अवमानना के दोषी ठहराए गए प्रशांत भूषण ने SC में कहा- मुझे कोई भी सजा खुशी-खुशी कबूल
Prashant Bhushan Contempt Case Verdict Live Updates सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने न्यायपालिका के खिलाफ दो अपमानजनक ट्वीट के लिये 14 अगस्त को प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) को आपराधिक अवमानना( contempt of court ) का दोषी ठहराया था और कहा कि इन्हें जनहित में न्यापालिका के कामकाज की स्वस्थ आलोचना नहीं कहा जा सकता.
- मेरे ट्वीट एक नागरिक के रूप में मेरे कर्तव्य का निर्वहन करने का प्रयास थे. अगर मैं इतिहास के इस मोड़ पर नहीं बोलता तो मैं अपने कर्तव्य में असफल होता. मैं कोई भी सजा स्वीकार्य है.
- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हवाल से भूषण ने कहा कि ‘मैं दया नहीं मांग रहा. मैं उदारता की अपील नहीं करता. अदालत जो भी सजा देगी वह मुझे खुशी-खुशी स्वीकार्य है.’
- मेरा मानना है कि संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के लिए किसी भी लोकतंत्र में खुली आलोचना आवश्यक है. संवैधानिक व्यवस्था को बचाना व्यक्तिगत या व्यावसायिक हितों के बारे में आना चाहिए. मेरे ट्वीट मेरे सर्वोच्च कर्तव्यों में एक छोटा सा प्रयास थे.
- भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मैं इस बात से आहत और स्तब्ध हूं कि न्यायालय ने मुझे वह शिकायत नहीं दी जिसके आधार पर अवमानना की कार्रवाई की गई थी. मैं इस बात से निराश हूं कि कोर्ट ने मेरे जवाब को हलफनामा नहीं माना.
- अदालत में भूषण ने कहा कि मुझे इस फैसले पर दुख है कि कोर्ट ने मुझे दोषी माना. मुझे दुख है कि मुझे गलत समय़ा गया. मैं हैरान हूं कि अदालत ने मेरे उद्देश्यों के बारे में कोई सबूत दिए बिना निष्कर्ष पर पहुंच गई.
- जस्टिस मिश्रा ने दवे से कहा कि ‘कृपया एक माहौल बनाएं. इस हद तक न जाएं, दवे साब. हमें अपने सिस्टम की गरिमा को बनाए रखना है.’
- दवे ने पीठ को बताया कि एजी नोटिस के बाद मामले में इंतजार कर रहे हैं. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि ‘हमें इसकी जानकारी नहीं है. हमें इसके बारे में याद न दिलाएं.’
- जस्टिस मिश्रा ने एजी को बताया कि सुनवाई टालने के लिए याचिका पर बेंच विचार करने को इच्छुक नहीं और उस आवेदन पर एजी को सुनवाई करने की कोई आवश्यकता नहीं गै.
- अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अदालत ने मुझे नोटिस जारी किया था. यदि अदालत मुझे सुनना चाहती है, तो खुशी होगी.
- डॉ. राजीव धवन ने पीठ से इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल को सुनने का अनुरोध किया और कहा कि वह उसके सबमिशन देंगे.
- जस्टिस गवई ने कहा कि आप अब भी समीक्षा दायर कर सकते हैं. डॉ. धवन ने 17 अगस्त को कहा था कि समीक्षा दायर की जाएगी. जिस पर दवे ने पूछा- मुझे अबी समीक्षा क्यों दायर करनी चाहिए? फिर कोर्ट के नियमों में संशोधन हो और कहा जाना चाहिए कि समीक्षा 24 घंटे के भीतर दायर की जाए.
- वकील दवे ने कहा कि ‘अगर आपकी अंतरात्मा यह बताती है कि सजा पर सुनवाई आज होनी चाहिए, तो मैं पीछे हट रहा हूं.
- जस्टिस मिश्रा ने आश्वासन को दोहराते हुए कहा कि “हम विश्वास दिलाते हैं कि आप अपनी समीक्षा का अधिकार नहीं खोएंगे. हम सजा की सुनवाई टालने का प्रस्ताव नहीं दे रहे हैं.
- जस्टिस मिश्रा का कहना है कि ऐसा कभी नहीं किया गया. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि ‘यह (दूसरी बेंच को सुनवाई की सजा का हवाला देना) उचित नहीं है. यह स्थापित प्रक्रिया और मानदंडों के खिलाफ है.मान लीजिए कि अगर मैं पद नहीं छोड़ रहा हूं, तो क्या यह कभी सोचा जा सकता है?’
- दवे ने कहा कि यदि आपके निर्णय की समीक्षा का फैसला होने तक सुनवाई स्थगित कर दी जाती है, तो कोई गंभीर समस्या नहीं पैदा होगी. यह आवश्यक नहीं है कि यही पीठ सजा पर विचार करे.
