यूपी: वसूली वाले पोस्टर नहीं हटे, तो सपा नेता ने बगल में कुलदीप सेंगर, चिन्मयानंद के पोस्टर लगाए

यूपी सरकार ने लखनऊ में 19 दिसंबर, 2019 को सड़कों पर CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान तोड़-फोड़ करने के आरोपियों के पोस्टर लगाए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 मार्च को यूपी सरकार को उन पोस्टरों को हटाने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस कार्रवाई से संविधान के आर्टिकल 21 में दिए गए मौलिक अधिकार का हनन होता है. इस आर्टिकल के तहत किसी को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. इन पोस्टरों में कांग्रेस नेता सदफ जाफर, पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी, रिहाई मंच के मोहम्मद शोएब के नाम भी शामिल थे.

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लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ. यहां पोस्टर-पोस्टर वाला खेला चल रहा है. राज्य सरकार ने वसूली वाले कई पोस्टर लगाए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि इन्हें हटाइए. पोस्टर नहीं हटे. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने इसे बड़ी बेंच को खिसका दिया. अब समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह ने लोहिया चौराहे पर वसूली पोस्टर के बगल में एक और पोस्टर लगा दिया. इसमें बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर और पूर्व मंत्री चिन्मयानंद की फोटो है. कुलदीप सेंगर पर रेप का आरोप साबित हो चुका है और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. वहीं चिन्मयानंद रेप का आरोपी है.

सपा नेता ने कहा- इनसे बेटियां सावधान रहें

सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह ने ट्विटर पर पोस्टर शेयर किया, जो वसूली पोस्टर के बगल में काले रंग में दिख रहा है. इसमें लिखा है, ‘ये हैं प्रदेश की बेटियों के आरोपी, इनसे रहें सावधान.’ कुलदीप सेंगर और चिन्मयानंद के नाम और फोटो के साथ उन पर लगे चार्ज भी लिखे गए हैं. नीचे लिखा है, ‘बेटियां रहें सावधान, सुरक्षित रहे हिंदुस्तान.’

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आईपी सिंह पहले बीजेपी में रह चुके हैं. कल्याण सिंह सरकार में राज्यमंत्री थे. फोटो शेयर करते हुए आईपी सिंह ने लिखा, जब प्रदर्शनकारियों की कोई निजता नहीं है और उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी योगी सरकार होर्डिंग नहीं हटा रही है तो ये लीजिए फिर. लोहिया चौराहे पर मैंने भी कुछ कोर्ट द्वारा नामित अपराधियों का पोस्टर जनहित में जारी कर दिया है, इनसे बेटियां सावधान रहें.

क्या है पूरा मामला

यूपी सरकार ने लखनऊ में 19 दिसंबर, 2019 को सड़कों पर CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान तोड़-फोड़ करने के आरोपियों के पोस्टर लगाए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 मार्च को यूपी सरकार को उन पोस्टरों को हटाने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस कार्रवाई से संविधान के आर्टिकल 21 में दिए गए मौलिक अधिकार का हनन होता है. इस आर्टिकल के तहत किसी को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. इन पोस्टरों में कांग्रेस नेता सदफ जाफर, पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी, रिहाई मंच के मोहम्मद शोएब के नाम भी शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजा

इस आदेश को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 12 मार्च को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक तो नहीं लगाई, लेकिन कोई आदेश भी नहीं दिया. इसे तीन जजों की बड़ी बेंच की तरफ से भेज दिया. यूपी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि मामला बेहद महत्वपूर्ण है. कोर्ट ने पूछा कि क्या राज्य सरकार के पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है? हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए.