भारतीय वैज्ञानिकों को डरा रहा कोरोना के स्‍ट्रेन- D614G का डर, मलेशिया से क्या है कनेक्शन

भारत (India) से मलेशिया (Malaysia) गए एक रेस्तरां मालिक में स्‍ट्रेन- D614G पाया गया है. अब भारतीय वैज्ञानिक (Indian Scientist) इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि रेस्तरां मालिक में मिला स्ट्रेन- D614G कोरोना वायरस कहां से आया.

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नई दिल्ली. देश में एक ओर जहां कोरोना वायरस (Coronavirus) के संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, वहीं मले​शिया (Malaysia) में एक भारतीय के अंदर मिले कोरोना वायरस के नए रूप (स्‍ट्रेन) ने वैज्ञानिकों (Scientist) की चिंता बढ़ा दी है. बता दें कि भारत से मलेशिया गए एक रेस्तरां मालिक में स्‍ट्रेन- D614G पाया गया है. अब भारतीय वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि रेस्तरां मालिक में मिला स्ट्रेन- D614G कोरोना वायरस कहां से आया. अगर ये भारत में रहते हुए आया है तो वैज्ञानिकों के लिए चिंता बढ़ना लाजमी है क्योंकी अगर इसने भारत में और लोगों को संक्रमित किया होगा तो वैज्ञानिकों की अभी तक की सारी कोशिश बेकार हो सकती है.

बता दें कि स्‍ट्रेन- D614G कोरोना वायरस का सबसे खतरनाक रूप है. दुनिया में फैले कोरोना वायरस से ये 10 गुना ज्यादा ताकतव है. ऐसे में अगर इस वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती है तो वैज्ञानिकों को इस महामारी का टीका और दवाएं खोजने में एक बार फिर नए सिरे से मशक्कत करनी पड़ सकती है. बता दें कि मलेशिया में जिन तीन लोगों में कोविड का D614G मिला, उनमें एक रेस्‍तरां मालिक भी है जो भारत से लौटा. हैरानी की बात ये है कि मलेशिया लौटने के बाद इस भारतीय रेस्तरां मालिक ने खुद को 14 दिन के लिए होम क्वारंटाइन नहीं किया, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ गया है.

मलेशिया के कानून के मुताबिक भारतीय रेस्तरां के मालिक को पांच महीने के लिए जेल ​भेज दिया गया है, साथ ही भारी जुर्माना भी लगाया गया है.इसी तरह एक अन्य व्यक्ति ​जिसमें कोविड का D614G मिला है वह फ़िलिपींस से लौटकर आया है.

आखिर क्‍या है D614G स्‍ट्रेन?

D614G उस प्रोटीन में मिलता है जो वायरस के ‘स्‍पाइक’ को बनाता है. यही स्पाइक हमारी कोशिकाओं में प्रवेशकर उसे नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती हैं. यह म्‍यूटेशन अमीनो एसिड को D (एस्‍पार्टिक एसिड) से G (ग्‍लाइसीन), पोजिशन 614 पर बदलता है. इसीलिए इसका नाम D614G रखा गया है. इस स्ट्रेन के बारे में पहली बार फरवरी में पता चला था. यूरोप में पाया गया इस तरह का पहला स्ट्रेन अब ज्यादातर देशों में मिल रहा है जो दुनिया के लिए चिंता का विषय है.

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