देश के बड़े हिस्से में जन्माष्टमी का त्योहार कल मना लिया गया है। नंदगांव, वृंदावन, उज्जैन, काशी और जगन्नाथपुरी में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा चुका है लेकिन मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में श्रीकृष्ण बाल रूप में आज आधी रात को प्रकट होंगे।
कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से सालों की प्रथा टूटी है। मथुरा के सभी मंदिरों को प्रशासन ने तीन दिनों के लिए बंद कर दिया है। हर साल इस मौके पर बड़ी संख्या में देश-दुनिया से लोग मथुरा आते थे। पहली बार जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा में भक्त नहीं है। मंदिरों के बाहर भक्तों की लम्बी-लम्बी क़तारें नहीं हैं। मंदिरों में पूजा होगी। आराधना होगी। परंपरा भी। मान्यताओं के मुताबिक कृष्ण अपने बाल रूप में आधी रात को प्रकट भी होंगे।
#WATCH: 'Mangal aarti' being performed at Shri Krishna Janmasthan Temple in Mathura as the city celebrates #Janmashtami today. pic.twitter.com/ABPvGCohEG
— ANI UP (@ANINewsUP) August 12, 2020
भगवान श्री कृष्ण, विष्णु के अवतार हैं इसलिए वैष्णव परम्पराओं के मुताबिक तिथि जब सूर्य को स्पर्श करती है तो उसकी मान्यता है। उस तिथि की मान्यता है। इस लिहाज से 12 अगस्त यानी आज भगवान की जन्मभूमि मथुरा में उनका जन्मोत्सव बहुत ही धूमधाम, भव्यता और दिव्यता के साथ मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी अलग-अलग क्यों मनाई जाती है?
हर साल तिथि को लेकर कुछ ना कुछ मतभेद रहता है और ये अनादिकाल से चला आ रहा है। साधू-संतों के द्वारा कई बार कोशिश हुई कि इसका कोई हल निकले और पूरे देश में एक ही दिन जन्मोत्सव मनाया जाए लेकिन अभी तक सफलता मिली नहीं है।
संतों की मान्यता है कि पर्व की तिथि स्थान से ग्राह्य होनी चाहिए। स्थान के अनुरूप होनी चाहिए। व्रत आदि की तिथि पंचाग आदि से तय की जा सकती हैं। जैसे काशी में जिस दिन शिवरात्री मनाई जा रही है उसके आगे-पीछे शिवरात्री मनाने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि भगवान शिव ने स्वयं उसको अपना परम धाम या निज निवास कहा है। अयोध्या में जिस दिन रामनवमी का आयोजन हो रहा है उसके आगे-पीछे रामनवमी मनाने का कोई मतलब नहीं है। ठीक इसी तरह जिस दिन मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य उत्सव मनाया जा रहा है उसी दिन समूची दुनिया में जन्माष्टमी मनाई जानी चाहिए।
मथुरा को तीन लोक से न्यारी कहा गया है। इसीलिए ना कि यहां श्री कृष्ण पैदा हुए। अब अगर हम मथुरा में जन्मोत्सव मनाए जाने से पहले अपने यहां मना लेते हैं तो फिर मथुरा का क्या मोल रह गया? इसलिए इसअपर किसी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए।
इस बार का आयोजन कैसा होगा?
पिछले साल जन्माष्टमी के मौक़े पर दो दिन के भीतर चालीस लाख भक़्त दर्शन करने आए थे। यहां लगभग दो महीने का बड़ा दिव्य मेला होता था। इस दौरान रोज़ लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते थे। इस बार तो इंटर स्टेट बस सर्विस ही शुरू नहीं हुई है। क़ायदे से ट्रेन और फ्लाइट्स नहीं चल रहीं हैं।
बहुत आसान है कि भावुकता में अक्सर हम रोग और शोक को गले लगा लेते हैं। इस बार हमने इसी से बचने की कोशिश की है लेकिन मंदिर में जो कार्यक्रम होगा उसकी भव्यता में रत्ती भर की भी कमी नहीं होगी। सब वैसे ही होगा जैसा होता आ रहा है। हां, कुछ ऐसे कार्यक्रम थे जो बिना दर्शकों की उपस्थिति के नहीं हो सकते थे तो उन्हें स्थगित किया गया है जैसे इस बार लीलाओं का मंचन नहीं होगा।
भगवान के जन्मदिन के अवसर पर शोभा मंच पर पुष्पांजलि कार्यक्रम होता था। इसमें हजारों भक्त शामिल होते थे। इस बार ये कार्यक्रम मंच पर ना होकर मंदिर में ही होगा। सीमित तरीके से होगा।
हर साल भगवान का प्रसाद बड़ी मात्रा में बनता था और कई दिनों तक बंटता था वो इस बार नहीं होगा। इस बार मंदिर में जो भोग लगता था वही लगेगा। भंडारा का आयोजन नहीं होगा। जन्मोत्सव की अगली सुबह यहां नंदउत्सव मनाया जाता था। इसमें भी हजारों-लाखों की संख्या में भक़्त शामिल होते थे। बड़ा भव्य कार्यक्रम होता था। नंदउत्सव तो मनाया जाएगा लेकिन वो मंदिर के पुजारी ही करेंगे। हर साल की तरह इस बार नहीं होगा।
इसको ऐसे समझा जाए कि जिन कार्यक्रमों में भक्तों की उपस्थिति रहती थी। जहां उनके होने से कार्यक्रम की शोभा बढ़ती थी उसे स्थगित कर दिया गया है। शास्त्रों के अनुसार और परम्परा के मुताबिक होने वाली पूजा में कोई कमी नहीं होगी।