चंडीगढ़ । चुनावी रणनीतिकार और पंजाब में मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार प्रशांत किशोर ने जो संन्यासी गुगली फेंकी है, उसमें मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह उलझ सकते हैं। दरअसल, पीके ने आगे से किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाने से तो संन्यास ले लिया है, लेकिन उन्होंने प्रधान सलाहकार पद को न छोड़ने की बात भी कही है। यह पद उन्हें पंजाब सरकार ने दिया है न कि कांग्रेस पार्टी ने। पीके की इस गुगली को कांग्रेस पार्टी ने भी पढ़ने की कोशिश शुरू कर दी है।
पंजाब में कांग्रेस के नेताओं को यह नहीं समझ में आ रहा है कि आखिर पीके मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार तो बने रहेंगे, लेकिन चुनावी रणनीति उनकी कंपनी आई-पैक देखेगी। चूंकि इस मामले को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा ही डील किया जा रहा है। अतः सभी की नजरें मुख्यमंत्री पर ही टिकी हुई है। कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ का तो साफ कहना है, यह मामला मुख्यमंत्री और प्रशांत किशोर के बीच का है। आगे क्या होगा या क्या करना है, इसके बारे में भी वह ही बता पाएंगे।
कैबिनेट मंत्री बलबीर सिद्धू का भी कमोबेश यही कहना है। वहीं, चर्चा यह भी है कि अगर पीके ने चुनावी रणनीति तय नहीं करनी है तो फिर प्रधान सलाहकार के पद पर रहने का भी क्या फायदा। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, राजनीति में इस तरह की प्रेशर बनाया जाता है, ताकि व्यक्ति का वजन भी बढ़े। चूंकि पीके पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में खासे सफल रहे तो ऐसे में उन्हें अपना वजन बढ़ाने का मौका भी मिला है, क्योंकि यह हो नहीं सकता कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रशांत किशोर के बीच पहले से ही स्पष्ट बातचीत न हुई हो।
वैसे तो मुख्यमंत्री ने उन्हें प्रधान सलाहकार बनाकर कैबिनेट रैंक दिया नहीं होगा। यह अलग बात है कि दो चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने के बाद पीके की इच्छाएं कुछ और बढ़ गई हों, क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पीके ने टिकटों के बंटवारे में हस्तक्षेप करने की कोशिश की थी, जबकि पिछले दिनों ही यह खबर भी सामने आई कि पीके 30 सिटिंग विधायकों की टिकट काटने के हक में हैं। यह खबर कांग्रेस में बम की तरह गिरी। कांग्रेस में बेचैनी भी देखने को मिली। जिसके बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि पीके का टिकट बंटवारे में कोई लेना देना नहीं है। उनका काम उन्हें सलाह देना है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो पीके ने संन्यास की गुगली फेंकी है। अब देखना यह होगा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह उस गुगली में फंसते हैं या अपने राजनीतिक अनुभवों का लाभ उठाते हुए उसे सफल तरीके से खेल जाते हैं। वहीं, यह भी माना जा रहा है कि पीके हमेशा ही उस राज्य में रणनीति तैयार करते हैं जहां पर दो कोणीय मुकाबला बन सके। 2017 में भी बेअदबी कांड के कारण अकाली दल का ग्राफ बहुत नीचे था और मुख्य लड़ाई कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच में ही सिमट कर रह गई थी, जबकि 2022 में पंजाब में चार कोणीय मुकाबला होना तय हो। बहुत संभव है कि यह पांच कोणीय मुकाबला भी हो जाए, जिसके कारण भी पीके खुद न आगे आकर अपनी टीम को आगे रखना चाहते हो।