किसान आंदोलन में खालिस्तानी ताकतों का हाथ होने की बात सबसे पहले पाकिस्तान की ‘इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशन्स’ के इशारे पर फैलाई
राष्ट्रीय जांच एजेंसी की FIR में आरोप हैं कि सिख फॉर जस्टिस, बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान टाइगर फोर्स और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स जैसे प्रतिबंधित संगठन लोगों में भय का माहौल बनाकर सरकार के खिलाफ विद्रोह की साजिश कर रहे हैं।
नई दिल्ली। किसान आंदोलन से जुड़े कई लोगों को हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी NIA ने नोटिस जारी किया। यह नोटिस बीते साल 15 दिसंबर को दर्ज हुई एक FIR पर कार्रवाई करते हुए भेजा गया। इस FIR में आरोप हैं कि सिख फॉर जस्टिस, बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान टाइगर फोर्स और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स जैसे प्रतिबंधित संगठन लोगों में भय का माहौल बनाकर सरकार के खिलाफ विद्रोह की साजिश कर रहे हैं।
FIR में यह भी आरोप लगाए गए हैं कि ये तमाम संगठन प्रदर्शनकारियों को विदेशों से पैसा भेज रहे हैं ताकि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार किया जाए और प्रदर्शन तेज होते रहें। इन्हीं आरोपों की जांच के लिए NIA ने किसान आंदोलन से जुड़े रहे दर्जनों लोगों को बतौर गवाह पेश होने के लिए नोटिस जारी किए हैं। ये पहला मौका नहीं है, जब दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन से जुड़े लोगों पर इस तरह के आरोप लगे हैं।
कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने यह कहा था, ‘हमें इंटेलिजेन्स की रिपोर्ट मिली है। जो बता रही है कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी घुस आए हैं।’ किसान आंदोलन में खालिस्तान समर्थकों के शामिल होने के ऐसे ही आरोप भाजपा के कई नेता भी लगा चुके हैं और टीवी चैनल भी बीते महीनों में इस तरह की बात कई बार दोहराते रहे हैं। लेकिन अब ‘द डिसइंफोलैब’ नाम की एक फैक्ट-चेक वेबसाइट ने अपनी पड़ताल के आधार पर दावा किया है कि इन तमाम आरोपों के पीछे असल में पाकिस्तान की सोची-समझी साजिश रही है।
पाकिस्तान की मीडिया विंग की साजिश
‘द डिसइंफोलैब’ के मुताबिक किसान आंदोलन में खालिस्तानी ताकतों का हाथ होने की बात सबसे पहले पाकिस्तान की ‘इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशन्स’ यानी ISPR के इशारे पर फैलाई गई। ISPR पाकिस्तानी सेना का मीडिया विंग है। भारत के खिलाफ दुष्प्रचार के कई तरीके ISPR अपनाता है और हर उस संगठन को मजबूती देने का भी काम करता है जो भारत के खिलाफ हों।
सिख फॉर जस्टिस, बब्बर खालसा और खालिस्तान टाइगर फोर्स जैसे प्रतिबंधित संगठनों को भी ISPR समर्थन देता रहा है। ये सभी संगठन खालिस्तान की मांग को लेकर देश में जन समर्थन जुटाने के मौकों की तलाश में रहते हैं। हालांकि भारत में इन संगठनों का कोई जनाधार नहीं है लिहाजा इनकी घोषणाओं और अपीलों पर कोई कान भी नहीं धरता।
बीते साल जब पंजाब में किसान आंदोलन की शुरुआत हुई तो ‘सिख फ़ॉर जस्टिस’ नाम के संगठन ने इसे अपना एजेंडा चलाने के मौके की तरह देखा। संगठन ने घोषणा की इस आंदोलन में शामिल होने वालों को वह पैसा देगा। संगठन ने यह भी घोषणा की कि 15 अगस्त के दिन खालिस्तानी झंडा फहराने वालों को भी उनकी तरफ से लाखों रुपए का इनाम दिया जाएगा। भारत में तो ‘सिख फॉर जस्टिस’ की ऐसी अपीलों का कोई असर नहीं हुआ, लेकिन पाकिस्तान और ISPR ने इस मौके को लपक लिया।
पुराना फोटो शेयर कर फैलाया प्रोपेगैंडा
