नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बीच अमेरिका में धीरे-धीरे राष्ट्रपति चुनाव का समय भी निकट आता जा रहा है। इस चुनाव के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत जो बिडेन और कमला हैरिस पूरा जोर लगा रहे हैं। यहां पर चुनाव का एक बड़ा फैक्टर वहां पर रहने वाले भारतीय भी हैं। इनको अपनी तरफ करने में भी सभी जोर लगा रहे हैं। इसके अलावा चीन, कोरोना से लड़ाई समेत कई दूसरे स्थानीय मुद्दे भी हैं, जिनपर इस चुनाव का परिणाम टिका होगा। इस चुनाव पर पूरी दुनिया की नजर भी लगी हुई है। लेकिन क्या अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया के बारे में जानते हैं। यदि नहीं तो आज हम आपको इसकी जानकारी देंगे। पहले आपको बता दें कि 3 नवंबर को अमेरिका में जनता अपने नए राष्ट्रपति के चयन के लिए वोट डालेगी।
अमेरिका में राष्ट्रपति बनने की सबसे पहली शर्त है कि इस चुनाव में खड़ा होने वाला व्यक्ति जन्म से ही अमेरिकी नागरिक होना चाहिए। इसके अलावा उसकी उम्र कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए। अमेरिका में वही चुनाव लड़ सकता है जो इन दो शर्तों के अलावा एक तीसरी शर्त जिसमें 14 वर्षों तक अमेरिका में रहना जरूरी है, पूरी करता हो। अब आपको वहां के पार्टी सिस्टम के बारे में बता देते हैं। दरअसल वहां पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच इस पद को लेकर मुकाबला होता है। दो पार्टी सिस्टम होने की वजह से वहां पर कोई भी तीसरी पार्टी नहीं है। यही पार्टियां अपना प्रत्याशी तय करती हैं।
इन प्रत्याशियों को चुनने की भी एक प्रक्रिया है। इनको दो तरह से चुना जाता है जिसमें प्राइमरी और दूसरा कॉकसस शामिल है। इस प्रक्रिया के तहत पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता राष्ट्रपति पद के चुनाव में खड़ा हो सकता है, उसे सिर्फ अपने समर्थकों का साथ चाहिए होता है। प्राइमरी चुनाव अमेरिका की राज्य सरकारों द्वारा करवाए जाते हैं। ये भी दो प्रकार के होते हैं जिसमें खुला और बंद चुनाव शामिल है। खुला चुनाव, जिसमें पार्टी के समर्थकों के साथ-साथ आम जनता भी मतदान कर सकती है और बंद का मतलब, जिसमें सिर्फ पार्टी से जुड़े समर्थक ही उम्मीदवार के लिए वोटिंग करते हैं।
लेकिन कॉकसस सिस्टम की प्रक्रिया को पार्टी ही अंजाम देती है। इसमें पार्टी के समर्थक एकत्रित होते हैं और अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करते हैं। इनमें जिसकी राय लोगों को सही लगती है अपने हाथ खड़ा कर उसको समर्थन करते हैं। आपको ये भी बता दें कि इस प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को का कम ही राज्यों में चुना जाता है। इन दोनों ही प्रक्रियाओं में वोटिंग के लिए पहले लोगों को एक पार्टी के लिए रजिस्टर करना पड़ता है। इसके बाद ही वो वोटिंग के अधिकारी होते हैं।
दो पार्टी सिस्टम वाले अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के लिए एक तय संख्या होती है। ऐसे में जिसको जितना ज्यादा समर्थन मिलता है वही नेशनल कंवेंशन के लिए आगे जाता है। इस बार डेमोक्रेट्स के कुल डेलिगेट्स की संख्या 3979 है जबकि जीतने के लिए 1991 डेलिगेट्स चाहिए होंगे। इसकी तरह से रिपब्लिकन के कुल डेलिगेट्स की संख्या 2550 है और उम्मीदवार बनने के लिए 1276 के समर्थन की जरूरत होगी।
एक बार दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी तय होने के बाद इसका आधिकारिक एलान नेशनल कंवेंशन में होता है। डेमोक्रेट्स के लिए ये जुलाई में होता है और रिपब्लिकन के लिए ये अगस्त में होता है। यहां पर पार्टी की सर्वोच्च टीम उम्मीदवार का ऐलान करती है, फिर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार अपने समर्थकों के सामने भाषण देता है। यहां पर ही वो अपनी पसंद के प्रत्याशी को उप राष्ट्रपति पद के लिए भी चुनकर उसका एलान करता है। इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव की असली प्रक्रिया शुरू होती है।
इसके बाद जनता स्थानीय तौर पर एक इलेक्टर का चुनाव करती है यह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का प्रतिनिधि होता है। इसे इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है। इसमें कुल 538 सदस्य होते हैं जो अलग-अलग राज्यों से आते हैं। अमेरिका में जनता की चुनाव में हिस्सेदारी यहीं तक सीमित है। इसके बाद उनके द्वारा चुने गए इलेक्टर ही आगे वोटिंग कर अपने पसंद के प्रत्याशी को चुनकर राष्ट्रपति बनाते हैं। राष्ट्रपति पद के उम्मीद्ववार को जीतने के लिए 270 से अधिक इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत होती है। इसमें जीतने के बाद वह व्यक्ति 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेता है।