ANALYSIS | दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की जीत के मायने

दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Election Result) के शुरू होने से बहुत पहले से ही दिल्‍ली में यह हवा बन गई थी कि विधानसभा चुनाव केजरीवाल ही जीतेंगे. उसकी मुख्‍य वजह यही समझ आ रही थी कि स्‍कूलों, मोहल्‍ला क्‍लीनिक, बिजली की सस्‍ती दरों, राशन कार्ड और दूसरी सहूलियतों को आसानी से लोगों तक पहुंचाने जैसे मुद्दे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की जीत की बुनियाद बनेंगे.

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव 2020 (Delhi Election Result) के नतीजे सामने हैं. आम आदमी पार्टी (AAP) के मुखिया अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का तीसरी बार दिल्‍ली का मुख्‍यमंत्री बनना तय है. इस तरह वे दिवंगत शीला दीक्षित की बराबरी कर लेंगे जो लगातार तीन बार दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री रही थीं. गौर से देखें तो केजरीवाल की उपलब्धि इससे कहीं बड़ी है. उन्‍होंने यह चुनाव देश के मुख्‍य सत्‍ताधारी दल यानी भारतीय जनता पार्टीऔर प्रमुख विपक्षी दल यानी कांग्रेस को एक साथ हराकर जीता है. उस दिल्‍ली में जहां उनसे कहीं बड़े नेता जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, समूचा गांधी परिवार और दूसरे दिग्‍गज रहते हैं, वहां कद और काठी दोनों में छोटे से केजरीवाल ने सबको चारों खाने चित कर दिया.

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काम आई जमीनी राजनीति
इस विधानसभा चुनाव के शुरू होने से बहुत पहले से ही दिल्‍ली में यह हवा बन गई थी कि विधानसभा चुनाव केजरीवाल ही जीतेंगे. उसकी मुख्‍य वजह यही समझ आ रही थी कि स्‍कूलों, मोहल्‍ला क्‍लीनिक, बिजली की सस्‍ती दरों, राशन कार्ड और दूसरी सहूलियतों को आसानी से लोगों तक पहुंचाने जैसे मुद्दे केजरीवाल की जीत की बुनियाद बनेंगे. चुनाव से ठीक पहले डीटीसी की बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सौगात देकर केजरीवाल ने अपने इस आधार को और पक्‍का कर लिया था.

झेल गए सीएए और एनआरसी का विरोध
जब सीएए पास हो गया और देशभर में इसके विरोध में तेज आंदोलन हुए, तो अरविंद केजरीवाल ने चुप्‍पी साध ली. असल में वह पहले से ही इसके लिए तैयार थे. कश्‍मीर में धारा 370 हटाने के फैसले का स्‍वागत वह पहले ही कर चुके थे. दिल्‍ली में जब जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में छात्रों पर पुलिस का बर्बर लाठीचार्ज हुआ, जेएनयू में छात्रों के आंदोलन को कुचला गया तब भी केजरीवाल इन मामलों से सुरक्षित दूरी बनाए रहे. सीएए के खिलाफ दिल्‍ली की सड़कों पर जब बड़े-बड़े जुलूस निकले तब भी केजरीवाल ‘निर्गुण कौन देस को बासी’ ही बने रहे.

स्‍कूल चलें हम
बीजेपी बराबर उकसाती रही और केजरीवाल दम साधे डटे रहे. उन्‍होंने टीवी के पत्रकारों से बार-बार कहा कि आप शाहीन बाग जाने की बात करते हैं, मैं पूछता हूं कि आप स्‍कूल क्‍यों नहीं चलते. स्‍कूलों में होने वाली पीटीएम यानी अभिभावक और शिक्षक संवाद को उन्‍होंने बड़े जोर शोर से प्रचारित किया. 200 यूनिट तक बिजली बिल माफ करने के साथ ही केजरीवाल यह संदेश दे रहे थे कि बड़ी पार्टियां बड़े उद्योगपतियों का कर्ज माफ कर रही हैं, जबकि वे उस जरूरतमंत गरीब आदमी की मदद कर रहे हैं, जिसे असल में सरकारी मदद की दरकार है.

आतंकवादी नहीं दिल्‍ली का बेटा हूं
केजरीवाल जब स्थितिप्रज्ञ भाव से चुनाव प्रचार में रमे थे तो उन पर भाजपा ने आतंकवादी होने तक का आरोप लगा दिया. इस पर पलटकर कोई आरोप लगाने के बजाय केजरीवाल ने कहा कि वह तो दिल्‍ली के बेटे हैं. फिर अपने ही सहज अंदाज में उन्‍होंने पलटकर जवाब दिया, ‘मैं कहां से आतंकवादी नजर आता हूं.’ इस तरह केजरीवाल ने एक और हमले को बचा लिया.

