वैज्ञानिक क्यों मान रहे हैं कि कोरोना वायरस दोबारा लौटेगा?

कोरोना वायरस (Coronavirus) की इस पहली लहर के गुजरने के बाद भी वायरस का खतरा खत्म नहीं होगा, बल्कि स्पेनिश फ्लू (Spanish flu) की तरह दोबारा-तिबारा लौट सकता है. इसपर हुई एक महत्वपूर्ण स्टडी साइंस जर्नल (Science journal) में प्रकाशित हुई.

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दुनिया में कोरोना पॉजिटिव (corona positive) मरीजों की संख्या 2 लाख 30 हजार से ज्यादा हो चुकी है, वहीं 1 लाख 60 हजार से ज्यादा जानें जा चुकी हैं. भारत में भी संक्रमितों (corona infected patients in India) का आकंड़ा 16 हजार पार कर चुका है. वायरस के संक्रमण की तेजी पर कंट्रोल के लिए लगभग पूरी दुनिया लॉकडाउन या किसी न किसी किस्म के प्रतिबंध में जी रही है. इसी बीच वैज्ञानिक ये देखने की कोशिश कर रहे हैं कि कोविड-19 की पहली लहर  (first wave of Covid-19) गुजरने के बाद क्या होगा? और क्या कदम उठाने होंगे ताकि SARS-CoV-2 को भविष्य में रोका जा सके?

साइंस जर्नल (Science journal) में छपी एक स्टडी में इस बारे में विस्तार से बताया गया है. शोधकर्ताओं को इसके बाद 2 संभावनाएं दिखती हैं. पहली तो ये कि SARS-CoV-2 को वैक्सीन के जरिए पूरी तरह से खत्म किया जा सकेगा. हालांकि इसपर ज्यादातर एक्सपर्ट सहमत नहीं हैं. ये भी माना जा रहा है कि इंफ्लूएंजा की तरह ही ये मौसमी बीमारी बन सकता है, जो हर मौसम आया करेगा. ये मानने के लिए वैज्ञानिकों के पास काफी कारण भी हैं कि ये हर ठंड में कोरोना का अटैक हो सकता है.

कोरोना की एक लहर के बाद भी ये बीमारी खत्म होगी या नहीं, इसपर कई बातें असर डालेंगी.

पहली बात तो ये कि क्या सर्दी या गर्मी के मौसम का कोरोना वायरस पर कोई असर पड़ता है? Indian Council of Medical Research (ICMR) के वरिष्ठ वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस गर्मी में खत्म हो सकता है, ऐसा फिलहाल नहीं कहा जा सकता. University of Maryland School of Medicine ने भी कोरोना प्रभावितों देशों के डाटा लेकर इसे समझने की कोशिश की. इस शोध में शामिल वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हो सकता है वायरस 40 डिग्री के आसपास खुद ही खत्म हो जाएं लेकिन अभी तक इसे समझने के लिए कोई डाटा नहीं मिला है.

एंटीबॉडी की क्या होगी भूमिका
दूसरा, अब तक ये साफ नहीं हुआ है कि क्या इस वायरस के पहले अटैक के बाद विकसित हुई एंटीबॉडी लंबे वक्त तक या कितने वक्त तक कारगर रहने वाली है. अगर इसके पहले हमले के बाद पैदा हुई इम्युनिटी लगभग 40 हफ्ते तक रहती है, जैसा कि Human coronavirus OC43 (मौसमी सर्दी-खांसी)और Human coronavirus HKU1 के मामले में होता है, तब ये वायरस एक बड़ूी आबादी को हर साल बीमार बना सकता है. वहीं अगर कोरोना के लिए पैदा इम्युनिटी लगभग 2 साल के मानी जाए तो वायरस हर 2 साल बाद आ सकता है.

क्रॉस इम्युनिटी की पड़ताल
तीसरा- इस मामले में रिसर्चर ये देखने की कोशिश कर रहे हैं कि SARS-CoV-2 और दूसरे कोरोना वायरस के मामले में क्रॉस इम्युनिटी कितनी है. इसका मतलब ये है कि अगर हम एक तरह के कोरोना वायरस से संक्रमित होते हैं तो हमारे शरीर में पैदा एंटीबॉडी क्या दूसरे कोरोना वायरस पर भी काम करेगी. जैसे सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS-CoV-1) से संक्रमित हो चुका शख्स सर्दी (Human coronavirus OC43) के लिए इम्यून हो जाता है.

