इसलिए फेल हो रही कांग्रेस और आगे बढ़ रही BJP:जिसे पब्लिक ने ठुकराया, उसे कांग्रेस ने थिंकटैंक बनाया; जबकि बीजेपी का हर रणनीतिकार है माहिर खिलाड़ी

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नई दिल्ली। देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां हैं- बीजेपी और कांग्रेस। पांच राज्यों के चुनावों के नतीजों पर गौर करें तो एक तरफ बीजेपी बार-बार चुनाव में ये साबित करती है कि उनकी चुनाव मशीनरी और संगठन सर्वश्रेष्ठ हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस है, जो एक के बाद एक अपनी पकड़ वाले राज्य गंवाती जा रही है।

बीजेपी में अहम फैसले लेने वाली टॉप बॉडी है- बीजेपी संसदीय बोर्ड, वहीं कांग्रेस में अहम फैसले लेती है- कांग्रेस वर्किंग कमेटी।

हमने इन दोनों पार्टियों की टॉप बॉडी में शामिल लोगों की पड़ताल की है। बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल ज्यादातर सदस्य ऐसे लोग हैं, जो खुद चुनाव जीताने वाले नेता रहे हैं, जमीन और संगठन पर ठोस पकड़ रखते हैं और चर्चा में बने रहते हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में ऐसे नेता हैं, जो ना तो खुद चुनाव जीत पाते हैं, ना संगठन में पकड़ है। पार्टी के 21 में से 7 नेता 75 की उम्र पार कर चुके हैं, जबकि बीजेपी ने 75 की उम्र पार कर चुके ज्यादातर नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया है।

2013 के बाद बीजेपी चुनाव मशीन हो गई है। एक के बाद एक चुनाव जीतते हुए दस राज्यों में अपनी और सात राज्यों में गठबंधन की सरकार बना ली है। देश के कुल 17 राज्यों में बीजेपी का शासन है, जबकि कांग्रेस अब केवल दो राज्यों तक सिमट चुकी है, वहीं तीन राज्यों में उसकी गठबंधन की सरकार है।

बीजेपी संसदीय बोर्ड में संगठन के माहिर खिलाड़ी शामिल

बीजेपी में शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था संसदीय बोर्ड है। इसमें 11 सदस्य हैं, जिन्हें बीजेपी अध्यक्ष द्वारा चुना जाता है। फिलहाल इसमें सात सदस्य हैं, जबकि 4 पद खाली हैं। इनमें से एक पद भरने के लिए महिला नेता की तलाश है, जबकि दूसरे पद के लिए उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का नाम चर्चा में है।

जब भी पार्टी को राज्य के चुनावों के बाद मुख्यमंत्री के बारे में फैसला करना होता है, तो बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक होती है। यह संसदीय बोर्ड ही था, जिसने 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने का फैसला किया था।

दस राज्यों में बीजेपी की सरकारें, सात में गठबंधन
अरुणाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, असम और मणिपुर में बीजेपी की सरकार है, जबकि बिहार, हरियाणा, मेघालय, नागालैंड, पुडुचेरी, सिक्किम और त्रिपुरा में गठबंधन की सरकार चल रही है। आज की स्थिति में 10 राज्यों में बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है, वहीं 7 राज्यों में बीजेपी गठबंधन सरकार में है। इस तरह आज भी बीजेपी की 17 राज्यों में सरकार है। हालांकि, बीजेपी साल 2018 में अपने शिखर पर थी। देश के 29 राज्यों में से 21 राज्यों में बीजेपी की सरकारें थीं।

अब बात कांग्रेस के नेताओं की…

जिन्हें पब्लिक ने रिजेक्ट किया, वे CWC में

CWC के पांच नेता पिछले कुछ समय से लगातार चुनाव हार रहे हैं, जबकि बाकी की जमीनी पकड़ बेहद कमजोर है। उन्होंने राज्यसभा के जरिए ही पूरा सियासी सफर तय किया है। ऐसे में सवाल यह है कि पांच राज्यों के चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस अपनी कमजोर कड़ी के जरिए 2022, 2023 और 2024 में बीजेपी से कैसे मुकाबला करेगी? बीजेपी ने 4 राज्यों में जीत के साथ ही आगे की तैयारी शुरू कर दी है, जबकि कांग्रेस अभी हार की समीक्षा भी नहीं कर पाई है।

इसके अलावा कांग्रेस के तमाम नेता हैं, जो CWC में शामिल हैं, लेकिन वे अपना चुनाव भी नहीं जीत पा रहे हैं। आइए उनके बारे में बताते हैं…