- दवे ने आग्रह किया कि सजा के मामले को अलग पीठ द्वारा विचार किया जाना चाहिए. जिस पर जस्टिस गवई ने कहा कि अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
- दवे ने इस पर जनबा दिया कि पीठ यह धारणा क्यों प्रस्तुत कर रही है कि यह बेंच जस्टिस अरुण मिश्रा के सेवानिवृत्त होने से पहले सब कुछ तय करना चाहती है.
- बहस के दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि समीक्षा अब भी दायर की जा सकती है. कहा कि कि ऐसा आभास नहीं होना चाहिए कि जस्टिस मिश्रा की बेंच से बचने की कोशिश की जा रही है.
- जस्टिस मिश्रा ने दवे से कहा कि आप हमारे प्रति ईमानदार रहें या नहीं लेकिन हम आपके प्रति ईमानदार हैं.
- जस्टिस मिश्रा ने दवे से कहा, ‘अगर हम कोई सजा देते हैं, तो हम आपको आश्वासन देते हैं कि जब तक समीक्षा नहीं हो जाती, तब तक वह सजा लागू नहीं होगी.
- जस्टिस मिश्रा ने कहा कि दोषी पाए जाने के परिणामस्वरूप सुनवाई हो रही है. उन्होंने पूछा- दोनों की समीक्षा की जा सकती है, ठीक है? क्या आप कह सकते हैं कि दोषी पाए जाने के बाद आदेश पारित नहीं किया जा सकता है. निर्णय तब पूरा होगा जब यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगा.
- दवे ने कहा कि क्यूरेटिव पिटीशन का उपाय भी उपलब्ध है.
- भूषण की ओर से अदालत में वकील दवे ने कहा कि मुझे समीक्षा याचिका दायर करने के लिए 30 दिन मिले हैं.
- दवे ने समीक्षा शक्ति पर SC नियमों के आदेश 47 को भी संदर्भ भी दिया. जिस पर जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, ‘हमें इसमें कोई संदेह नहीं है’
- दवे ने पीठ से न्यायालय की समीक्षा शक्ति पर संविधान के अनुच्छेद 137 का उल्लेख करने का अनुरोध किया.
- मामला अदालत के सामने पहुंचा और वरिष्ठ वकील दुष्यंत दे सबमिशन दे रहे हैं.
- इससे पहले शीर्ष अदालत ने प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के बारे में अपमानजनक ट्वीट के लिये उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था और कहा था कि इन्हें जनहित में न्यायपालिका के कामकाज की निष्पक्ष आलोचना नहीं कहा जा सकता है. न्यायालय ने कहा था कि वह 20 अगस्त को इस मामले में भूषण को दी जाने वाली सजा पर दलीलें सुनेगा.
इस मामले की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कहा था कि ट्वीट भले ही अप्रिय लगे, लेकिन अवमानना नहीं है. उन्होंने कहा था कि वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते. अदालत ने इस मामले में प्रशांत भूषण को 22 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने बुधवार को प्रशांत भूषण का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि भूषण के खिलाफ अवमानना मामला कानून के मूलभूत सवाल खड़े करते हैं, जिन पर संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए. जस्टिस कुरियन जोसेफ ने यह भी कहा कि एक स्वत:संज्ञान वाले मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दोषी ठहराया गए व्यक्ति को अंत:अदालती अपील का अवसर मिलना चाहिए.
न्यायपालिका से जुड़े मसलों पर उठाते रहे हैं सवाल
प्रशांत भूषण न्यायपालिका से जुड़े मसलों पर पहले भी सवाल उठाते रहे हैं. हाल के दिनों में कोरोना के दौरान लगाए गए लॉकडाउन में दूसरे राज्यों से पलायन करने वाले प्रवासियों को लेकर भी शीर्ष अदालत के रवैये की आलोचना की थी. इसी तरह भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी वरवर राव और सुधा भारद्वाज जैसे जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बयान भी दिये थे.प्रशांत भूषण ने 134 पन्नों के जवाब में अपने ट्वीट्स को सही ठहराने के लिए कई पुराने मामलों का जिक्र किया था, जिसमें सहारा-बिड़ला डायरी मामले से लेकर जज लोया की मौत, कलिको पुल आत्महत्या मामले से लेकर मेडिकल प्रवेश घोटाले, असम में मास्टर ऑफ रोस्टर विवाद, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से लेकर नागरिकता संशोधन अधिनियम शामिल है.’
बता दें कि अदालत की अवमानना के अधिनियम की धारा 12 के तहत दोषी को छह महीने की कैद या दो हजार रुपये तक नकद जुर्माना या फिर दोनों हो सकती है.