पंजाब में आंदोलन जब मजबूत होने लगा और हजारों लोग सड़कों पर आने लगे तो पाकिस्तान ने इसे ऐसा प्रचारित करना शुरू कर दिया जैसे ये लोग भारत से अलग होने के लिए आंदोलन कर रहे हों। इसी कड़ी में ISPR के प्रोपेगैंडा का प्रचार करने वाली वीणा मलिक ने तब एक फर्जी फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किया। जिसमें एक निहंग सिख खालिस्तान की मांग का पोस्टर लिए नजर आ रहा था। इस फोटो का किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं था और ये काफी पुराना फोटो था। लेकिन यहां से किसान आंदोलन को खालिस्तान की मांग का आंदोलन बताने वाली बहस चल निकली।
कृषि कानूनों के विरोध की आड़ में खालिस्तानी तत्वों का सक्रिय होना चिंताजनक है। यह चिंता तबसे और बढ़ी है जबसे अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि इस आंदोलन में प्रतिबंधित खालिस्तानी तत्वों ने घुसपैठ कर ली है। उन्होंने यह बात तब कही जब कंर्सोटियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन की ओर से पेश वकील ने यह आरोप लगाया कि सिख फॉर जस्टिस नामक प्रतिबंधित संगठन विरोध प्रदर्शनों में शामिल है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल से हलफनामा पेश करने को कहा। पता नहीं इस हलफनामे में क्या होगा, लेकिन यह एक तथ्य है कि बीते करीब 50 दिनों में खालिस्तानी तत्व किसानों के बीच घुसपैठ करते दिखे हैं। इसके अलावा दिल्ली में जारी किसान आंदोलन के बीच खालिस्तानियों ने कई देशों में भारतीय दूतावासों के सामने प्रदर्शन किया है
किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी तत्वों की नए सिरे से सक्रियता
किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी तत्वों की नए सिरे से सक्रियता इसलिए चिंता का कारण है, क्योंकि विभिन्न देशों में उनकी गतिविधियां पहले से जारी हैं। खालिस्तानी तत्वों को खाद-पानी देने का काम पाकिस्तान कर रहा है। पाकिस्तान की शह पर ही एक अर्से से कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में बैठे खालिस्तानी तत्व इंटरनेट मीडिया पर 2020 में अलग खालिस्तान की मांग को लेकर जनमत संग्रह कराने का अभियान चला रहे थे। इसमें उन्हेंं मुंह की खानी पड़ी, लेकिन उनकी गतिविधियां अब भी जारी हैं। खालिस्तानी विदेश में रह कर पंजाब में हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने का काम करते हैं। हाल में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पंजाब में आतंकी गतिविधियों के मामले में आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू समेत 10 के खिलाफ चार्जशीट दायर की है। इसके अलावा हाल में दुबई से डिर्पोट किए गए खालिस्तानी आतंकी सुखी बिकरीवाल को गिरफ्तार किया गया है। वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के इशारे पर पंजाब में टारगेट किलिंग कराता था। ऐसे कुछ तत्व ब्रिटेन और कनाडा में भी हैं। उन पर पंजाब में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं पर हमले कराने के आरोप हैं।
खालिस्तानियों का पाकिस्तान से पुराना गठजोड़
खालिस्तानियों का पाकिस्तान से पुराना गठजोड़ है। खालिस्तानी यह देखने को तैयार नहीं कि पाकिस्तान में किस तरह सिख लड़कियों को उसी तरह अगवा किया जा रहा है, जैसे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की लड़कियों को। इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है कि खालिस्तानी उस पाकिस्तान की कठपुतली बने हुए हैं, जहां सिखों का जीना मुहाल है। वे उस नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हैं जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सताए गए हिंदुओं और सिखों को नागरिकता देने का प्रविधान रखता है। खालिस्तान समर्थकों के वैचारिक दिवालियापन के ऐसे तमाम उदाहरण हैं।
