पेट्रोल-डीजल पर कीमत से 60 फीसदी टैक्स, केंद्र सरकार का हिस्सा 37 तो स्टेट का 23 फीसदी हिस्सा; मोदी राज में पेट्रोल पर टैक्स 3 गुना तो डीजल पर 7 गुना बढ़ा

केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी के जरिए टैक्स लेती है। मई 2014 में जब मोदी सरकार आई थी, तब केंद्र सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 10.38 रुपए और डीजल पर 4.52 रुपए टैक्स वसूलती थी। ये टैक्स एक्साइज ड्यूटी के रूप में लिया जाता है। मोदी सरकार में 13 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई है, लेकिन घटी सिर्फ तीन बार। आखिरी बार मई 2020 में एक्साइज ड्यूटी बढ़ी थी।

नई दिल्ली। पेट्रोल की लगातार बढ़ती कीमतों ने लोगों को हलकान किया हुआ है। आलम यह है कि सरकारी तेल कंपनियों ने आज लगातार 10वें दिन भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि की है। प्रतिदिन बढ़ रही तेल की कीमतें नए-नए रिकॉर्ड तोड़ रही है। देश में पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल जितना ज्यादा होता है, उसकी कीमत भी उतनी ही ज्यादा है। अगर कभी यह सस्ता होता भी है, तो भी हमारी जेब पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ता। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में कमी के बावजूद हमारे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमत कम नहीं होती। देश में ग्राहक पेट्रोल व डीजल के बेस प्राइस यानी एक्स फैक्टरी का लगभग तीन गुना ज्यादा दे रहे हैं। बेतहाशा बढ़ती पेट्रोल की कीमतों से आम आदमी परेशान है। साल 2021 में पेट्रोल अब तक 6.07 रुपये महंगा हो चुका है। पिछले 10 महीने में ही इसके दाम में करीब 17 रुपये की बढ़ोतरी हो चुकी है।

एक ही राज्य में इसलिए होता है पेट्रोल की कीमत में अंतर

प्रीमियम पेट्रोल, जिस पर अधिक कर लगाया जाता है, की कीमत महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में 100 रुपये प्रति लीटर के आंकड़े को पार कर चुकी है। मध्यप्रदेश के अनूपपुर में पेट्रोल की कीमत 100.25 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 90.35 रुपये है। भोपाल में भी प्रीमियम पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर के पार पहुंच गई। वैट जैसे स्थानीय करों और माल भाड़े के आधार पर ईंधन की कीमतें राज्यों में अलग-अलग होती हैं। देश में राजस्थान पेट्रोल पर सबसे अधिक मूल्य वर्धित कर (वैट) वसूलता है, जबकि इसके बाद मध्यप्रदेश का स्थान है। मध्यप्रदेश में 33 फीसदी के साथ ही 4.5 रुपये लीटर का कर और पेट्रोल पर एक फीसदी उपकर लगाया जाता है। डीजल पर कर 23 फीसदी और तीन रुपये प्रति लीटर तथा एक फीसदी उपकर है। दरअसल, एक ही राज्य के अलग-अलग पेट्रोल पंप में परिवहन लागत भी अलग-अलग होती है, जिसके चलते निवासियों के लिए ईंधन की कीमत भी बढ़ जाती है और उन्हें अतिरिक्त राशि चुकानी पड़ती है।

पेट्रोल की कीमतें मध्य प्रदेश और राजस्थान में शतक लगा चुकी हैं। डीजल भी बराबरी से उसके पीछे-पीछे चल रहा है। दोनों की कीमतों में कुछ न कुछ पैसे लगभग रोजाना बढ़ोतरी हो रही है। 9 फरवरी से अब तक दिल्ली में पेट्रोल का दाम 3.28 रुपए और डीजल का दाम 3.49 रुपए बढ़ चुका है। केंद्र सरकार का कहना है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम करना उसके हाथ में नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कीमतों में बढ़ोतरी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। ये सब तब हो रहा है, जब कच्चे तेल की कीमत कांग्रेस सरकार की तुलना में लगभग आधी हो चुकी है। अब जब मोदी ने बढ़ती कीमतों के लिए पिछली कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया है, तो ऐसे में ये जानना भी जरूरी है कि मनमोहन सरकार से मोदी सरकार तक पेट्रोल-डीजल पर कितना टैक्स बढ़ गया? सरकार की कमाई कितनी बढ़ गई? सरकारी तेल कंपनियों का मुनाफा कितना बढ़ गया? इसे टूलकिट में समझते हैं…

कच्चे तेल पर मोदी का नसीब अच्छा है

मई 2014 में जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब कच्चे तेल की कीमत 106.85 डॉलर प्रति बैरल थी। एक बैरल यानी 159 लीटर। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के तीन महीने बाद ही यानी सितंबर में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर के नीचे आ गई और तब से नीचे ही है। सत्ता में आने के बाद जब कच्चे तेल की कीमतें घटीं, तो कांग्रेस ने इसे मोदी का नसीब बताया था। प्रधानमंत्री मोदी भी कहते थे कि मेरे नसीब से अगर जनता का भला हो रहा है, तो दिक्कत क्या है? कच्चे तेल की कीमत को लेकर मोदी का नसीब वाकई अच्छा है। जनवरी 2021 में कच्चे तेल की कीमत 54.79 डॉलर प्रति बैरल थी। यानी, मनमोहन सरकार जाने के बाद से कच्चे तेल की कीमतें लगभग आधी हो गई हैं।