अजय माकन : दिल्ली के कांग्रेस नेता अजय माकन अपने राज्य में कांग्रेस को पटरी पर नहीं ला पा रहे हैं। लंबे समय से खुद भी कोई चुनाव नहीं जीत सके हैं। डेढ़ साल से अधिक समय से वह राजस्थान में प्रभारी है, लेकिन अब तक पार्टी के भीतर विवाद खत्म नहीं करा पाए हैं। माकन को पंजाब में स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमैन बनाया गया, लेकिन वहां भी कांग्रेस बुरी तरह हार गई।

अंबिका सोनी : 80 साल की अंबिका सोनी दो दशक से अधिक समय से राज्यसभा के जरिए सियासत कर रही हैं। इस दौरान कभी भी जनता के जरिए चुनकर विधानसभा या लोकसभा नहीं पहुंचीं। जमीनी पकड़ लगभग शून्य, लेकिन कांग्रेस में पूरा दखल रखती हैं।

आनंद शर्मा : 69 साल के आनंद शर्मा ने भी ज्यादातर राजनीति राज्यसभा के जरिए की है। उनकी भी जमीन और संगठन पर पकड़ बहुत कमजोर है, लेकिन शर्मा भी कांग्रेस की कार्य समिति के लंबे समय से बने हुए हैं।

गाईखंगम गंगमई : 71 साल के गाईखंगम मणिपुर के डिप्टी सीएम रह चुके हैं। लंबे समय से विधायक हैं, लेकिन पिछले दो बार से राज्य में कांग्रेस सत्ता में नहीं आ पा रही। 2022 के चुनाव में भी कांग्रेस को करारी हार मिली है।

जितेंद्र सिंह: अलवर के पूर्व सांसद जितेंद्र सिंह 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार चुके हैं। उनके ओडिशा और असम में प्रभारी रहते हुए कांग्रेस हार चुकी है। पार्टी ने उन्हें 2017 में स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमैन बनाकर हिमाचल भेजा था, वहां भी कांग्रेस हार गई। इसके बावजूद उनकी ताकत में कोई कमी नहीं आई।

केसी वेणुगोपाल : केसी वेणुगोपाल कांग्रेस पार्टी में महासचिव पद पर हैं। वेणुगोपाल को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता है। वेणुगोपाल फिलहाल राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। पिछले दिनों 5 राज्यों में हुए चुनाव में करारी हार के बाद वेणुगोपाल जी-23 नेताओं के टारगेट पर आ गए हैं।

मुकुल वासनिक : मुकुल वासनिक महाराष्ट्र से कई बार सांसद रह चुके हैं। वह महज 25 साल की उम्र में सांसद निर्वाचित हुए थे। कांग्रेस संगठन में भी वह विभिन्न पदों पर रह चुके हैं, लेकिन जिस महाराष्ट्र से वह आते है। वहां कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।

ओमन चांडी : ओमन चांडी केरल में दो बार सीएम रह चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके हैं। केरल में कांग्रेस लगातार दो चुनाव हार चुकी है, तब भी वे कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य हैं।

ललथनहवला : ललथनहवला मिजोरम में चार बार सीएम रह चुके हैं। 2018 में मिजोरम में कांग्रेस हार गई। उसके बाद वहां मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है।

पी चिदंबरम : पिछले तीन दशक में पी. चिदंबरम कांग्रेस नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में वित्त और गृह मंत्री रह चुके हैं। उनका लंबा राजनीतिक सफर रहा है। पिछले दिनों पार्टी ने गोवा का प्रभारी बनाया, लेकिन वह कांग्रेस की वापसी नहीं करा पाए।

रणदीप सुरजेवाला : हरियाणा में 2019 में लगातार दो चुनाव रणदीप सुरजेवाला हार चुके हैं। उनको जींद उपचुनाव और कैथल विधानसभा चुनाव में मात खानी पड़ी, लेकिन संगठन में उनकी ताकत कम नहीं हुई। वह पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं।

रघुवीर मीणा : राजस्थान के उदयपुर से आने वाले 63 वर्षीय रघुवीर मीणा लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं। उसके बाद भी वह पूरी पार्टी के लिए फैसला लेने वाली कांग्रेस कार्य समिति जैसे महत्वपूर्ण समिति के सदस्य बने हुए हैं।

तारिक अनवर : तारिक अनवर का लंबा राजनीतिक अनुभव है। वह एनसीपी में भी रह चुके हैं। कई बार कटिहार से सांसद रह चुके हैं। राज्यसभा से सांसद भी थे। 2019 में लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। जहां से तारिक अनवर आते हैं, वहां कांग्रेस की स्थिति लंबे समय से बेहद खराब है। तीन दशक से अधिक समय से बिहार की सत्ता से कांग्रेस बाहर है।