एक हाथ से ताली नहीं बजती
यहां तक आते आते नामांकन का दिन भी आ गया. हर विवादित मुद्दे पर होंठ सिए रखने वाले केजरीवाल अपना पर्चा दाखिल करने गए तो पता चला कि वहां दर्जनों प्रत्‍याशी पहले से पर्चा भरने खड़े हैं. जाहिर तौर पर यह केजरीवाल का नामांकन देर से कराने या उनका नामांकन दाखिल न होने देने की एक चाल थी. केजरीवाल ने इसका जवाब एक ट्वीट के साथ दिया कि वह कार्यालय में बैठे हैं और उन्‍हें काफी देर में नामांकन भरने का टोकन मिला है. वह घंटों अपनी बारी की प्रतीक्षा करते रहे और इस पूरे मामले को अपने पक्ष में कर लिया.

क्‍या प्रधानमंत्री मोदी मुख्‍यमंत्री बनेंगे!
जब चुनाव शुरू हुआ तो अपनी पहली ही प्रेस कांन्‍फ्रेंस में केजरीवाल ने पत्रकारों से प्रतिप्रश्‍न किया: भाजपा अपना मुख्‍यमंत्री का चेहरा बताए. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही उनका चेहरा हैं तो पार्टी स्‍पष्‍ट करे कि क्‍या चुनाव के बाद मोदीजी प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़कर दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री बन जाएंगे! इस तरह केजरीवाल ने बड़े सधे ढंग से मोदी पर कोई हमला किये बिना बल्कि उनका पूरा सम्‍मान रखते हुए, उनके नाम पर चुनाव लड़ने की बीजेपी की रणनीति को ढेर कर दिया.

अनोखा चुनाव प्रचार
केजरीवाल को अपने संसाधनों और भाजपा की हैसियत का बखूबी अंदाजा था. उन्‍हें पता था कि वह उतना खर्च करने का सोच भी नहीं सकते, इसलिए उनका प्रचार अभियान टीवी पर भाजपा और कांग्रेस दोनों से फीका रहा. लेकिन सोशल मीडिया, एफएम रेडियो और खासकर यूट्यूब पर उन्‍होंने गजब का प्रचार किया.आप छोटे बच्‍चे के लिए लकड़ी की काठी गाना यूट्यूब पर बजाएं या सुंदरकांड का पाठ लगाएं, उसके पहले केजरीवाल का विज्ञापन हाजिर था. इसमें वह मतदाता से कह रहे थे कि आप अगर भाजपा समर्थक हैं या कांग्रेस समर्थक हैं तो वह आपसे पार्टी छोड़ने के लिए नहीं कह रहे हैं. आप अपनी पार्टी में बने रहें, लेकिन वोट आम आदमी पार्टी को दें. यह अलग किस्‍म की बात थी.

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फिर हासिल की बड़ी जीत
चुनाव के तीन दिन पहले से बीजेपी ने एक बार फिर माहौल बनाया कि उसकी स्थिति सुधर गई है और दिल्‍ली का चुनाव 360 डिग्री पर घूम गया है. लेकिन जब वोटिंग हुई और शाम को एग्जिट पोल आए तो उसमें उन्‍हें सबसे कम 44 और सबसे अधिक 68 सीट तक दी गईं. यह दोनों ही आंकड़े जीत के लिए जरूरी 37 सीट के आंकड़े से कहीं ऊपर थे. एग्जिट पोल के बाद भी बीजेपी ने जीत का दावा किया लेकिन काउंटिंग के दिन जश्‍न मनाने का कोई अग्रिम इंतजाम नहीं किया. पार्टियों की मनोदशा समझने के लिए यह महत्‍वपूर्ण संकेत होता है.

यह लेख लिखे जाने तक आप 50 से अधिक सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. केजरीवाल का फिर से मुख्‍यमंत्री बनना तय है. इसके साथ यह भी तय है कि उन्‍हें एक बार फिर केंद्र, उपराज्‍यपाल और अर्द्ध राज्‍य के बीच चलने वाली खींचतान के लिए तैयार रहना होगा. उनकी राह हर बार की तरह एक बार फिर जीत से सजी, लेकिन कांटों से बिछी साबित होगी.

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