लेकिन जनता का नसीब अच्छा नहीं है

कच्चे तेल की कीमतों पर मोदी का नसीब तो अच्छा है, लेकिन जनता का नहीं क्योंकि कीमतें कम होने के बाद भी पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम नहीं हुईं। उल्टा हम पर टैक्स का बोझ बढ़ गया। इसको ऐसे देखिए कि जब मोदी सत्ता में आए, तब पेट्रोल पर 34% और डीजल पर 22% टैक्स लगता था, लेकिन आज पेट्रोल पर 64% और डीजल पर 58% तक टैक्स लग रहा है। यानी अब हम पहले की तुलना में पेट्रोल पर दोगुना और डीजल पर ढाई गुना टैक्स दे रहे हैं।

इसलिए हर दिन महंगा हो रहा है तेल

कच्चे तेल की कीमत बीते 13 महीनों में अपने उच्चतम स्तर पर हैं। इस साल कच्चे तेल के दामों में 23 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। एक जनवरी को कच्चे तेल की कीमत 51 डॉलर प्रति बैरल थी जो आज की तारीख में यह 63 डॉलर से अधिक है। वहीं, कोरोना से उबर रही दुनिया में आर्थिक गतिविधियां बढ़ी हैं, जिससे ईंधन की मांग में इजाफा हुआ है। परिणामस्वरूप इसकी कीमत भी बढ़ गई है।

घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमत लगातार बढ़ने का कारण यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं और सरकार इस पर एक्साइज ड्यूटी कम नहीं कर रही है। दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल पर 32.90 रुपये और डीजल पर 31.80 रुपये एक्साइज ड्यूटी लगती है। इसके अलावा राज्य सरकारें भी पेट्रोल-डीजल पर वैट भी लगाती हैं। इसके चलते कीमतों में इजाफा हो रहा है।

13 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी, घटाई सिर्फ तीन बार

केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी के जरिए टैक्स लेती है। मई 2014 में जब मोदी सरकार आई थी, तब केंद्र सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 10.38 रुपए और डीजल पर 4.52 रुपए टैक्स वसूलती थी। ये टैक्स एक्साइज ड्यूटी के रूप में लिया जाता है। मोदी सरकार में 13 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई है, लेकिन घटी सिर्फ तीन बार। आखिरी बार मई 2020 में एक्साइज ड्यूटी बढ़ी थी। इस वक्त एक लीटर पेट्रोल पर 32.98 रुपए और डीजल पर 31.83 रुपए एक्साइज ड्यूटी लगती है। मोदी के आने के बाद केंद्र सरकार पेट्रोल पर तीन गुना और डीजल पर 7 गुना टैक्स बढ़ा चुकी है।

इससे सरकार की कमाई तीन गुना बढ़ी

पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी से केंद्र सरकार की अच्छी-खासी कमाई होती है। मोदी सरकार ने तो इससे कमाई तीन गुना तक बढ़ा ली है। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल यानी PPAC के मुताबिक 2013-14 में सिर्फ एक्साइज ड्यूटी से सरकार ने 77,982 करोड़ रुपए कमाए थे। जबकि 2019-20 में 2.23 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई हुई। 2020-21 के पहली छमाही में यानी अप्रैल से सितंबर तक मोदी सरकार को 1.31 लाख करोड़ रुपए की कमाई हुई। अगर इसमें और दूसरे टैक्स भी जोड़ लें, तो ये कमाई 1.53 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाती है। ये आंकड़ा और ज्यादा होता, अगर कोरोना नहीं आया होता और लॉकडाउन न लगा होता।

मोदी सरकार ने कब-कब बढ़ाया टैक्स? 

  • साल 2014 में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रुपये प्रति लीटर था और डीजल पर 3.56 रुपये।
  • नवंबर 2014 से जनवरी 2016 तक केंद्र सरकार ने इसमें नौ बार इजाफा किया।
  • सिर्फ 15 सप्ताह में पेट्रोल पर ड्यूटी 11.77 और डीजल पर 13.47 रुपये प्रति लीटर बढ़ी। इसकी वजह से 2016-17 में सरकार को 2,42,000 करोड़ रुपये की कमाई हुई, जो 2014-15 में 99,000 करोड़ रुपये थी।
  • बाद में अक्तूबर 2017 में यह दो रुपये कम की गई। हालांकि इसके एक साल बाद ड्यूटी में फिर से 1.50 रुपये प्रति लीटर का इजाफा किया गया।
  • इतना ही नहीं, जुलाई 2019 में यह एक बार फिर दो रुपये प्रति लीटर बढ़ा दी गई।
  • केंद्र सरकार ने 16 मार्च 2020 और पांच मई 2020 को दो किस्तों में पेट्रोल पर एक्साइज 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये बढ़ाई। हालांकि इस बढ़ोतरी से तेल की कीमत प्रभावित नहीं हुई थी क्योंकि तब कई देशों में लगे लॉकडाउन से कच्चे तेल की मांग बेहद कम हो गई थी और दाम में भारी गिरावट आई थी।
  • इस बीच राज्य सरकारों ने भी कोरोना काल में घटते राजस्व की भरपाई के लिए वैट की दरें बढ़ाईं। दिल्ली, महाराष्ट्र और कर्नाटक सहित कई अन्य राज्यों ने वैट में बढ़ोतरी की थी।

