योगी सरकार का नया अध्यादेश, पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया तो अब ऐसे होगी रिकवरी
इस अध्यादेश के लागू होने के बाद यूपी में अब किसी आंदोलन, धरना-प्रदर्शन में अगर सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाएगा तो उसकी क्षतिपूर्ति करने का नियम भी इसी कानून में लाया जाएगा.
दरअसल, 19 दिसंबर को अचानक लखनऊ की सड़कों पर सीएए विरोध के दौरान हिंसा भड़क उठी थी. पुराने लखनऊ से लेकर हजरतगंज तक हिंसक भीड़ ने इस दौरान जमकर उत्पात मचाया. पुलिस से लेकर मीडिया पर भी हमला हुआ. दर्जनों गाड़ियां फूंक दी गईं, पुलिस चौकी को भी आग के हवाले कर दिया गया. इस घटना के बाद सीएम योगी ने ऐलान किया कि किसी भी आरोपी को बख्शेंगे नहीं. यही नहीं उपद्रवियों से सरकार और लोगों को हुए नुकसान की वसूली भी की जाएगी. इसके बाद महीने भर में कई लोगों की गिरफ्तारी हुई. मामले में पीएफआई की संलिप्तता भी सामने आई. उसके भी कई सदस्य गिरफ्तार किए गए.
पोस्टर लगे तो मचा बवाल
मामले में सरकार की तरफ से आरोपियों को नोटिसें भेजी गईं. जिसके बाद 5 मार्च को लखनऊ जिला प्रशासन की तरफ से लखनऊ के हजरतगंज सहित प्रमुख इलाकों में चौराहों पर आरोपी 57 लोगों की तस्वीरों का पोस्टर (Poster) लगाया दिया गया. पोस्टर लगते ही मामले ने तूल पकड़ लिया. पोस्टर में रिटायर्ड आईपीएस एसआर दारापुरी की भी तस्वीर थी. इस पर उन्होंने कहा कि हमें कोई नोटिस नहीं मिली. हम मानहानि का दावा करेंगे.
मामले ने तूल पकड़ा तो हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए 9 मार्च को मामले में सुनवाई की. सुनवाई करने वालों में चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ थी. पूरे मामले को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर में फोटो लगाना जायज नहीं है. यह निजता के अधिकार का हनन है. बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है.” इसके साथ ही अदालत ने सरकार को 16 मार्च को पोस्टर हटा दिए, यह हलफनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया है.हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई योगी सरकार
लेकिन योगी सरकार अपने निर्णय पर अड़ी रही और उसने 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर दी. मामले में 12 मार्च को सुनवाई हुई. इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत की बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि उन्हें आरोपियों का पोस्टर लगाने का अधिकार किस कानून के तहत मिला है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक शायद ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत उपद्रव के कथित आरोपियों की तस्वीरें होर्डिंग में लगाई जाएं. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद इस मामले को बड़ी बेंच के हवाले कर दिया. अब इस मामले की सुनवाई अगले हफ्ते 3 जजों की पीठ करेगी. इसके साथ ही इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हुई सुनवाई में अंतरिम आदेश भी नहीं दिया. कोर्ट ने कहा, ‘हम राज्य सरकार की चिंताओं को समझते हैं, लेकिन इस तरह का कोई कानून नहीं है, जिससे कि आपके इस कदम को जायज ठहराया जा सके.’