कोट भलवाल जेल से ऑपरेट आतंकी नेटवर्क का खुलासा; किताबों में रखकर भेजे जा रहे थे, सिम, फोन और हवाला के पैसे
जेल के भीतर बंद है जैश कमांडर अब्दुल रहमान मुगल, उसी के बैरक से मिला सामान, एक वर्कर के जरिए मिली थी नेटवर्क की जानकारी आतंकियों ने पहले भी चलाई थी इस जेल से हुकूमत, 1999 में कंधार हाईजैक में यात्रियों को छुड़वाने यहीं से मसूद अजहर को ले गए थे
जम्मू. जम्मू के कोट भलवाल जेल से ऑपरेट करे रहे आतंकवादियों का नेटवर्क पुलिस ने पकड़ा है। जैश-ए-मोहम्मद के ये आतंकी जेल की भीतर से गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। कोट भलवाल जेल में अभी भी कई आतंकी मौजूद हैं।शनिवार देर शाम पुलिस ने सेंट्रल जेल में छापा मारा था। इसी दौरान उन्हें एक बैरक से मोबाइल फोन, सिम कार्ड और कुछ गैर कानूनी सामान मिला। इसी बैरक में जैश का कमांडर अब्दुल रहमान मुगल तीन आतंकियों के साथ बंद है। मुगल मोबाइल फोन के जरिए पाकिस्तान में मौजूद अपने हैंडलर्स के संपर्क में था।
पुलिस के मुताबिक, यह जानकारी जम्मू के आरएसपुरा इलाके के चकौरी से आतंकियों के एक मददगार के पकड़े जाने के बाद मिली थी। इस मददगार की पहचान मोहम्मद मुजफ्फर बेग के रूप में हुई, जो कश्मीर के हंदवाड़ा का रहने वाला है। बेग 20 मार्च से ही इलाके में मौजूद था और लॉकडाउन के चलते घाटी लौट नहीं पाया।
पुलिस बेग को पनाह देनेवाले आरएसपुरा स्थानीय नागरिक को लेकर भी पूछताछ कर रही है। स्थानीय नागरिक हाल ही में जेल से छूटकर आया है। वह बेग के संपर्क में एक रिश्तेदार के जरिए आया, जो खुद भी जेल में था। आरएसपुरा पुलिस ने उस स्थानीय व्यक्ति से कुछ सिम कार्ड और हवाला का पैसा भी बरामद किया।
आतंकियों के मददगार ने ही जानकारी दी
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, जैश के मददगार रहे बेग ने पूछताछ के दौरान पुलिस को अहम जानकारी दी। इसके बाद ही कोट भलवाल जेल में छापा मारा गया। बेग ने ही बताया कि जो सिम और पैसे उसके पास हैं, वह कोट भलवाल में मौजूद किसी पाकिस्तानी आतंकी के लिए हैं। ये सिम और पैसे किताबों के कवर में रखे हुए थे और उन्हें आतंकियों तक पहुंचाना था। जेल अधिकारियों के मुताबिक, पूरी चेन की पड़ताल की जा रही है। जल्दी ही जेल में और छापेमार कार्रवाई होगी।
आतंकियों का अड्डा है कोट भलवाल
आतंकवाद के चरम पर रहने के दौरान जम्मू के बाहरी इलाके में बनी कोट भलवाल जेल आतंकवादियों का अड्डा माना जाता था सुरक्षाबलों द्वारा पकड़े गए खतरनाक आतंकवादियों को यहीं रखा जाता था। ये आतंकी बैरक से ही अपनी हुकूमत चलाते थे। यहां वर्चस्व की लड़ाई भी होती थी और मुखिया चुने जाते थे। जेल के भीतर आजादी के नारे लगते थे। जेल अधिकारी भी रोल कॉल और औचक दौरे के लिए इनके पास जेल के भीतर जाने से डरते थे। ये आतंकी गार्ड्स को छेड़ते थे और खुलेआम धमकाते हुए बेखौफ घूमते थे। आतंकियों के जेल में आने-जाने से यहां के हालात बेहद तनावपूर्ण रहता है। इस जेल का इस्तेमाल राज्य की सीआईडी जॉइंट इंटेरोग्रेशन सेंटर के तौर पर करती थी।
यहां जेल ब्रेक की घटनाएं भी घट चुकी हैं
जेल में कई बार कैदी आतंक मचा चुके हैं और जेल ब्रेक जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा चुका है। दो मौकों पर तो आतंकी सुरक्षा बंदोबस्त को तोड़ दीवार फांद चुके हैं। एक जेल ब्रेक हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर इरफान ने 1998 में अपने दो साथियों के साथ किया। वह 15 अगस्त 1995 को स्टेडियम में बम ब्लास्ट का आरोपी था, जिसमें राज्य के गवर्नर केवी कृष्णा राव बुरी तरह जख्मी हुए थे। 8 लोग मारे गए थे और 50 अन्य घायल हुए थे।
जून 1999 में दूसरा जेल ब्रेक जैश के ही मौलाना मसूद अजहर ने अंजाम दिया था। आतंकवादियों ने मिलकर बैरक में सैप्टिक टैंक के जरिए 180 फीट की सुरंग बनाई थी। बस इन आतंकवादियों से यह गलती हो गई कि ये सुरंग थोड़ी संकरी थी और मौलाना मसूद अजहर मोटा। इस वजह से मसूद भाग नहीं सका। इस दौरान मसूद तो बच गया लेकिन सुंरग के भीतर एक दूसरे आतंकी सज्जाद अफगानी को सीआरपीएफ ने मार गिराया।
छूटने से पहले मसूद अजहर यहीं बंद था
यह जेल एक बार फिर चर्चा में आया जब इंडियन एयरलाइन की फ्लाइंट आईसी 814 के हाईजैकर्स ने मसूद अजहर की रिहाई की मांग की थी। 1999 में मौलाना को दो आतंकवादियों मुश्ताक अहमद जरगर और अहमद उमर सईद शेख के साथ कड़ी सुरक्षा के बीच कंधार एयरपोर्ट ले जाया गया। जहां उनके बदले यात्रियों को छुड़वाया था। जाने से पहले मसूद ने जेल में एक भड़काऊ भाषण दिया था।