 

रुकिए, राज्य सरकारें भी तो टैक्स लगाती हैं

केंद्र सरकार ने तो एक्साइज ड्यूटी लगाकर कमाई कर ली। अब बारी है राज्य सरकारों की क्योंकि केंद्र सरकार एक ही है, इसलिए पूरे देश में एक्साइज ड्यूटी एक ही लगती है, लेकिन राज्य सरकारें अलग-अलग हैं, तो हर राज्य में अलग-अलग टैक्स लगता है। राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल पर कई तरह के टैक्स और सेस लगाती हैं। इनमें सबसे प्रमुख वैट और सेल्स टैक्स होता है। पूरे देश में सबसे ज्यादा वैट/सेल्स टैक्स राजस्थान सरकार वसूलती है। यहां पेट्रोल पर 38% और डीजल पर 28% टैक्स लगता है। उसके बाद मणिपुर, तेलंगाना और कर्नाटक हैं, जहां पेट्रोल पर 35% या उससे अधिक टैक्स लगता है। इसके बाद मध्य प्रदेश में पेट्रोल पर 33% वैट लगता है।

राज्यों की कमाई भी बढ़ी, लेकिन ज्यादा नहीं

पेट्रोल-डीजल पर वैट और सेल्स टैक्स लगाकर राज्य सरकारों ने भी अच्छी कमाई की है। हालांकि ये कमाई केंद्र की तुलना में कम है। 2013-14 में राज्य सरकारों ने वैट और सेल्स टैक्स से 1.29 लाख करोड़ रुपए कमाए थे। 2019-20 में ये कमाई 55% बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई। 2020-21 की पहली छमाही में ही राज्य सरकारों ने 78 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा कमाए हैं। यहां भी वही फॉर्मूला लागू होता है, जो केंद्र पर लागू हुआ था। यानी ये कमाई और ज्यादा होती, अगर लॉकडाउन न लगा होता।

सरकारी कंपनियों के अच्छे दिन आए

देश में तीन बड़ी सरकारी तेल कंपनियां हैं। इनमें इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम शामिल हैं। इन तीनों ही कंपनियों का मुनाफा बढ़ा है। इन तीनों कंपनियों ने दिसंबर 2019 में 4,347 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया था। जबकि दिसंबर 2020 में इनका मुनाफा बढ़कर 10,050 करोड़ रुपए हो गया।

अब बात पड़ोसी देशों की भी

मोदी सरकार आने के बाद दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 15 रुपए और डीजल की कीमत 25 रुपए तक बढ़ गई है। अप्रैल 2014 में दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल 72.26 रुपए और डीजल 55.49 रुपए में आता था। लेकिन आज पेट्रोल 90 रुपए और डीजल 80 रुपए से ज्यादा हो गया है। इस दौरान भारत में जहां पेट्रोल-डीजल की कीमतें जबर्दस्त बढ़ीं। वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी देशों में इनकी कीमतों में कमी आई है। पाकिस्तान में ही अप्रैल 2014 में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 66.17 रुपए और डीजल की कीमत 71.27 रुपए थी। लेकिन अब वहां एक लीटर पेट्रोल 51.13 रुपए और डीजल 53 रुपए के आसपास है। हमारे चार पड़ोसियों में सिर्फ बांग्लादेश ही ऐसा है, जिसने इस दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाई हैं, वो भी मामूली।

कच्चे तेल का बड़ा आयातक है भारत 
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा भारत आयात के जरिए पूरा करता है। इसलिए जब भी क्रूड सस्ता होता है, तो भारत को इसका फायदा होता है। तेल सस्ता होने की स्थिति में आयात में कमी नहीं पड़ती लेकिन भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड कम होता है। इससे रुपये को फायदा होता है क्योंकि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में मजबूती आती है, जिससे महंगाई भी काबू में आ जाती है। सस्ते कच्चे तेल से घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें कम रहेंगी।

कच्चे तेल से कितनी प्रभावित होती है पेट्रोल की कीमत? 

भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड की सप्लाई पर है, ना कि डब्ल्यूटीआई पर। इसलिए अगर ब्रेंट क्रूड की कीमत में एक डॉलर की कमी आती है, तो देश में पेच्रोल सस्ता होता है। कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की कमी का सीधा-सीधा मतलब है पेट्रोल जैसे प्रॉडक्ट्स के दाम में 50 पैसे की कमी। वहीं अगर क्रूड के दाम एक डॉलर बढ़ते हैं तो पेट्रोल-डीजल के भाव में 50 पैसे की तेजी आना तय माना जाता है।

 

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