पाक ने भारत से घृणा के चलते अपनी एक मिसाइल का नाम अहमद शाह अब्दाली के नाम पर रखा
पाकिस्तान ने भारत से घृणा के चलते अपनी एक मिसाइल का नाम अहमद शाह अब्दाली के नाम पर रखा है। अब्दाली ने 18वीं शताब्दी में भारत पर कई हमले कर भीषण नरसंहारों को अंजाम दिया था। इनमें मथुरा, वृंदावन और अमृतसर में किए गए जनसंहार भी शामिल हैं। अब्दाली ने स्वर्ण मंदिर को दो बार गिराया और पवित्र अमृत सरोवर को गायों को काट कर भरा। पांच फरवरी, 1762 को अब्दाली ने हजारों की संख्या में सिखों का नरसंहार कराया, जिसमें अधिकतर स्त्रियां, बच्चे और वृद्ध थे। यह पंजाब के इतिहास में वड्डा घल्लूघारा के नाम से जाना जाता है। यह शर्म की बात है कि खालिस्तानी इसी अब्दाली को अपना राष्ट्रीय नायक मानने वाले पाकिस्तान से हाथ मिलाए हुए हैं और उसकी कठपुतली बने हुए हैं। दरअसल इस रोग की जड़ें कहीं अधिक गहरी और पुरानी हैं। अंग्रेजों ने जब बांटो और राज करो की नीति को लागू किया तो भारतीय समाज में तरह-तरह से फूट डालने के प्रयास किए।
सिखों का अंग्रेजीकरण
ये प्रयास सिर्फ राजनीतिक नहीं थे, बल्कि बौद्धिक स्तर पर भी थे। इसके भारतीय जनमानस पर दूरगामी प्रभाव हुए। सिखों को हिंदू समाज के विरुद्ध करने के लिए अंग्रेजों ने एक ईसाई पादरी सर जॉन अर्थर मैकालिफे को सिख इतिहास लिखने के काम पर लगाया। मैकालिफे ने सिखों में सुनियोजित तरीके से यह भ्रांति फैलाई कि सिख दर्शन दरअसल इब्राहिमी धर्मों जैसे इस्लाम और ईसाइयत के अधिक करीब है, न कि हिंदू धर्म के। यह इसलिए किया गया, ताकि सिखों का अंग्रेजीकरण करके उन्हेंं ईसाइयों और मुसलमानों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार किया जा सके। 1857 के बाद का ब्रिटिश आकलन यह था कि अगर भविष्य में भारत में बहुसंख्यक हिंदू समाज की ओर से ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह होता है तो उसे कुचलने के लिए सिख और मुस्लिम दस्तों का प्रयोग किया जा सकता है। जबकि इन छोटे अल्पसंख्यक समुदायों से ब्रिटिश सेना अकेले भी निपट सकती है। इस ब्रिटिश चालबाजी के चलते सिख समुदाय को बड़ा झटका 1947 में लगा, जब मुस्लिम लीग ने हिंदुओं के साथ-साथ सिख समुदाय का भी भीषण नरसंहार किया और पश्चिमी पंजाब से लाखों की संख्या में सिखों को सब कुछ छोड़कर पलायन करना पड़ा। इस जनसंहार और मानवीय त्रासदी की कहानी 1950 में खुद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ‘मुस्लिम लीग अटैक ऑन सिख्स एंड हिंदूज इन द पंजाब 1947’ के नाम से प्रकाशित कर चुका है। आज वह राजनीति दूसरी तरह से जारी है, जिसके तहत सिखों को हिंदू समाज से लड़ाकर भारत के विरोध में खड़ा करने के काम में तमाम वामपंथी और इस्लामिक कट्टरपंथी लगे हैं। आजादी के पहले सिखों और हिंदुओं के बीच खाई खोदने का काम ब्रिटिश साम्राज्य की आयु लंबी करने के लिए किया गया था। वर्तमान में यह भारत के एक महाशक्ति के रूप में उभार को रोकने के लिए किया जा रहा है।
किसान आंदोलन में खालिस्तान के नारे क्यों लगा रहे हैं
किसान नेताओं को इस पर विचार करना चाहिए कि किसान आंदोलन में खालिस्तान के नारे क्यों लगा रहे हैं? क्यों इस आंदोलन में कुछ लोग जब-तब भिंडरावाले के पोस्टर-बैनर लिए हुए दिख जाते हैं? पाकिस्तान के मंत्री ऐसे तत्वों को समर्थन क्यों दे रहे हैं? क्या इसलिए कि भारत सरकार पंजाब के हिस्से के पानी को पाकिस्तान की ओर जाने से रोकने की बात कर रही है? सवाल यह भी है कि भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वालों की अचानक खेती में क्या दिलचस्पी जगी है?