इनके काम को सलाम / देश में सबसे ज्यादा चुनौतियां झेलनेवाले आईएएस हैं कश्मीर के शाहिद चौधरी, लोग घरों में रहें इसकी अपील मौलानाओं से करवाई

श्रीनगर डिप्टी कमिश्नर शाहिद ने अगस्त में जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद कर्फ्यू, दिसंबर में भयानक बर्फबारी और उसके बाद मार्च से कोरोना से पैदा हुए हालात का सामना किया इन्होंने कोरोना संक्रमितों तक पहुंचने के लिए आतंकियों को ट्रेस करने वाले इंटेलिजेंस सिस्टम का सहारा लिया, कैंसर और इमरजेंसी बीमारियों के लिए कंट्रोल रूम बनाया

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श्रीनगर. शाहिद चौधरी से मिलिए। 39 साल के श्रीनगर डिप्टी कमिश्नर शाहिद लाइन ऑफ कंट्रोल पर बसे राजौरी जिले से हैं। स्कूल जाने के लिए शाहिद को हर दिन पहाड़ी रास्तों पर 16 किमी पैदल चलना पड़ता था। आईएएस बनने से पहले उन्होंने वेटेनरी साइंस में बैचलर्स की डिग्री पूरी की और और फिर 2005 में आईएफएस भी क्वॉलिफाई किया।

पिछले साल अगस्त में जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद कर्फ्यू और पाबंदियां, फिर नवंबर-दिसंबर में भयानक बर्फबारी और इसके बाद मार्च से कोरोना से पैदा हुए हालातों के चलते वह पिछले एक साल में देश में सबसे ज्यादा चुनौतियां झेलनेवाले आईएएस ऑफिसर बन गए हैं।

श्रीनगर उन शहरों में शामिल है, जहां सबसे पहले कोरोना के चलते लॉकडाउन लगाया गया। यह शहर देश में कोरोना के बड़े हॉटस्पॉट में से एक है। लोगों से घरों में रहने की मिन्नतें करने से लेकर धार्मिक जमात इकट्ठा न हो इसके लिए इमामों को साथ लाने तक, शाहिद ने कोरोना पर काबू पाने के लिए हर फॉर्मूला अपनाया है। यहां तक की संक्रमित लोगों तक पहुंचने के लिए उन्होंने कश्मीर में आतंकियों को पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले इंटेलिजेंस तक का सहारा लिया।

पिछले दो महीनों से चल रहे लॉकडाउन के दौरान शाहिद 24 घंटे ड्यूटी पर हैं। वह अपने परिवार के साथ नहीं रह रहे हैं।

शाहिद बताते हैं कि जिन इलाकों में मैं जाता हूं वह कोरोना पॉजिटिव मरीजों के चलते सील्ड हैं। मैं और मेरा स्टॉफ सभी एहतियात रखते हैं लेकिन फिर भी संक्रमण होने का खतरा काफी ज्यादा है। इसलिए इन दिनों परिवार से दूर ही रहता हूं।

शाहिद कहते हैं, “मैं पिछले लॉकडाउन के वक्त भी श्रीनगर का डिप्टी कमिश्नर था। लेकिन कानून व्यवस्था से निपटने की चुनौतियां इस बार बिल्कुल अलग हैं। पिछली बार हमें फोर्सेस को अलर्ट रखना पड़ता था, न जाने कब जरूरत पड़ जाए। लेकिन इस बार हम एक ऐसी चीज से लड़ रहे हैं जो नजर भी नहीं आती। इसमें लोगों के सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत है।”

शाहिद के लिए चुनौतियां इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि वह घाटी में पोस्टेड हैं। जब पूरा देश लॉकडाउन में है तब कश्मीर में हालात कब खराब हो जाए, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां पिछले अगस्त में ही धारा 370 हटने के साथ बहुत कुछ बदला है।

शाहिद बताते हैं, “हमने मार्च के पहले हफ्ते में ही एहतियात बरतना शुरू कर दिया था। स्कूल कॉलेज और बिजनस संस्थान बंद करवा दिए थे और 18 मार्च से पूरे प्रदेश में लॉकडाउन लगा दिया। शुरुआत में जरूरी सामान को लेकर दिक्कतें आई। लेकिन लॉकडाउन के दस दिन में सबकुछ कंट्रोल में आ गया।”

हेल्थकेयर को छोड़ दें तो सभी जरूरी सर्विसेस से जुड़े सिर्फ 10-20 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ वह काम कर रहे हैं। इसमें पावर और वॉटर डिपार्टमेंट भी शामिल है। श्रीनगर में 220 बैंकों की शाखाएं हैं। लॉकडाउन लगते ही सबसे ज्यादा भीड़ यहीं देखने को मिली। 60 हजार से ज्यादा लोग पैसे निकालने बैंक ब्रांच पहुंच गए। वहां कुर्सियां लगवाई गई और सोशल डिस्टेंसिंग लागू करवाया। उससे पहले सरकारी राशन के 500 डिपो पर बैंक जैसे हालात बने थे। शहर को 25 जोन में बांटकर लॉकडाउन का पालन करवाया और लगभग 80-90 प्रतिशत लॉकडाउन सफल भी रहा।

शाहिद के लिए लोगों से जुड़ने का एक मजबूत हथियार बना है सोशल मीडिया। फिर चाहे वह जरूरतमंदों को खाने के पैकेट बांटने की बात हो या बांग्लादेश से श्रीनगर लौटने वाले स्टूडेंट्स से जुड़ी कोई जानकारी। वह कहते हैं शहर के लोगों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से घरों में रहने की अपील की और उसका असर भी हुआ।

शहर में इमरजेंसी केस, कैंसर, डायबिटीज, किडनी से जुड़ी दिक्कतों के पेशेंट्स के लिए शाहिद ने एक अलग कंट्रोल रूम शुरू किया। शाहिद बताते हैं जब हेल्पलाइन शुरू हुई तो पहले दिन 500 से ज्यादा फेक कॉल आए, ये चैक करने की सचमुच ये कंट्रोल रूम काम भी कर रहा है या नहीं।

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