बठिंडा। भाई मनी सिंह सिविल अस्पताल अपने कारनामों के कारण अक्सर चर्चा में रहता है। एक माह पहले दो लोगों को एचआईवी ब्लड चढ़ाने के मामले की अभी जांच भी पूरी नहीं हुई थी कि सिविल अस्पताल ब्लड बैंक पर फिर से लापरवाही बरतने व 11 साल के एक बच्चे को एचआईवी रक्त चढ़ाने के गंभीर आरोप लगे हैैं। इससे पहले 8 साल के बच्चे को सिविल अस्पताल में एचआईवी रक्त चढ़ाया गया था जिसमें राज्य सरकार के निर्देश पर जांच की हिदायते दी गई व इसमें तीन लोगों के खिलाफ विभागीय व कानूनी कारर्वाई की सिफारिश की गई। हालांकि मामले में एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर लिया गया जबकि दो आरोपी अभी भी कानून की गिरफ्त से यह कहकर बाहर है कि इसमें आरोपी लोगों के खिलाफ जांच चल रही है। जाांच भी करीब एक माह से चल रही हैै। अब ताजा घटनाक्रम में सिविल अस्पताल ब्लड बैंक प्रबंधन पर आरोप है कि थैलेसीमिया से पीडि़त 11 साल के बच्चे को एचआइवी संक्रमित का खून चढ़ा दिया गया है। पीडि़त परिवार ने सिविल सर्जन को शिकायत देकर चीफ मेडिकल आफिसर (सीएमओ) से जांच की मांग की है। बठिंडा का यह बच्चा जन्म से ही थैलेसीमिया से पीडि़त है। फिलहाल सिविल सर्जन ने मामले में तीन डाक्टरों का पैनल बनाकर मामले की जांच के आदेश दे दिए है. जांच टीम का दावा है कि मामला गंभीर है व इसमें जांच पूरी किए बिना कुछ कहना मुश्किल है कि लापरवाही किस स्तर पर हुई है। जांच दीवाली के बाद सिविल सर्जन व आला अधिकारियों को सौंप दी जाएगी।
बठिंडा सिविल अस्पताल में दो माह के अंदर तीसरी बार बड़ी लापरवाही
पहले वर्ष उसका इलाज पीजीआइ में हुआ। उसके बाद दस साल से बठिंडा सिविल अस्पताल में हर पंद्रह दिन बाद उसका खून बदला जाता है। सात नवंबर को बच्चे के परिवार के लोग उसे सिविल अस्पताल लेकर आए थे। परिवार के अनुसार ब्लड चढ़ाते समय ब्लड बैंक का एक कर्मी वहां आया और बच्चे के खून का सैंपल लेकर गया, जबकि इससे पहले जब भी कोई टेस्ट करना होता था, तो उनसे पूछ कर सैंपल लिया जाता था। बच्चे की मां ने बताया कि जिस समय सैंपल लिया गया वह वहां मौजूद नहीं थी।
पहले भी दो मरीजों के साथ लापरवाही, पीडि़त परिवार ने सीएमओ से की जांच की मांग
परिवार वालों के अनुसार, बाद में अस्पताल के स्टाफ ने बताया कि ब्लड बैंक का कर्मी सैंपल लेकर गया है। उन्होंने यह नहीं बताया कि सैंपल किस टेस्ट के लिए लिया गया। हालांकि, उस दिन डाक्टर ने कोई टेस्ट नहीं लिखा था। उन्होंने आरोप लगाया कि स्टाफ ने पुरानी पर्ची फाड़ कर हाथ से नई पर्ची बना कर उसमें एचआइवी सहित अन्य टेस्ट लिख दिए। इसके बाद ब्लड बैंक के अधिकारियों ने बताया कि उनका बेटा एचआइवी पाजिटिव है। पीडि़त बच्चे के चाचा ने बताया कि बुधवार को सिविल सर्जन को शिकायत दी गई है। इसकी जांच करवाई जाए। उन्हें शक है कि उसके भतीजे को यहां एचआइवी संक्रमित खून चढ़ा दिया गया है।
जांच के लिए कमेटी बनाई
