गलवान घाटी पर चीन के दावे को भारत ने बताया- अमान्य, कहा- अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेंगे

India China Face off: विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव () ने बताया कि विदेश मंत्री जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री के बीच लद्दाख में हालिया घटनाक्रम को लेकर फोन पर बातचीत हुई.

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नई दिल्ली. पूर्वी लद्दाख (East Ladakh) स्थित गलवान घाटी (Galwan Valley) पर चीनी संप्रभुता के दावे को भारत (India China Rift) ने खारिज करते हुए स्पष्ट कह दिया है कि यह ‘अमान्य’ और ‘बढ़ा-चढ़ाकर’ बताया गया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि भारत देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सोमवार रात चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल सहित 20 सैन्यकर्मी शहीद हो गए थे. इस सैन्य टकराव के कारण दोनों देशों के बीच क्षेत्र में सीमा पर पहले से ही तनावपूर्ण हालात और खराब हो गए .

दूसरी ओर चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने आरोप लगाया कि भारत ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी LAC पार किया. इस पूरे घटनाक्रम पर चीन में भारत के राजदूत रहे गौतम बंबावले ने कहा कि ‘चीन यह भूल गया है कि भारत LAC पर उसकी ‘डेफनिशन या ओपनियन’ को स्वीकार नहीं करेगा.’

बंबावले ने कहा- ‘चीन एकतरफा तरीके से यह तय करने की कोशिश कर रहा है कि LAC कहां है. यह हास्यास्पद है. चीन की PLA सेना ने हमारी सीमाओं पर शांति और समृद्धि बनाए रखने के उद्देश्य से किये गये सभी द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन किया है. चीन को अपनी नीति के बारे में फिर से सोचना चाहिए.

20 भारतीय सैनिक शहीद

बता दें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा था कि भारत शांति चाहता है लेकिन अगर उकसाया गया तो मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है. इस बीच सोमवार रात की झड़पों के बाद गलवान घाटी में सामान्य स्थिति बहाल करने के उद्देश्य से लगातार तीसरे दिन गुरुवार को भारतीय और चीनी सेनाओं ने मेजर जनरल-स्तर की वार्ता की. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी.

गलवान घाटी में सोमवार की शाम भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैन्यकर्मी शहीद हो गये थे. इस झड़प में भारतीय सेना के लगभग 18 जवान गंभीर रूप से घायल हो गये थे. सूत्रों ने कहा कि मेजर जनरल स्तरीय बातचीत में गलवान घाटी से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया को लागू करने पर चर्चा हुई थी. छह जून को दोनों पक्षों के बीच उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता में इसी पर सहमति बनी थी.

The Galwan Valley will always remain a part of India, the grandson ...

दोनों पक्ष अपने-अपने दूतावासों के माध्यम से नियमित संपर्क में 
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अपनी मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि दोनों पक्ष अपने-अपने दूतावासों और विदेश कार्यालयों के माध्यम से नियमित संपर्क में हैं और जमीनी स्तर पर भी संपर्क कायम रख रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘सीमा के मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कामकाजी प्रणाली समेत हमारी अन्य स्थापित कूटनीतिक प्रणालियों पर बातचीत जारी है.’

श्रीवास्तव ने कहा, ‘हम सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन-चैन बनाए रखने की जरूरत पर और मतभेदों को संवाद के माध्यम से सुलझाने पर पूरी तरह दृढ़संकल्पित हैं, वहीं उसी समय जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा था, हम भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिए भी पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं.’

विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई टेलीफोन वार्ता में भी भारत ने ‘कड़े शब्दों’ में अपना विरोध जताया और कहा कि चीनी पक्ष को अपने कदमों की समीक्षा करनी चाहिए और स्थिति में सुधार के लिए कदम उठाने चाहिए. (एजेंसी इनपुट के साथ)

चीन की विस्तारवादी नीति / चीन का 6 देशों की 41.13 लाख स्क्वायर किमी जमीन पर कब्जा, ये उसकी कुल जमीन का 43%; भारत की भी 43 हजार वर्ग किमी जमीन

  • 949 में कम्युनिस्ट शासन आते ही चीन ने तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान और इनर मंगोलिया पर कब्जा किया; हॉन्गकॉन्ग 1997 और मकाउ 1999 से कब्जे में
  • देश, जमीन के अलावा समंदर पर भी चीन की दावेदारी, 35 लाख स्क्वायर किमी में फैले दक्षिणी चीन सागर पर हक जताता है, यहां आर्टिफिशियल आइलैंड भी बना चुका

नई दिल्ली. रूस और कनाडा के बाद सबसे बड़ा देश है चीन। चीन का कुल एरिया 97 लाख 6 हजार 961 वर्ग किमी में फैला हुआ है। चीन की 22 हजार 117 किमी लंबी सीमा 14 देशों से लगती है। ये दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसकी सीमाएं सबसे ज्यादा देशों से मिलती हैं और इन सभी देशों के साथ चीन का किसी न किसी तरह का सीमा विवाद चल रहा है।

चीन के नक्शे में 6 देश पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, इनर मंगोलिया या दक्षिणी मंगोलिया, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और मकाउ देखे ही होंगे। ये वो देश हैं, जिन पर चीन ने कब्जा कर रखा है या इन्हें अपना हिस्सा बताता है। इन सभी देशों का कुल एरिया 41 लाख 13 हजार 709 वर्ग किमी से ज्यादा है। यह चीन के कुल एरिया का 43% है।

6 देश, जिन पर चीन का कब्जा या दावा

1. पूर्वी तुर्किस्तान

चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान पर 1949 में कब्जा किया था। चीन इसे शिनजियांग प्रांत बताता है। यहां की कुल आबादी में 45% उइगर मुस्लिम हैं, जबकि 40% हान चीनी हैं। उइगर मुस्लिम तुर्किक मूल के माने जाते हैं। चीन ने तिब्बत की तरह ही शिनजियांग को भी स्वायत्त क्षेत्र घोषित कर रखा है।

2. तिब्बत

23 मई 1950 को चीन के हजारों सैनिकों ने तिब्बत पर हमला कर दिया और उस पर कब्जा कर लिया। पूर्वी तुर्किस्तान के बाद तिब्बत, चीन का दूसरा सबसे बड़ा प्रांत है। यहां की आबादी में 78% बौद्ध हैं। 1959 में चीन ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को बिना बॉडीगार्ड के बीजिंग आने का न्योता दिया था, लेकिन उनके समर्थकों ने उन्हें घेर लिया था, ताकि चीन गिरफ्तार न कर सके। बाद में दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी। 1962 में भारत-चीन के बीच हुए युद्ध के पीछे ये भी एक कारण था।

3. दक्षिणी मंगोलिया या इनर मंगोलिया

दूसरे विश्व युद्ध के बाद चीन ने इनर मंगोलिया पर कब्जा कर लिया था। 1947 में चीन ने इसे स्वायत्त घोषित किया। एरिया के हिसाब से इनर मंगोलिया, चीन का तीसरा सबसे बड़ा सब-डिविजन है।

4. ताइवान

चीन और ताइवान के बीच अलग ही रिश्ता है। 1911 में चीन में कॉमिंगतांग की सरकार बनी। 1949 में यहां गृहयुद्ध छिड़ गया और माओ त्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने कॉमिंगतांग की पार्टी को हराया। हार के बाद कॉमिंगतांग ताइवान चले गए। 1949 में चीन का नाम ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ पड़ा और ताइवान का ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ पड़ा। दोनों देश एक-दूसरे को मान्यता नहीं देते। लेकिन, चीन दावा करता है कि ताइवान भी उसका ही हिस्सा है।

