चंडीगढ़। निजी स्कूलों द्वारा बच्चों से मासिक फीस, वार्षिक शुल्क और ट्रांसपोर्ट फीस के मामले पर वीरवार को पंजाब एवं हरियाणा हाई काेर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। ये फीसें वसूलने देने के एकल बेंच के फैसले के खिलाफ हरियाणा सरकार व अन्य की अपील पर वीरवार को हाईकोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि जिन स्कूलों ने लॉकडाउन के दौरान ऑन-लाइन क्लास की सुविधा दी है सिर्फ वही स्कूल छात्रों से टयूशन फीस वसूल सकते हैं, इसके साथ ही हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों से पिछले सात महीनों की बैलेंस शीट वो भी किसी चार्टेड अकाउंटेंट से वेरिफाई करवा दो सप्ताह में सौंपे जाने के निजी स्कूलों को आदेश दे दिए हैं।
ऑनलाइन क्लास की सुविधा देन वाले स्कूल ही ले सकते हैं टयूशन फीस, ट्रांसपोटेशन फीस नहीं ले सकेंगे
जस्टिस राजीव शर्मा एवं जस्टिस हरिंदर सिंह सिद्धू की खंडपीठ ने यह आदेश सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ सरकार सहित अभिभावकों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए दिए हैं। हाई कोर्ट ने सिंगल बेंच के 30 जून के फैसले में संशोधन करते हुए यह आदेश दिए हैं।
स्टाफ चाहे रेगुलर हैं या कॉन्ट्रेक्ट पर या ऐड-हॉक पर, पूरा वेतन देना होगा
इसके साथ ही हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों को यह भी आदेश दे दिए हैं कि वह अपने स्टाफ को चाहे रेगुलर हैं या कॉन्ट्रेक्ट पर या ऐड-हॉक पर उन्हें पूरा वेतन दिया जाएगा, जो 23 मार्च को लॉक-डाउन लगाए जाने के दिन से पहले स्कूल में नियुक्त थे। हाईकोर्ट ने यह भी साफ़ कर दिया है कि लॉक-डाउन के दौरान छात्र स्कूल नहीं गए हैं ऐसे में निजी स्कूल छात्रों से कोई भी ट्रांपोर्टेशन फीस नहीं वसूल सकते हैं। इनकी आदेशों के साथ हाईकोर्ट ने इन सभी अपीलों पर अंतिम सुनवाई किए जाने के लिए इन्हे 12 नवंबर तक स्थगित कर दिया है।
निजी स्कूलों से पिछले 7 महीनों की बैलेंस शीट चार्टेड अकाउंटेंट से वेरिफाई करवा कर जमा करवाने का आदेश
जस्टिस राजीव शर्मा ने कहा लॉक डाउन के दौरान स्कूलों ने जो सुविधा नहीं दी है उसकी फीस वह कैसे वसूल सकते हैं। हाई कोर्ट ने साफ़ किया है कि यह आदेश दायर इन अपीलों पर हाई कोर्ट के अंतिम फैसले पर निर्भर होंगी। यह आदेश पंजाब और हरियाणा के सभी निजी स्कूलों पर लागू होंगे।
इससे पहले इन अपीलों पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने कहा था कि अगर कोई छात्र फीस नहीं जमा करवा पाता है तो स्कूल छात्र का नाम नहीं काटेंगे। इस मामले में हरियाणा सरकार द्वारा दायर अपील में एकल बेंच के आदेश को रद करने की मांग की है। सरकार ने कहा कि एकल बेंच ने सरकार के पक्ष को अनदेखा कर अपना फैसला दिया है। एकल बेंच का फैसला वास्तविक स्थिति के विपरीत है।
हाई कोर्ट के जस्टिस रामेंद्र जैन ने 27 जुलाई को अपने आदेश में निजी स्कूलों को ट्यूशन फीस के साथ ही वार्षिक शुल्क, ट्रांसपोर्ट फीस और बिल्डिंग चार्ज वसूलने की इजाजत दे दी थी। इससे फीस माफी की आस लगाए लाखों अभिभावकों को झटका लगा था। आदेश के तहत लॉकडाउन में चाहे किसी स्कूल ने ऑनलाइन क्लास की सुविधा दी है या नहीं, सभी स्कूल इस अवधि की फीस अभिभावकों से वसूल सकते थे।
जस्टिस रामेंद्र जैन ने पंजाब के एक मामले में जस्टिस निर्मलजीत कौर द्वारा 30 जून को सुनाए गए फैसले के आधार पर हरियाणा के निजी स्कूलों को यह राहत दी थी। एकल बेंच ने कहा था कि लॉकडाउन की अवधि के लिए स्कूल अपने वार्षिक चार्ज भी वसूल सकते हैं, लेकिन इस साल फीस नहीं बढ़ा सकते। एकल बेंच ने यह भी कहा था कि ऑनलाइन न पढ़ाने वाले निजी स्कूल भी ट्यूशन फीस व दाखिला फीस ले सकते हैं। बेंच ने सभी याचिकाओं का निपटारा करते हुए स्पष्ट किया था कि वार्षिक चार्ज के तौर पर स्कूल वास्तविक खर्च ही वसूलें। लॉकडाउन की अवधि के लिए स्कूल ट्रांसपोर्ट फीस या बिल्डिंग चार्ज के तौर पर सिर्फ वही फीस वसूलें, जितने खर्च वास्तविक तौर पर वहन करने पड़ते हैं। स्कूल खुलने के बाद की अवधि के लिए वे पूर्व निर्धारित दरों के हिसाब से वार्षिक शुल्क ले सकते हैं।
बेंच ने कहा था कि लॉकडाउन के कारण खराब आर्थिक स्थिति में जो अभिभावक फीस नहीं दे सकते, वे स्कूल को अर्जी दे सकते हैं। निजी स्कूल इस पर संवेदनशीलता से गौर कर निर्णय लेंगे। चाहे तो फीस माफ की जा सकती है या फिर बाद में ली जा सकती है। इसके बावजूद अगर स्कूल कुछ नहीं करते हैं तो अभिभावक रेगुलेटरी बॉडी के समक्ष अपनी मांग रख सकते हैं। एकल बेंच ने आर्थिक संकट का सामना कर रहे निजी स्कूलों को राहत देते हुए कहा था कि वे अपनी वित्तीय स्थिति के बारे में संबंधित जिला शिक्षा अधिकारी के समक्ष जानकारी देते हुए जरूरी दस्तावेज जमा करवाएं।
सर्व विद्यालय संघ हरियाणा व अन्य ने एकल बेंच के पास दायर याचिका में कहा था कि लॉकडाउन से सिर्फ छात्रों के अभिभावक ही प्रभावित नहीं हुए हैं, बल्कि निजी स्कूल भी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। इसलिए सरकार के केवल ट्यूशन फीस लेने के आदेश पर रोक लगाई जाए।