Coronavirus: लॉकडाउन में क्या हम इन महिलाओं को सिर्फ भूख से मरते देखेंगे?
लॉकडाउन (Lockdown) में सबसे ज्यादा मुश्किलें गरीब तबकों और मजदूरों के सामने खड़ी हो गई हैं. धीरे-धीरे राशन खत्म हो रहा है और उम्मीदें भी दम तोड़ रही है.
नई दिल्ली. तारीख 7 अप्रैल… अपने चौथे को जन्म देने के बाद से 32 साल की नीतू को अब तक भरपेट खाना नहीं मिल पाया है. शरीर इतना कमजोर हो गया है कि मुश्किल से अपने पैरों पर खड़ी हो पाती है. नीतू के पति मोची हैं और बीते तीन हफ्तों से काम बंद है. घर में इतने पैसे नहीं हैं कि खाने-पीने का पूरा सामान जुटा सके. मां बनने के बाद उसकी आगे की दवा भी बंद है.
बिस्तर पर बच्चे के साथ लेटी नीतू बताती है, ‘हमारे पास बच्चे को पिलाने के लिए दूध नहीं है. कभी-कभी खाना मिल जाता और कभी नहीं मिलता. मां बनने के बाद कमजोरी आ गई है. डॉक्टरों ने कुछ दवाएं लिखकर दी है, लेकिन खरीदने के लिए पैसे कहां से आएंगे? मुझे ज्यादातर वक्त चक्कर आता है और कमजोरी सी महसूस होती है. मेरा बच्चा भी कमजोर है.’
ओल्ड गुरुग्राम के प्रेम नगर बस्ती के एक झोपड़ी में नीतू अपने बच्चों के साथ रहती है. पड़ोसी थोड़ी बहुत मदद कर रहे हैं, जिससे नवजात की देखभाल हो जा रही है. नीतू की पड़ोसन कल्लो देवी कहती हैं, ‘परिवार के पास एक कप चाय के लिए भी पैसे नहीं हैं. घर का राशन खत्म हो चुका है. 10 दिन पहले जब वह आईसीयू से लौटी थी, तो कोई 10 किलो गेहूं दान में दे गया था. लेकिन, परिवार के पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि गेहूं पिसवाए. मैं ही बच्चे को दूध पिला रही हूं, क्योंकि कमजोरी की वजह से मां स्तनपान भी नहीं करा पा रही है.’
वह कहती है कि नीतू का पति विकलांग है. काम बंद होने से इधर-उधर लोगों से मदद मांग सकता है, लेकिन कुछ हफ्तों पहले उसकी व्हीलचेयर भी चोरी हो गई. ऐसे में वह भी लाचार है.
नीतू के घर से करीब एक किलोमीटर दूर दूसरी बस्ती में रह रही आंचल की कहानी भी ऐसी ही है. नौ दिन पहले वह दूसरी बार मां बनी है. शरीर कमजोर हो चुका है कि बच्ची को पिलाने के लिए दूध भी नहीं बन रहा. डिलिवरी के बाद से उसे ठीक से खाना नहीं मिल रहा था, तबीयत बिगड़ती जा रही थी. ऐसे में गुरुवार को किसी तरह उसने हिम्मत जुटाई और आधा किलोमीटर पैदल चली, ताकि लंगर से कुछ खाने को मिल सके.
आंचल बताती है, ‘दूसरे दिन कोई खाने के साथ दरवाजे पर आया. हमें कुछ चावल मिले. राशन कहने के लिए बस यही था.’ आंचल के पति ढोल बजाकर परिवार का गुजारा करते हैं. लॉकडाउन की वजह से काम बंद है और राशन भी.
34 साल की कमर जहां भी आंचल की तरह ही मानसिक और शारीरिक दर्द झेल रही है. 8 अप्रैल को प्रसव पीड़ा शुरू होने से उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी. लॉकडाउन की वजह से अस्पताल जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला. ऐसे में पड़ोस की महिलाओं ने मिलकर घर पर ही डिलीवरी कराई. कमर जहां बताती हैं, ‘इसमें बहुत खतरा था, लेकिन हमारे पास और कोई चारा नहीं था. हालांकि, अभी मैं और मेरा बच्चा दोनों ठीक हैं. लेकिन, उस रात को याद करके ही जी कांप उठता है. बच्चा तो पैदा हो गया, लेकिन अब परिवार के सामने खाने-पीने का संकट है. राशन खत्म हो रहा है और उम्मीदें भी…’