एसएमओ डा. मनिंदर सिंह ने कहा कि जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है। इस कमेटी में डा. गुरमेल सिंह, डा. मनिंदर सिंह व डा. सतीश को शामिल किया गया है। यह एक-दो दिन में रिपोर्ट दे देगी। इसके बाद कार्रवाई की जाएगी। ब्लड ट्रांसफ्यूजन आफिसर डा. मयंक ने कहा कि जांच रिपोर्ट से पहले कुछ नहीं कहा जा सकता। डिप्टी कमिश्नर बी. श्रीनिवासन ने कहा कि वह सेहत विभाग से रिपोर्ट तलब करेंगे।
पहले भी हुई लापरवाही
अक्टूबर में भी दो मरीजों को संक्रमित खून चढ़ा दिया गया था। इस मामले में लैब तकनीशियन पर हत्या के प्रयास का केस दर्ज हुआ था। आरोपित हवालात में है। इसके अलावा ब्लड ट्रांसफ्यूजन आफिसर व एक अन्य लैब तकनीशियन के खिलाफ जांच चल रही है।
जांच टीम की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई होगी
मामले की जांच टीम करेगी तथा सारे तथ्यों की जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है कि गलती कहां हुई है। हमें सभी पक्षों को देखना, सुनना व समझना होगा। अगर कोई गलत होगा तो कार्रवाई जरूरी होगी।
-डॉ. अमरीक सिंह, सिविल सर्जन, बठिंडा
जांच में पता चलेगा ये गलती कहां और कैसे हुई
थैलेसीमिया बच्चा एचआईवी पॉजिटिव आने का मामला मेरे ध्यान में आ गया है। इस मामले में सीनियर अधिकारियों ने जांच के लिए कमेटी बना दी है। जांच के बाद पता चलेगा, आखिर ये कब कैसे हो गया।
-डॉ. मयंक जैन, बीटीओ ब्लड बैंक, सरकारी अस्पताल
यहां मोगा सिविल अस्पताल की बड़ी लापरवाही : पेट में छोड़ दी कैंची, डिलीवरी के बाद महिला की मौत
मोगा सिविल अस्पताल मोगा में एक बार फिर बड़ी लापरवाही सामने आई है। डाक्टर की लापरवाही से आपरेशन के बाद कैंची (सीजर) पेट में ही छोड़ दिया गया जिस कारण डिलीवरी के तीन दिन बाद मोगा की 20 वर्षीय गीता रानी की मौत हो गई। मामला सामने आने के बाद सहायक सिविल सर्जन ने मामले की जाच के लिए टीम गठित कर दी है। सिविल अस्पताल मोगा का प्रशासन इसे फरीदकोट मेडिकल कालेज की गलती बता पल्ला झाड़ रहा है। वहीं स्वजनों का आरोप है कि डिलीवरी के समय आपरेशन मोगा अस्पताल में ही हुआ था।
स्वजनों ने बताया कि गीता ने तीन दिन पहले बच्ची को जन्म दिया था। इसके बाद उसकी हालत बिगड़ी तो यहा से उसे मेडिकल कालेज रेफर कर दिया, वहा उसकी मौत हो गई। स्वजनों ने सोमवार को उसका संस्कार कर दिया। मंगलवार को अस्थिया चुनते समय कैंची (सीजर) मिलने पर स्वजनों में आक्रोश फैल गया। इसके बाद सिविल अस्पताल की टीम ने पुलिस बल के साथ मौके का निरीक्षण के बाद पूरी जानकारी हासिल की। साथ ही पुलिस ने कैंची कब्जे में ले ली। गाव बोर्धंसह वाला की रहने वाली गीता रानी को छह नवंबर को प्रसव पीड़ा के चलते सिविल अस्पताल लाया गया था। शुक्रवार रात को आठ बजे सीजेरियन से गीता रानी ने बच्ची को जन्म दिया। शनिवार को गीता रानी के मुंह पर सूजन आ गई और उसका पेट फूल गया। इसके बाद अस्पताल प्रशासन ने उसे फरीदकोट मेडिकल कालेज रेफर कर दिया, जहा नौ नवंबर की दोपहर के बाद उसकी मौत हो गई। एसएमओ डा.राजेश अत्री ने बताया कि जाच में अस्थियों में मिली कैंची सिजेरियन में प्रयोग होने वाली निकली। सिविल सर्जन डा. अमरप्रीत कौर बाजवा ने शमशानघाट में चिकित्सकों की टीम भेजी। उनका कहना है कि यह आपरेशन थियेटर का पार्ट है और यह उपकरण आपरेशन में इस्तेमाल होता। थाना साउथ पुलिस भी मौके पर पहुंच गई थी।