मर्स जैसे कोरोना वायरस से तुलना करें तो कोविड-19 उतना जानलेवा नहीं है लेकिन जो बात इसे सबसे खतरनाक बना रही है, वो है इसकी संक्रामकता. बिना लक्षणों के भी लोगों के भीतर ये वायरस हो सकता है और बीमारी एक से दूसरे तक तुरंत फैल जाती है.

सर्दी और पतझड़ के बीच इसका आउटब्रेक काफी खतरनाक हो सकता है

कौन से मौसम में होगा खतरनाक
सबसे जरूरी बात ये है कि कोविड-19 खत्म होने में कितना वक्त लेता है, और तब तक ये कितनों को संक्रमित बना पाता है. इसके आधार पर ही पक्का हो सकेगा कि ये वायरस लौटकर कब और कैसे आएगा. अबतक के प्रमाणों के आधार पर वैज्ञानिक ये मानकर चल रहे हैं कि हर कोरोना वायरस हर साल सर्दी और वसंत के बीच आएगा तो संक्रमण उतना खतरनाक नहीं होगा, जबकि सर्दी और पतझड़ के बीच इसका आउटब्रेक काफी खतरनाक हो सकता है.

5 सालों बाद भी आ सकता है
यानी ये कि कोविड -19 का लौटना हमारे शरीर में पैदा इम्युनिटी पर निर्भर करता है. अगर ये इम्युनिटी 5 साल तक टिक जाए तो कोरोना का संक्रमण हर पांचवे साल पर होगा. अगर ये इम्युनिटी 2 सालों तक रहे तो वायरस हर दूसरे साल अटैक करेगा, जब हमारी इम्युनिटी कमजोर हो चुकी होगी. अगर हमारे भीतर कोरोना फैमिली के दूसरे वायरसों के संक्रमण से पैदा इम्युनिटी कोविड-19 पर भी काम कर सके (यानी क्रॉस इम्युनिटी हो) तब इस साल किसी वक्त खत्म होने के बाद ये सीधा 2024 में हमला करेगा.

रुक-रुककर सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी
फिलहाल वैक्सीन के आने में लगभग सालभर का वक्त है. ऐसे में कोरोना की संक्रामकता को देखते हुए एक्सपर्ट्स का मानना है कि फिलहाल सोशल डिस्टेंसिंग जैसी सावधानियां ही बचाव कर सकती हैं. हालांकि ये भी माना जा रहा है कि जैसे ही सोशल डिस्टेंसिंग या लॉकडाउन खत्म होगा, वायरस तेजी से फैलेगा. यही वजह है कि वैज्ञानिक इसपर इंटरमिटेंट यानी रुक-रुककर सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर दे रहे हैं.

बिना लक्षणों के भी लोगों के भीतर ये वायरस हो सकता है और बीमारी तुरंत फैल जाती है

एक बार में लंबे समय तक सोशल डिस्टेंसिंग खतरनाक
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के Harvard T.H. Chan School of Public Health विभाग में इसपर एक स्टडी हो चुकी है, जिसके नतीजे बताते हैं किथोड़े-थोड़े अंतराल के बाद लगातार अगले 2 सालों तक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना पड़ सकता है. इसके बाद भी अगर वायरस खत्म होता लगे तो भी नजर रखनी होगी क्योंकि कभी भी ये वायरस दोबारा हमला कर सकता है. कयास ये है कि साल 2024 के आखिर तक SARS-CoV-2 का दोबारा हमला हो सकता है. इस हमले का डर तब और ज्यादा हो जाता है अगर हममें कोरोना के लिए विकसित इम्यूनिटी लंबे समय तक के लिए टिकाऊ न हो. इसके उलट one-time social distancing यानी एक बार में ही लंबे समय के लिए सोशल डिस्टेंसिंग करने के बाद इसे जब हटाएंगे तो वायरस का हमला कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है.

चूंकि इस वायरस के बारे में फिलहाल ज्यादा कुछ पता नहीं इसलिए वैज्ञानिक सीरोलॉजिकल जांच पर भी जोर दे रहे हैं. इससे एक बार कोरोना संक्रमित हो चुके शख्स के शरीर में एंटीबॉडी की जांच से देखा जा सकेगा कि इम्युनिटी कितने वक्त तक काम करती है और इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वायरस का अगला हमला कब होगा.

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