विवाद / राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे पर विदेश मंत्री ने कहा- कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी

शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में गैर-हिंदी भाषी और हिंदी भाषी प्रदेशों के लिए तीन भाषाओं का फॉर्मूला गैर-हिंदी भाषी प्रदेश में अंग्रेजी, क्षेत्रीय और हिंदी भाषा पढ़ाए जाने का प्रस्ताव

नई दिल्ली. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रविवार को कहा कि केंद्र सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है। कोई भी भाषा किसी पर थोपी नहीं जाएगी। नई शिक्षा नीति में तीन भाषाओं के नियम को लागू करने से पहले सरकार सभी लोगों से चर्चा जरूर करेगी।

जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘‘नेशनल एजुकेश पॉलिसी ने मानव संसाधन मंत्रालय को केवल अपना ड्राफ्ट पेश किया है। सामान्य जनता से इस बारे में फीडबैक लिया जाएगा। प्रदेश सरकारों से बातचीत की जाएगी। इसके बाद ड्राफ्ट फाइनल किया जाएगा। केंद्र सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है। कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी।’’

तमिलनाडु की शिक्षा नीति दो भाषाओं पर आधारित
द्रमुक नेता एमके स्टालिन ने कहा कि प्री-स्कूल से 12वीं कक्षा तक हिंदी पढ़ाए जाने का प्रस्ताव चौंकाने वाला है। यह देश का विभाजन कर देगा। 1968 से राज्य में केवल दो भाषाओं के फॉर्मूले पर शिक्षा नीति चल रही है। तमिलनाडु में केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। मक्कल निधि मय्यम के प्रमुख कमल हासन ने कहा कि चाहे भाषा हो या फिर कोई परियोजना, अगर हमें यह पसंद नहीं है तो इसे थोपा नहीं जाना चाहिए।

यह है शिक्षा नीति का ड्राफ्ट
शिक्षा नीति का मसौदा वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन ने तैयार किया है। मसौदा शुक्रवार को सामने आया। मसौदे में प्रस्ताव दिया गया- तीन भाषाओं के फॉर्मूले को पूरे देश में लागू किए जाने की जरूरत है। 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति शुरू होने के बाद ही यह फॉर्मूला अपनाया गया था और यह जारी रहेगा।

रिसर्च में सामने आया है कि 2-8 वर्ष की आयु के बच्चे भाषाएं जल्द सीखते हैं। बहुभाषी फॉर्मूला बच्चों के लिए काफी फायदेमंद हैं। इसलिए बच्चों को शुरुआती चरण से ही तीन भाषाओं की शिक्षा दी जाए। जो बच्चे अपनी कोई एक भाषा बदलना चाहता है, वह ऐसा छठवीं कक्षा में कर सकता है।

इसलिए है विवाद
मसौदे में प्रस्ताव दिया गया है कि हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी-अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य क्षेत्र की भाषा की शिक्षा दी जाए। वहीं, गैर-हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषा की शिक्षा दी जाए। इसी प्रस्ताव का दक्षिण की राजनीतिक पार्टियां विरोध कर रही हैं।

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