नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के रिटायर्ड जज मदन बी लोकुर द्वारा प्रवासियों मजदूरों के मुद्दों पर शीर्ष अदालत की प्रतिक्रिया को ‘एफ ग्रेड’ कहे जाने के अगले दिन यानी गुरुवार को अदालत में सुनवाई हुई. प्रवासी मजदूरों की सुनवाई के दौरान रिटायर्ड जज की टिप्पणी का भी जिक्र हुआ. शीर्ष अदालत ने इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए कहा कि जो लोग अब तक इसका हिस्सा रहे हैं उनको लगता है वह इसका सम्मान गिरा सकते हैं. जस्टिस अशोक भूषण, संजय के कौल और एमआर शाह की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने प्रवासियों के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया था.
गुरुवार को सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने कहा कि कैसे ‘मुट्ठी भर लोग’ सर्वोच्च न्यायालय को नियंत्रित करना चाहते हैं और अदालत का इस्तेमाल विधायिका के खिलाफ करना चाहते हैं. इस पर पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत केवल अपने विवेक पर काम किया है. पीठ ने कहा- ‘हमने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है और हम केवल अपने विवेक से काम करेंगे, ना कि किसी और के कहने पर.’
इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा- ‘कुछ व्यक्तियों ने ग्रेड देना शुरू कर दिया है कि यह एक ‘बी’ ग्रेड कोर्ट, एक ‘सी’ ग्रेड कोर्ट या एक ‘एफ’ ग्रेड कोर्ट है. दुर्भाग्य से हमारे पेशे के लोग और वह भी कुछ खास लोगों ने ऐसा करना शुरू कर दिया है.’
न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में दखल ना की अनुमति ना हो- सॉलिसिटर जनरल
सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय से संस्था के रूप में जवाब देने और यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि ‘मुट्ठी भर लोगों’ को न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में दखल ना की अनुमति ना हो. इस पर पीठ ने टिप्पणी की: ‘ जो लोग इस संस्था का हिस्सा रहे हैं अगर उन्हें लगता है कि वे संस्था का सम्मान गिरा सकते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है.’
बुधवार शाम को, सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने एक वेब पोर्टल पर एक लेख प्रकाशित किया था, जिसका शीर्षक था “सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासियों के मामले में एफ ग्रेड मिले’ जिसमें शीर्ष अदालत की आलोचना की गई थी कि कैसे पहले अन्य याचिकाओं पर ध्यान दिया गया और फिर वह इस मुद्दे आए.
जस्टिस लोकुर ( Madan B Lokur) ने अपने लेख में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय यह भूल गया कि सार्वजनिक हित याचिका क्या है और यदि कोई ग्रेडिंग दी जानी चाहिए तो वह ‘F’ की हकदार है. पूर्व जज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी हर जगह पर्याप्त सबूतों से अधिक सबूतों के बावजूद केंद्र सरकार को दिए गए बयान पर सवाल उठाने या जवाब देने की जहमत नहीं उठाई। समाचार पत्र और मीडिया रिपोर्टों को नजरअंदाज कर दिया गया था.