अमित शाह ने कहा, जम्मू-कश्मीर में POK-अक्साई चीन भी शामिल, जानें चीन-पाक द्वारा कब्जे की कहानी

भारत का दावा है कि चीन ने करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर वाले अक्साई चीन पर अवैध कब्जा किया हुआ है। पाकिस्तान चीन के इस कब्जे को मान्यता दी है।

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नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) और अक्साई चिन सहित सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि क्या वह पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानती है, हम तो इसके लिए जान भी देने को तैयार हैं। लोकसभा में अनुच्छेद 370 संबंधी संकल्प एवं राज्य पुनर्गठन विधेयक को चर्चा के लिये रखते हुए शाह ने कहा, ‘‘ जब जब मैंने जम्मू-कश्मीर बोला है तब तब इसमें पीओेके और अक्साई चिन भी समाहित हैं।’’

 

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गृह मंत्री ने कहा कि बहुत लंबे समय से लद्दाख क्षेत्र की मांग थी कि वहां केंद्रशासित राज्य बनाया जाए जिसमें अक्साई चिन भी समाहित होगा। इसमें पर्वतीय परिषदों के प्रमुख को मंत्री का दर्जा होगा।

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अक्टूबर 1947 में जम्मू-कश्मीर के विलय के बाद भी कश्मीर का सारा हिस्सा भारत के पास नहीं है।  22 फरवरी, 1994 में लोकसभा जम्मू-कश्मीर को लेकर एक संकल्प लिया गया था। संसद ने एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित कर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर अपना हक जताते हुए कहा था कि यह भारत का अटूट अंग है।

 

कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर पाक का कब्जा

पाक अधिकृत कश्मीर (POK) का क्षेत्रफल भारत कश्मीर से बड़ा है। इसकी सीमा पश्चिम में पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनवाला से, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वखन कॉरिडोर, उत्तर में चीन के जिंगजियांग ऑटोनॉमस रीजन और पूर्व में जम्मू-कश्मीर और चीन से मिलती है।

बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह विलय को लेकर असमंजस की स्थिति में थे। कश्मीर रियासत की लगभग तीन चौथाई आबादी मुसलमानों की थी लेकिन इसके राजा हरि सिंह हिंदू थे। तत्कालीन लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर के भारत में विलय का समर्थन किया था लेकिन राजा हरि सिंह बेहद धीमी गति से विचार कर रहे थे। 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली लेकिन कश्मीर ने विलय पर निर्णय नहीं लिया।

24 अक्टूबर 1947 का दिन था। पाकिस्तान समर्थित हजारों कबायली पठानों ने कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी। मार-काट को अंजाम देते हुए ये कबायली राजधानी श्रीनगर की ओर बढ़ने लगे। पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने की योजना बनाई थी।

गैर-मुस्लिमों की हत्या और लूटपाट की खबरें पाकर हरिसिंह 25 अक्टूबर 1947 को श्रीनगर छोड़कर भाग गए। उन्हें जम्मू स्थित महल पहुंचा दिया गया। कबायली आक्रमण से घबराए हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई।

इस घड़ी में बिना विलय हुए भारत ने मदद से इनकार कर दिया। 26 अक्टूबर 1947 को ही सरदार पटेल के करीबी और गृह  मंत्रालय के सचिव वीपी मेनन कश्मीर पहुंचे और विलय के दस्तावेज पर महाराजा से दस्तखत करवा लिए। इस तरह कश्मीर का भारत में विलय हुआ।

हालांकि जब तक भारतीय सेना कश्मीर में पहुंची, इसके एक बड़े हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा हो चुका था। इस बीच 31 दिसंबर 1947 को कश्मीर मसले को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू संयुक्त राष्ट्र लेकर गए। यूएन के हस्तक्षेप से 1 जनवरी 1949 को भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्धविराम की घोषणा कराई गई। युद्धविराम की घोषणा के बाद पाकिस्तान का कब्जा बरकरार रहा।