मा ने लगाए आरोप: चिकित्सकों ने नहीं दिया ध्यान
मोगा निवासी गीता रानी की शादी तीन साल पहले बोर्धंसह वाला निवासी ड्राइवर इंद्रवीर्र ंसह के साथ हुई थी। वह एक महीने पहले दुबई चला गया था। गीता रानी का यह पहला बच्चा था। नवजात के जन्म के दो दिन बाद मा की मौत के बाद बुआ अमनदीप कौर किसी तरह बोतल से दूध पिलाकर नवजात को दूध पिलाने की कोशिश कर रही थी। गाव में बुआ व भतीजी का दृश्य देखकर किसी का भी दिल पसीज सकता था। मृतका गीता की मा रानी का कहना है कि वह सिविल अस्पताल के चिकित्सकों को लगातार ये बता रही थी कि उसकी बेटी का पेट फूल रहा है, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं किया, बल्कि मेडिकल स्टाफ कभी उनसे चाय की डिमाड करती थी, कभी किसी काम की। उन्होंने बच्ची की तरफ ध्यान नहीं दिया।
स्वजन बोले, दोषियों के खिलाफ की जाए कार्रवाई
इस घटना के बाद मृतक गीता के ननदोई जसप्रीर्त ंसह ने कहा कि वह अपने स्वजनों के साथ गीता को लेकर सिविल अस्पताल गया था, जहा सिजेरियन से बच्चे के पैदा होने के बाद पहले तो चिकित्सकों ने सुनी नहीं। हालत ज्यादा बिगड़ी तो उसे फरीदकोट मेडिकल कालेज रेफर कर दिया। मोगा में गीता का सिजेरियन हुआ था, इसकी जानकारी उन्हें है लेकिन फरीदकोट मेडिकल कालेज में उसकी सर्जरी हुई है, उन्हें वहा किसी ने नहीं बताया था। अस्थियों में निकली कैंची से उन्हें ऐसा लगा कि यही वह सामान है जिसने गीता की जान ली है। इस लापरवाही के लिए जो भी दोषी हो उसके खिलाफ कार्रवाई हो, हर हाल में इस मामले में वे इंसाफ लेकर रहेंगे। उन्होंने बताया कि इस मामले में जो भी दोषी होंगे उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए।
———
नया नहीं है लापरवाही का ये मामला
- 10 अक्टूबर को चिकित्सकों की लापरवाही से जलालाबाद निवासी अंकिता की डिलीवरी सिविल अस्पताल की पाìकग के फर्श पर ही हो गई थी।
- नौ जनवरी को अमनप्रीत कौर नाम की महिला की लेबर रूम के बाहर ही डिलीवरी हो गई थी। नवजात सिर के बल फर्श गिर गया था, कुछ दिन बाद ही उसकी मौत हो गई थी। दोनों मामलों की जाच में चिकित्सक दोषी पाए गए थे लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
महिला की सिजेरियन सिविल अस्पताल में ही हुई थी लेकिन दो दिन बाद पेट में क्र्लोंटग होने के बाद उसे फरीदाकोट के मेडिकल कालेज रेफर कर दिया था, जहा मेजर सर्जरी की गई। यह चूक मेडिकल कालेज की ही हो सकती है। सिविल अस्पताल के स्तर पर ये चूक संभव नहीं है।
-डा. राजेश अत्री, एसएमओ