पश्चिम बंगाल से ग्राउंड रिपोर्ट:TMC का जोर बंगाल की बेटी के नारे पर तो BJP का ध्रुवीकरण पर फोकस; लेफ्ट-कांग्रेस के तो पोस्टर-बैनर भी नजर नहीं आ रहे
दोनों पार्टियां एक दूसरे पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रही हैं। अब चुनावों की तारीखों के ऐलान को लेकर भी आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में 8 चरणों में चुनाव कराए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा, 'जब तमिलनाडु और असम जैसे राज्यों में एक चरण में चुनाव करवाए जा रहे हैं तो फिर बंगाल में 8 चरणों में चुनाव क्यों?
कोलकाता। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान शुक्रवार को हुआ है, लेकिन भाजपा-तृणमूल के बीच सियासी खींचतान पिछले 2 साल से चल रही है। दुर्गा पूजा जैसे धार्मिक आयोजनों से लेकर लेकर रविंद्रनाथ ठाकुर, नेता जी सुभाषचंद्र बोस की जयंती के कार्यक्रमों के जरिए भी खूब राजनीति साधी गई। अब इस लड़ाई में केंद्र सरकार की CBI और राज्य सरकार की CID की भी एंट्री हो चुकी है। कोयला घोटाले में ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक की पत्नी को CBI ने नोटिस जारी किया है। उधर, राज्य सरकार की CID ने बंगाल भाजपा की नेता पामेला गोस्वामी को कोकीन केस में गिरफ्तार कर लिया।
दोनों पार्टियां एक दूसरे पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रही हैं। अब चुनावों की तारीखों के ऐलान को लेकर भी आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में 8 चरणों में चुनाव कराए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘जब तमिलनाडु और असम जैसे राज्यों में एक चरण में चुनाव करवाए जा रहे हैं तो फिर बंगाल में 8 चरणों में चुनाव क्यों? एक ही जिले में दो चरणों में चुनाव की क्या जरूरत थी।’ इस आरोप पर BJP के प्रदेश प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य का कहना है, ‘2011 में ममता बनर्जी ने ही ज्यादा चरणों में चुनाव करवाने की अपील की थी। चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से हों, इसलिए 8 चरण में करवाए जा रहे हैं।’
चुनाव के चरणों का अपना गणित है। दक्षिण बंगाल और जंगलमहल के इलाके में भाजपा मजबूत मानी जाती है। इस इलाके के ज्यादातर जिलों में एक या दो चरणों में चुनाव हैं, जबकि ममता की पकड़ वाले मुर्शिदाबाद, मालदा, हावड़ा, हुगली, साउथ नॉर्थ परगना जैसे जिलों में अलग-अलग कई चरणों में चुनाव है। इसके अलावा छठे चरण की 43 विधानसभा सीटों पर चुनाव राम नवमी के अगले दिन 22 अप्रैल को हैं। तृणमूल नेताओं का कहना है कि ऐसा जानबूझकर किया गया है। इन इलाकों में भाजपा राम कार्ड खेलना चाहती है।
चुनाव में बड़े पैमाने पर हिंसा की आशंका
चुनावों की घोषणा से एक दिन पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के नॉर्थ 24 परगना जिले में कार्यक्रम था, लेकिन उनके वहां पहुंचने से पहले ही श्यामनगर में BJP और तृणमूल कार्यकर्ताओं की बीच हिंसक झड़प हुई। दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं की तरफ से बम तक चले। बंगाल में इस तरह की हिंसा इन दिनों आम बात हो गई है। बंगाल की स्थानीय राजनीति के जानकार कहते हैं, ‘राज्य में कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक राजनीतिक भिड़ंत का सिलसिला बहुत पुराना है, पर इस बार चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर राजनीतिक हिंसा हो सकती है।’
लेफ्ट-कांग्रेस के झंडे-बैनर भी नहीं दिख रहे
तृणमूल और भाजपा काफी पहले से चुनावी तैयारियों में जुटे हुए हैं, लेकिन 34 साल तक बंगाल पर राज करने वाले लेफ्ट के खेमे में चुनाव की घोषणा के बाद भी कोई हलचल नहीं है। ऐसा ही हाल कांग्रेस का भी है। शहरी इलाके भाजपा-तृणमूल के झंडों से पटे हैं, लेकिन लेफ्ट-कांग्रेस के पोस्टर-बैनर गौर से देखने पर भी नजर नहीं आते हैं। लेफ्ट कार्यकर्ता इस बारे में कहते हैं कि हमारा बेस ग्रामीण इलाकों में हैं, तारीखों का ऐलान हो चुका है, अब हमारे प्रचार में तेजी आएगी।
ओवैसी की पार्टी का चुनाव लड़ना भी बंगाल में एक फैक्टर है। पिछले महीन 25 फरवरी को ओवैसी को कोलकाता में एक बड़ी रैली करनी थी, लेकिन ममता बनर्जी सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी थी। जिसके बाद उन्होंने हैदराबाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ममता सरकार पर जमकर हमला बोला था। बंगाल की 100 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं। ओवैसी के चुनाव लड़ने से ममता बनर्जी को कुछ नुकसान हो सकता है।
ममता का ‘बंगाल गौरव’ फार्मूला, भाजपा ध्रुवीकरण के सहारे
तृणमूल कांग्रेस ने नारा दिया है, ‘बंगाल को अपनी बेटी चाहिए’। इस नारे के साथ ममता बनर्जी के पोस्टर कोलकाता की गलियों में चस्पा हैं। तृणमूल प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह पर बार-बार निशाना साध कर चुनाव को स्थानीय बंगाली बनाम बाहरी बनाने की कोशिश भी कर रही हैं। कोयला घोटाला के मामले में नोटिस मिलने के बाद ममता अभिषेक के घर पहुंची और उनकी बेटी के साथ घर से बाहर आकर कहा कि केंद्र सरकार बंगाल की बेटियों को परेशान कर रहा है, बंगाल अभिषेक की बेटी के साथ है।
भाजपा के पास फिलहाल यह सबसे बड़ी परेशानी है कि राज्य में उसके पास ममता के कद का कोई बंगाली नेता नहीं हैं। तृणमूल के जय बांग्ला के जवाब में भाजपा ने सोनार बांग्ला का अभियान चलाया है। पर इस मुद्दे को लपकने में फिलहाल तृणमूल आगे दिखती है, लेकिन भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे उठाकर उम्मीद लगाए है कि हिंदू मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा विधानसभा चुनावों में भी भाजपा के पक्ष में आएगा।