CWC में स्थायी आमंत्रित सदस्य

CWC के सदस्यों के अलावा समिति में स्थायी आमंत्रित सदस्यों की भी भरमार है। इनमें शामिल हैं डॉ.चेल्ला कुमार, डॉ.अजोय कुमार, अधीर रंजन चौधरी, अविनाश पांडे, बी चरण दास, देवेंद्र, यादव, दिग्विजय सिंह, दिनेश जी राव, हरीश चौधरी, एचके पाटिल, जयराम रमेश, केएच मुनीयप्पा, बीएम टैगोर, मनीष चत्रथ, मीरा कुमार, पीएल पुनिया, पवन कुमार बंसल, रजनी पाटिल, राजीव शुक्ला, सलमान खुर्शीद, शक्ति सिंह गोहिल, तारिक हमीद और विवेक बंसल शामिल हैं।

इसमें कई ऐसे नेता हैं, जो अपना चुनाव नहीं जीत पा रहे हैं। दिग्विजय सिंह, विवेक बंसल, देवेंद्र यादव अपनी सीट तक नहीं निकाल पा रहे हैं।

विवेक बसंल को 2022 के यूपी चुनाव में महज 15 हजार वोट मिले, लेकिन ये सभी कार्य समिति के स्थायी आमंत्रित सदस्य बने हुए हैं।

इसी तरह से महाराष्ट्र से आने वाले अविनाश पांडे आज तक एक भी चुनाव नहीं लड़ पाए। सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस को यूपी विधानसभा चुनाव में काफी कम वोट मिले। वह पांचवें नंबर पर थीं।

मोदी के पीएम बनने से पहले 16 राज्यों में थीं कांग्रेस सरकारें

हिमाचल, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, झारखंड, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, असम, अरुणाचल, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और पुडुचेरी में कांग्रेस या गठबंधन की सरकारें थीं, लेकिन अब केवल राजस्थान, छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकार रह गई है। फिलहाल तमिलनाडु, महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है।

कैसे और कितनी बार हुआ CWC का पुनर्गठन

  • CWC का अंतिम पुनर्गठन मार्च 2018 में हुआ था, जब राहुल गांधी ने दिसंबर 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला था। सत्र में, AICC ने उन्हें CWC के पुनर्गठन के लिए अधिकृत किया था।
  • पिछला पुनर्गठन मार्च 2011 में हुआ था। सितंबर 2010 में सोनिया गांधी के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद पुनर्गठन किया गया था। तब अर्जुन सिंह और मोहसिना किदवई को मुख्य CWC से हटा कर उन्हें स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया था।
  • CWC में तब मनमोहन सिंह, एके एंटनी, राहुल गांधी, मोतीलाल वोरा, गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह, जनार्दन द्विवेदी, ऑस्कर फर्नांडीस, मुकुल वासनिक, बीके हरिप्रसाद, बीरेंद्र सिंह, धनी राम शांडिल, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, हेमो प्रोवा, सैकिया, सुशीला तिरिया, प्रणब मुखर्जी और गुलाम नबी आजाद थे। पांच पद खाली थे।
  • सभी कांग्रेस अध्यक्षों ने अपनी खुद की CWC बनाने की कोशिश की है। दरअसल, कोई भी पार्टी अध्यक्ष CWC में आलोचकों को शामिल करने का जोखिम नहीं उठाता। पार्टी संविधान के मुताबिक, 25 सदस्यों में केवल 12 ही चुनाव के जरिये आ सकते हैं। इसलिए पार्टी अध्यक्ष हमेशा हावी रहता है।
  • 1992 में तिरुपति में AICC के पूर्ण सत्र में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव ने CWC के लिए चुनाव कराया। हालांकि, तब राव ने ये कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि कमेटी में एससी, एसटी और महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने अर्जुन सिंह और शरद पवार को नॉमिनेटेड कैटेगरी में शामिल किया।
  • 1997 में कलकत्ता अधिवेशन में CWC का चुनाव हुआ। तब सीताराम केसरी अध्यक्ष थे। मतगणना अगले दिन तक चली। इसमें अहमद पटेल, जितेंद्र प्रसाद, माधव राव सिंधिया, तारिक अनवर, प्रणब मुखर्जी, आरके धवन, अर्जुन सिंह, गुलाम नबी आजाद, शरद पवार और कोटला विजया भास्कर रेड्डी जीते।
  • 1969 के बंबई अधिवेशन में कांग्रेस में दो फाड़ होने के चलते अंतिम समय में चुनाव टाल दिया गया था। तब युवा तुर्क चंद्रशेखर को 10 सर्वसम्मति से निर्वाचित उम्मीदवारों में शामिल किया गया था।

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