1962 के युद्ध में भारत ने खोया बड़ा इलाका

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अक्साई चिन शामिल नहीं है। 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के बाद कश्मीर के उत्तर-पूर्व में चीन से सटे इलाके अक्साई चिन पर चीन का कब्जा है। भारत का दावा है कि चीन ने करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर वाले अक्साई चीन पर अवैध कब्जा किया हुआ है। पाकिस्तान ने चीन के इस कब्जे को मान्यता दी है। चीन ने यहां नेशनल हाइवे 219 बनाया जो उसके पूर्वी प्रांत शिन्जियांग को जोड़ता है। जम्मू-कश्मीर और अक्साई चिन को अलग करने वाली रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है।

भारत-चीन सीमा विवाद

ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1914 में शिमला समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मैकमोहन रेखा का निर्धारण किया। यह भी मानना है कि इस सीमा रेखा का निर्धारण हिमालय के सर्वोच्च शिखर तक किया गया है। हालांकि चीन इसे नहीं मानता है और अक्साई चीन के अलावा अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता है।

2017 में ऐसी खबरें आई थी कि चीन अरुणाचल प्रदेश के बदले भारत को अक्साई चीन देने पर राजी है। एक दशक से भी अधिक समय तक भारत के साथ चीन की विशेष प्रतिनिधि वार्ता का नेतृत्व करने वाले कम्युनिस्ट नेता दाई बिंगुओ ने पेइचिंग के एक पब्लिकेशन को दिए इंटरव्यू में यह सुझाव दिया था। चीन अरुणाचल प्रदेश को भी तिब्बत का हिस्सा मानता है जो भारत के सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है।

  • सरकार ने स्पष्ट किया है कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है और यह चीन को उच्चतम स्तरों सहित कई अवसरों पर स्पष्ट कर दिया गया है. चीन ने भारत के 43,180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत विदेश मंत्रालय के चीन प्रभाग से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 1962 के बाद से जम्मू कश्मीर में भारत की भूमि का लगभग 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूभाग चीन के कब्जे में है. मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ‘इसके अतिरिक्त 2 मार्च 1963 को चीन तथा पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित तथाकथित चीन.पाकिस्तान ‘सीमा करार’ के तहत पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर के 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अवैध रूप से चीन को दे दिया था.’
  •  विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है और यह बात उच्चतम स्तरों सहित कई अवसरों पर चीन को स्पष्ट कर दी गयी है.’ विदेश मंत्रालय का यह बयान ऐसे समय में महत्वपूर्ण है जब चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ को लेकर दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हैं. यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है . इसी कारण भारत ने चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पर आयोजित सम्मेलन का बहिष्कार किया था.
  • लोकसभा में कुछ समय पहले पेश दस्तावेजों में मंत्रालय ने कहा था कि साल 1996 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति च्यांग चेमिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने एलएसी पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली के कदम के बारे में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. जून 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान दोनों पक्षों में से प्रत्येक ने इस बारे में विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करने पर सहमति जताई थी ताकि सीमा मुद्दे के समाधान का ढांचा तैयार करने की संभावना तलाशी जा सके. इस विषय पर अब तक दोनों पक्षों की कई बैठकें हो चुकी है लेकिन सीमा विवाद पर कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है.

  • सूचना के अधिकार के तहत विदेश मंत्रालय से यह पूछा था कि चीन ने भारत के कितने क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है और इस बारे में सरकार ने क्या पहल की है. रक्षा मामलों के विशेषज्ञ राहुल के भोंसले ने कहा कि पिछले 30 साल से सीमा मुद्दे पर चर्चा चल रही है लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा है और एक बड़ा क्षेत्र अभी भी चीन के कब्जे में है और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण की घटनाएं भी जारी है.
  • उन्होंने कहा कि वास्तव में चीन की ऐसी गतिविधियों से सचेत होने की जरूरत है और उसका इरादा बिल्कुल स्पष्ट है. हमें चीन के संदर्भ में 1962 के बाद की स्थिति में सामरिक परिपेक्ष में अपनी नीति को देखना होगा . सामरिक मामलों के जानकार राजीव नयन ने कहा कि हमारी नीति काफी रक्षात्मक नजर आती है और चीन इसी का फायदा उठाता है. हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस विषय को प्रभावी ढंग से उठाना चाहिए और जापान, वियतनाम और सिंगापुर जैसे देशों से रक्षा एवं अन्य संबंधों को बढ़ाना चाहिए.

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