5. हॉन्गकॉन्ग

हॉन्गकॉन्ग पहले चीन का ही हिस्सा था, लेकिन 1842 में ब्रिटिशों के साथ हुए युद्ध में चीन को इसे गंवाना पड़ा। 1997 में ब्रिटेन ने चीन को हॉन्गकॉन्ग लौटा दिया, लेकिन इसके साथ ‘वन कंट्री, टू सिस्टम’ समझौता भी हुआ, जिसके तहत चीन हॉन्गकॉन्ग को अगले 50 साल तक राजनैतिक तौर पर आजादी देने के लिए राजी हुआ। हॉन्गकॉन्ग के लोगों को विशेष अधिकार मिले हैं, जो चीन के लोगों को नहीं हैं।

6. मकाउ

मकाउ पर करीब 450 साल तक पुर्तगालियों का कब्जा था। दिसंबर 1999 में पुर्तगालियों ने इसे चीन को ट्रांसफर कर दिया। मकाउ को ट्रांसफर करते समय भी वही समझौता हुआ था, जो हॉन्गकॉन्ग के साथ हुआ था। हॉन्गकॉन्ग की तरह ही मकाउ को भी चीन ने 50 साल तक राजनैतिक आजादी दे रखी है।

भारत के कितने हिस्से पर चीन का कब्जा है?
इसी साल 11 मार्च को लोकसभा में दिए जवाब में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने बताया था कि चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार स्क्वायर किमी के हिस्से पर अपनी दावेदारी करता है। जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार स्क्वायर किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है।

इसके अलावा 2 मार्च 1963 को चीन-पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके का 5 हजार 180 स्क्वायर किमी चीन को दे दिया था। माना जाए तो अभी जितने भारतीय हिस्से पर चीन का कब्जा है, उतना एरिया स्विट्जरलैंड का भी नहीं है। कुल मिलाकर चीन ने भारत के 43 हजार 180 स्क्वायर किमी पर कब्जा जमा रखा है, जबकि स्विट्जरलैंड का एरिया 41 हजार 285 स्क्वायर किमी है।

11 मार्च को संसद में दिया जवाब

सिर्फ देश या जमीन ही नहीं, समंदर पर भी अपना हक जताता है चीन
1949 में कम्युनिस्ट सरकार बनने के बाद से ही चीन दूसरे देशों, इलाकों पर कब्जा जमाता रहता है। चीन की सीमाएं 14 देशों से लगती है, लेकिन एक रिपोर्ट बताती है कि चीन 23 देशों के इलाकों को अपना हिस्सा बताता है।

इतना ही नहीं चीन दक्षिणी चीन सागर पर भी अपना हक जताता है। इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला यह सागर 35 लाख स्क्वायर किमी में फैला हुआ है। यह सागर इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और ब्रुनेई से घिरा है। लेकिन, सागर पर इंडोनेशिया को छोड़कर बाकी सभी 6 देश अपना दावा करते हैं।

आज से कुछ सालों पहले तक इस सागर को लेकर कोई तनातनी नहीं होती थी। लेकिन, आज से करीब 5 साल पहले चीन के समंदर में खुदाई करने वाले जहाज, ईंट और रेत लेकर दक्षिणी चीन सागर पहुंचे। पहले यहां एक छोटी समुद्री पट्टी पर बंदरगाह बनाया गया। फिर हवाई जहाजों के उतरने के लिए हवाई पट्टी। और फिर देखते ही देखते चीन ने यहां आर्टिफिशियल द्वीप ही तैयार कर सैन्य अड्डा बना दिया।

चीन ने दक्षिणी चीन सागर में स्प्रेटली चेन के पास आर्टिफिशियल आइलैंड बनाए हैं।

चीन के इस काम पर जब सवाल उठे, तो उसने दावा किया कि दक्षिणी चीन सागर से उसका ताल्लुक 2 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। इस सागर पर पहले जापान का कब्जा हुआ करता था, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के तुरंत बाद चीन ने इस पर अपना हक जता दिया।

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