आईआईटी का बड़ा खुलासा, पेपर कप में चाय पीते हैं तो हो जाईए सावधान, बिगड़ सकती है सेहत

कोई व्यक्ति यदि प्रतिदिन पेपर कप में औसतन तीन बार चाय या कॉफी पीता है, तो वह 75,000 छोटे सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों को निगलता है. आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों का बड़ा खुलासा.

0 999,196

नई दिल्ली. अगर आप प्लास्टिक की तरह ही पेपर कप में भी चाय (Tea) पीते हैं तो सावधान हो जाईए. यह आपकी सेहत को बिगाड़ सकता है. आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) के वैज्ञानिकों ने एक बड़ा खुलासा किया है. जिसके मुताबिक यदि एक व्यक्ति प्रतिदिन पेपर कप में औसतन तीन बार चाय या कॉफी पीता है, तो वह 75,000 छोटे सूक्ष्म प्लास्टिक (Micro-plastic) के कणों को निगलता है. प्लास्टिक वाली गिलास को सेहत के लिए खतरनाक मानकर हम सभी ने पेपर वाले कप में चाय पीना शुरू कर दिया है, लेकिन सच ये है कि डिस्पोजेबल पेपर कप (Disposable Paper Cups) में रखी जाने वाली चाय भी आपकी सेहत को बिगाड़ सकती है.

रिसर्च में इस बात की पुष्टि हुई है कि कप के भीतर के अस्तर में इस्तेमाल सामग्री में सूक्ष्म-प्लास्टिक और अन्य खतरनाक घटकों की उपस्थिति होती है और उसमें गर्म तरल पदार्थ परोसने से पदार्थ में दूषित कण आ जाते हैं. पेय पदार्थों के सेवन के लिए डिस्पोजेबल पेपर कप लोकप्रिय विकल्प साबित हुआ है. लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि पेपर कप के भीतर आमतौर पर हाइड्रोफोबिक फिल्म की एक पतली परत होती है जो ज्यादातर प्लास्टिक (पॉलीथीन) और कभी-कभी सह-पॉलिमर से बनी होती है.

देश में पहली बार किए गए अपनी तरह के इस शोध में सिविल इंजीनियरिंग विभाग की शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुधा गोयल तथा पर्यावरण इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन में अध्‍ययन कर रहे शोधकर्ता वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसेफ ने बताया कि 15 मिनट के भीतर यह सूक्ष्म प्लास्टिक की परत गर्म पानी की प्रतिक्रिया में पिघल जाती है.

डिस्पोजल पेपर कप कितना खतरनाक?

प्रोफेसर सुधा गोयल ने कहा, ‘हमारे रिसर्च के अनुसार एक पेपर कप में रखा 100 मिलीलीटर गर्म तरल (85-90 ओसी), 25,000 माइक्रोन-आकार (10 माइक्रोन से 1000 माइक्रोन) के सूक्ष्म प्लास्टिक के कण छोड़ता है और यह प्रक्रिया कुल 15 मिनट में पूरी हो जाती है.

ये सूक्ष्म प्लास्टिक आयन जहरीली भारी धातुओं जैसे पैलेडियम, क्रोमियम और कैडमियम जैसे कार्बनिक यौगिकों और ऐसे कार्बनिक यौगिकों, जो प्राकृतिक रूप से जल में घुलनशील नहीं हैं में, समान रूप से, वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं. जब यह मानव शरीर में पहुंच जाते हैं, तो स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकते हैं.

शोधकर्ताओं ने शोध के लिए दो अलग-अलग प्रक्रियाओं का पालन किया. पहली प्रक्रिया में, गर्म और पूरी तरह स्‍वच्‍छ पानी (85–90 ◦C; pH~6.9) को डिस्पोजेबल पेपर कप में डाला गया और इसे 15 मिनट तक उसी में रहने दिया गया. इसके बाद जब इस पानी का विश्‍लेषण किया गया, तो पाया गया कि उसमें सूक्ष्म-प्लास्टिक की उपस्थिति के साथ-साथ अतिरिक्त आयन भी मिश्रित हैं.

जबकि, दूसरी प्रक्रिया में, कागज के कपों को शुरू में गुनगुने (30-40 डिग्री सेल्सियस) स्‍वच्‍छ पानी (पीएच/ 6.9) में डुबोया गया और इसके बाद, हाइड्रोफोबिक फिल्म को सावधानीपूर्वक कागज की परत से अलग किया गया और 15 मिनट के लिए गर्म एवं स्‍वच्‍छ पानी (85–90 °C; pH~6.9) में रखा गया. इसके बाद इस प्लास्टिक फिल्‍म के गर्म पानी के संपर्क में आने से पहले और बाद में उसमें आए भौतिक, रासायनिक और यांत्रिक गुणों में परिवर्तन की जांच की गई.

प्रो. गोयल ने कहा कि एक सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं ने बताया कि चाय या कॉफी को कप में डाले जाने के 15 मिनट के भीतर उन्‍होंने इसे पी लिया था. इसी बात को आधार बनाकर यह शोध समय तय किया गया. सर्वेक्षण के परिणाम के अलावा, यह भी देखा गया कि इस अवधि में पेय अपने परिवेश के तापमान के अनुरूप हो गया.

new research on tea, research on harmful Microplastic, Dangerous for health, Alert for health, Disposable paper cup, IIT Kharagpur, चाय पर नया शोध, हानिकारक माइक्रो प्लास्टिक पर शोध, स्वास्थ्य के लिए खतरनाक, स्वास्थ्य के लिए चेतावनी, डिस्पोजेबल पेपर कप, आईआईटी खड़गपुर

इन वैज्ञानिकों ने पेपर कप पर किया शोध

तो फिर चाय किसमें पीना चाहिए? 

इस स्थिति से बचने के लिए क्या पारंपरिक मिट्टी के उत्पादों का डिस्पोजेबल उत्‍पादों के स्‍थान पर इस्‍तेमाल किया जाना चाहिए, इस सवाल पर आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. वीरेंद्र के तिवारी ने कहा, “इस शोध से यह साबित होता है कि किसी भी अन्‍य उत्‍पाद के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देने से पहले यह देखना जरूरी है कि वह उत्‍पाद पर्यावरण के लिए प्रदूषक और जैविक दृष्टि से खतरनाक न हों.”

“हमने प्लास्टिक और शीशे से बने उत्‍पादों को डिस्पोजेबल पेपर उत्‍पादों से बदलने में जल्‍दबाजी की थी, जबकि जरूरत इस बात की थी कि हम पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की तलाश करते. भारत पारंपरिक रूप से एक स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देने वाला देश रहा है और शायद अब समय आ गया है, जब हमें स्थिति में सुधार लाने के लिए अपने पिछले अनुभवों से सीखना होगा.”

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.