लुधियाना। देश की राजधानी दिल्ली में हर वर्ष अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में बढऩे वाले प्रदूषण के लिए पंजाब में पराली जलाने से पैदा हुए धुएं को जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन, हकीकत यह नहीं है। हवा की दिशा और रफ्तार बता रही है कि दिल्ली में प्रदूषण के लिए पंजाब जिम्मेदार नहीं है।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) की ओर से पिछले तीन साल के दौरान अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में हवा की दिशा और इसकी रफ्तार पर किए गए अध्ययन में सामने आया है कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए पंजाब की पराली की कोई भूमिका नहीं है। यदि हवा की रफ्तार छह किमी से अधिक होती और तो दिल्ली तक पराली का प्रदूषण पहुंचता लेकिन इन महीनों में हमेशा हवा की रफ्तार इससे कम रही और दिशा भी विपरीत रही।
तीन साल के दौरान हवा की दिशा और रफ्तार पर पीएयू के अध्ययन में सच आया सामने
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट आफ क्लाइमेट चेंज एंड एग्रीकल्चर मेट्रोलाजी की प्रमुख डा. प्रभजोत कौर सिद्धू ने कहा कि पिछले कुछ साल से पड़ोसी राज्य अक्सर प्रदूषण के लिए पंजाब में जलने वाली पराली को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। इसकी सच्चाई जानने के लिए 2017, 2018 व 2019 में एक अक्टूबर से 16 दिसंबर यानी 77 दिन में राज्य की दस जगहों में हवा की रफ्तार और दिशा के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
तीन साल में एक अक्टूबर से 16 दिसंबर के बीच ज्यादातर दिन हवा का रुख दिल्ली के विपरीत रहा
इस दौरान पाया कि साल 2017 में 77 में से 58, 2018 में 42 और 2019 में 44 दिन काम कंडीशन यानी हवा शांत रही। काम कंडीशन उसे कहते हैं, जब हवा की रफ्तार दो किलोमीटर प्रति घंटे से भी कम रहती है। इस स्थिति में हवा की मूवमेंट नहीं होती। हवा एक जगह पर ही स्थिर रहती है। हवा की कोई दिशा भी नहीं होती। दूसरी तरफ, 2017 में 19 दिन लाइट एयर यानी हल्की हवा रही। 2018 में 35 और 2019 में 32 दिन तक हल्की हवा की गति रिकॉर्ड की गई।
हल्की हवा होने की सूरत में रफ्तार प्रति घंटा दो से पांच किलोमीटर के बीच रहती है। 77 दिन के दौरान केवल सात नवंबर 2019 को लाइट ब्रीज रिकार्ड की गई। लाइट ब्रीज में हवा की रफ्तार छह से 11 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच रहती है लेकिन इस दिन पंजाब में लाइट ब्रीज में हवा की रफ्तार 5.9 किमी प्रति घंटा रिकार्ड की गई और दिशा दक्षिण पूर्व रही। यानी कि हवा दिल्ली-हरियाणा से पंजाब की तरफ चल रही थी।
कम हवा की रफ्तार से पराली का धुआं नहीं पहुंच सकता दिल्ली
डा. प्रभजोत कौर ने कहा कि पंजाब दिल्ली से करीब तीन सौ किमी दूर है। दिल्ली तक पंजाब में पराली के धुएं से पैदा हुए प्रदूषण पहुंचने के लिए छह किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक हवा की रफ्तार और इसकी दिशा उत्तर पश्चिम की ओर होनी चाहिए। लेकिन, तीन साल में एक अक्टूबर से 16 दिसंबर के बीच ज्यादातर दिनों में हवा की रफ्तार दो किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक नहीं रही और न ही हवा की कोई दिशा थी। ऐसे में पंजाब में जलाई जाने वाली पराली से पैदा होने वाला प्रदूषण दिल्ली तक कैसे जा सकता है। हवा की मूवमेंट न होने की वजह से पराली का प्रदूषण तो पंजाब में ही रहा। इसका असर पंजाबियों पर पड़ रहा है।
अपने प्रदूषण के लिए खुद जिम्मेदार हैं हरेक प्रदेश
डा. प्रभजोत कौर ने कहा कि अध्ययन में स्पष्ट तौर पर सामने आया कि अक्टूबर व नवंबर के दौरान तापमान में आई गिरावट हवा चलने के आसार को घटाती है। इसके कारण एक स्थिर वातावरण बन जाता है। इसमें हवा का थोड़ा प्रसार ऊपर की तरफ चला जाता है। धान की पराली जलाने व प्रदूषण के और स्रोतों के कारण वातावरण में शामिल धूल व धुएं के कण जमा हो जाते हैं।
आम भाषा में इसे बंद कमरे की स्थिति कहा जा सकता है। इसमें कोई भी चीज न बाहर से आती है और न बाहर जा सकती है। यह स्थिति तब तक बनी रहती है, जब तक एक कम दबाव वाला क्षेत्र यानी वेस्टर्न डिस्टर्बेंस नहीं होते। इसलिए पूरे उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में खासकर धान उगाने वाले राज्यों में हरेक प्रदेश अपने प्रदूषण के लिए खुद जिम्मेदार है। इन क्षेत्रों में पैदा हुए प्रदूषण के लिए दूसरे राज्यों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।