायत कर रहे हैं।

इनकम टैक्स और सीबीआई का दुरूपयोग किया जा रहा- गहलोत

उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए मंगलवार को कहा कि इनकम टैक्स और सीबीआई का दुरुपयोग किया जा रहा है। हमारी सरकार 5 साल पूरे करेगी, अगला चुनाव भी जीतेगी। उन्होंने कहा है कि पार्टी में भाईचारा बरकरार है। तीन सदस्यों की कमेटी बनाई गई है, जो सभी विवादों को सुलझाएगी। भाजपा की ओर से सरकार गिराने की कोशिश की गईं, लेकिन हमारे विधायक एक साथ हैं और एक भी व्यक्ति हमें छोड़कर नहीं गया।

बागी विधायक पायलट के साथ जयपुर लौटेंगे

सचिन पायलट के साथ बागी विधायक भी आज जयपुर लौटेंगे। हरियाणा के मानेसर स्थित होटल में वापसी की तैयारियां कर ली गईं हैं। वे पिछले एक महीने से यहां ठहरे हैं। पायलट गुट के तीन विधायक ओमप्रकाश हुड़ला, सुरेश टांक और खुशबीर सुबह जयपुर पहुंचे। उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनके आवास पर मुलाकात की। इससे पहले बागी विधायक भंवरलाल शर्मा ने सीएम से मुलाकात की थी।

राजस्थान की गहलोत सरकार का संकट टलने के बाद अब बयानबाजी का दौर चल रहा है। सचिन पायलट ने मंगलवार को कहा, “अशोक गहलोत मुझसे बड़े हैं। मैं उनका सम्मान करता हूं, लेकिन मुझे भी काम के मुद्दे उठाने का हक है।” पायलट ने यह बात उस बयान के रेफरेंस में कही, जिसमें गहलोत ने पायलट को निकम्मा और नकारा बताया था।

बयानों में लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए: पायलट
“मैंने अपने परिवार से कुछ मूल्य सीखे हैं। मुद्दा यह नहीं कि मैं किसी आदमी का कितना विरोध करता हूं, लेकिन इस तरह की भाषा इस्तेमाल नहीं करता। सार्वजनिक तौर पर बोलते वक्त एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए। राजनीति में निजी दुश्मनी की कोई जगह नहीं होती। राहुल और प्रियंका ने हमारी आपत्तियां दूर करने के लिए रोडमैप तैयार करने का भरोसा दिया है। हमने जो मुद्दे रखे थे, उनके समाधान के लिए 3 सदस्यों की कमेटी बनाई गई है।”

पायलट की 5 बड़ी बातें
1. पद की नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं के सम्मान की बात उठाई
मैंने किसी पद की मांग नहीं की, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मान और कामकाज से जुड़े मुद्दे उठाए। पार्टी ने जो भी जिम्मेदारियां दी हैं, उन्हें निभाने के लिए तैयार हूं।
2. पार्टी प्रदेशाध्यक्ष के नाते जनता के मुद्दे उठाने का जिम्मा था
पार्टी प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते यह मेरी जिम्मेदारी थी कि सरकार बनने के बाद कार्यकर्ताओं को सम्मान दिया जाए। बीते 1.5 साल में काम की रफ्तार धीमी हो गई थी। हमें ऐसा लग रहा था कि जनता से जो वादे किए, वे पूरे नहीं हो पा रहे हैं।
3. राजद्रोह का नोटिस मिलने से दुख हुआ
जिस तरह राजद्रोह की धारा में नोटिस दिया गया और 25 दिन बाद वापस लिया गया, उससे दुख हुआ। हम कोर्ट गए, कई मुकदमे हुए। इसे रोका जा सकता था। बदले की राजनीति नहीं होनी चाहिए।
4. पार्टी विचारधारा के खिलाफ कभी कुछ नहीं कहा
हमने पार्टी की विचारधारा, सरकार और पार्टी लीडरशिप के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोला। हमने सिर्फ कामकाज के तरीके पर सवाल उठाए। मुझे इसका पूरा हक है।
5. सत्य और सिद्धांतों की राजनीति करता हूं
पद आते-जाते रहते हैं। मुझे इनका कोई लालच नहीं है। मेरी राजनीति सत्य और सिद्धांतों पर आधारित है।

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