एमएसपी क्या है, जिसके लिए किसान सड़कों पर हैं और सरकार के नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं? क्या महत्व है किसानों के लिए एमएसपी का?

किसानों और विपक्षी पार्टियों का आरोप- सरकार के नए कानून एमएसपी का लाभ खत्म कर देंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पलटवार- जो कई दशक तक सत्ता में रहे वह किसानों से झूठ बोल रहे हैं

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केंद्र सरकार खेती-किसानी के क्षेत्र में सुधार के लिए तीन विधेयक लाई है। इन विधेयकों को लोकसभा पारित कर चुकी है। इन विधेयकों से पंजाब और हरियाणा समेत कुछ राज्यों में किसान नाराज हैं। उन्हें अपनी उपज पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की चिंता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यह साफ कर चुके हैं कि एमएसपी खत्म नहीं होने वाला। वह विपक्षी पार्टियों पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे हैं। एनडीए की घटक पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी इस मुद्दे पर सरकार से नाराज है। हरसिमरत कौर बादल ने तो केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। किसानों और विपक्षी पार्टियों को एमएसपी खत्म होने का डर है।

क्या है एमएसपी या मिनिमम सपोर्ट प्राइज?

  • एमएसपी वह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी गारंटेड मूल्य है जो किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम हो। इसके पीछे तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े। उन्हें न्यूनतम कीमत मिलती रहे।
  • सरकार हर फसल सीजन से पहले सीएसीपी यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है। यदि किसी फसल की बम्पर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती है, तब एमएसपी उनके लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइज का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों में गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है।

इसकी जरूरत क्यों है और यह कब लागू हुई?

  • 1950 और 1960 के दशक में किसान परेशान थे। यदि किसी फसल का बम्पर उत्पादन होता था, तो उन्हें उसकी अच्छी कीमतें नहीं मिल पाती थी। इस वजह से किसान आंदोलन करने लगे थे। लागत तक नहीं निकल पाती थी। ऐसे में फूड मैनेजमेंट एक बड़ा संकट बन गया था। सरकार का कंट्रोल नहीं था।
  • 1964 में एलके झा के नेतृत्व में फूड-ग्रेन्स प्राइज कमेटी बनाई गई थी। झा कमेटी के सुझावों पर ही 1965 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना हुई और एग्रीकल्चरल प्राइजेस कमीशन (एपीसी) बना।
  • इन दोनों संस्थाओं का काम था देश में खाद्य सुरक्षा का प्रशासन करने में मदद करना। एफसीआई वह एजेंसी है जो एमएसपी पर अनाज खरीदती है। उसे अपने गोदामों में स्टोर करती है। पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के जरिये जनता तक अनाज को रियायती दरों पर पहुंचाती है।
  • पीडीएस के तहत देशभर में करीब पांच लाख उचित मूल्य दुकानें हैं जहां से लोगों को रियायती दरों पर अनाज बांटा जाता है। एपीसी का नाम 1985 में बदलकर सीएपीसी किया गया। यह कृषि से जुड़ी वस्तुओं की कीमतों को तय करने की नीति बनाने में सरकार की मदद करती है।

एमएसपी का किसानों को किस तरह लाभ हो रहा है?

  • खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों के राज्यमंत्री रावसाहब दानवे पाटिल ने 18 सितंबर को राज्यसभा में बताया कि नौ सितंबर की स्थिति में रबी सीजन में गेहूं पर एमएसपी का लाभ लेने वाले 43.33 लाख किसान थे, यह पिछले साल के 35.57 लाख से करीब 22 प्रतिशत ज्यादा थे।
  • राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले पांच साल में एमएसपी का लाभ उठाने वाले गेहूं के किसानों की संख्या दोगुनी हुई है। 2016-17 में सरकार को एमएसपी पर गेहूं बेचने वाले किसानों की संख्या 20.46 लाख थी। अब इन किसानों की संख्या 112% ज्यादा है।
  • रबी सीजन में सरकार को गेहूं बेचने वाले किसानों में मध्यप्रदेश (15.93 लाख) सबसे आगे था। पंजाब (10.49 लाख), हरियाणा (7.80 लाख), उत्तरप्रदेश (6.63 लाख) और राजस्थान (2.19 लाख) इसके बाद थे। यह हैरानी वाली बात है कि कृषि कानूनों को लेकर मध्यप्रदेश में कोई आंदोलन नहीं हुआ। और तो और, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी मध्यप्रदेश से ही ताल्लुक रखते हैं।
  • खरीफ सीजन में एमएसपी पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 2018-19 के 96.93 लाख के मुकाबले बढ़कर 1.24 करोड़ हो गई यानी 28 प्रतिशत ज्यादा। खरीफ सीजन 2020-21 के लिए अब तक खरीद शुरू नहीं हुई है। 2015-16 के मुकाबले यह बढ़ोतरी 70% से ज्यादा है।

इस कानून से किसानों को मिलने वाले एमएसपी पर क्या असर होगा?

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