मोहन भागवत बोले- हिंदू कभी भारत विरोधी नहीं हो सकता, ओवैसी ने पूछा- गोडसे क्या था?

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) के बयान पर असदुद्दीन ओवैसी (Assaduddin Owaise) ने ट्वीट करके लिखा, 'क्या भागवत जवाब देंगे: गांधी के हत्यारे गोडसे के बारे मे क्या कहना है? नेल्ली नरसंहार, 1984 सिख विरोधी दंगे और 2002 गुजरात नरसंहार के ज़िम्मेदार लोगों के लिए क्या कहना है?'

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने शुक्रवार को कहा कि अगर कोई हिन्दू है तब वह देशभक्त होगा और यह उसका बुनियादी चरित्र व प्रकृति है. संघ प्रमुख ने महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की उस टिप्पणी को उद्धृत करते हुए यह बात कही, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी देशभक्ति की उत्पत्ति उनके धर्म से हुई है.

वहीं मोहन भागवत के इस बयान के बाद एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करके उन पर पलटवार किया है. ओवैसी ने ट्वीट में लिखा, ‘क्या भागवत जवाब देंगे: गांधी के हत्यारे गोडसे के बारे मे क्या कहना है? नेल्ली नरसंहार, 1984 सिख विरोधी दंगे और 2002 गुजरात नरसंहार के ज़िम्मेदार लोगों के लिए क्या कहना है?’

ओवैसी ने अगले ट्वीट में लिखा, ‘एक धर्म के अनुयायियों को अपने आप देशभक्ति का प्रमाण जारी किया जा रहा है और जबकि दूसरे को अपनी पूरी ज़िंदगी यह साबित करने में बितानी पड़ती है कि उसे यहां रहने और ख़ुद को भारतीय कहलाने का अधिकार है.’

दरअसल जेके बजाज और एमडी श्रीनिवास की लिखित पुस्तक ‘मेकिंग ऑफ ए हिन्दू पैट्रियट : बैकग्राउंड आफ गांधीजी हिन्द स्वराज’ का लोकार्पण करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि किताब के नाम और मेरा उसका विमोचन करने से अटकलें लग सकती हैं कि यह गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है. उन्होंने कहा, ‘महापुरुषों को कोई अपने हिसाब से परिभाषित नहीं कर सकता.’ उन्होंने कहा कि यह किताब व्यापक शोध पर आधारित है और जिनका इससे विभिन्न मत है वह भी शोध कर लिख सकते हैं.

संघ प्रमुख ने कहा, ‘गांधीजी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है. मैं अपने धर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनूंगा और लोगों को भी ऐसा करने को कहूंगा. गांधीजी ने कहा था कि स्वराज को समझने के लिए स्वधर्म को समझना होगा.’ स्वधर्म और देशभक्ति का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि हिन्दू है तो उसे देशभक्त होना ही होगा क्योंकि उसके मूल में यह है. वह सोया हो सकता है जिसे जगाना होगा, लेकिन कोई हिन्दू भारत विरोधी नहीं हो सकता.

भागवत ने कहा कि जब तक मन में यह डर रहेगा कि आपके होने से मेरे अस्तित्व को खतरा है और आपको मेरे होने से अपने अस्तित्व पर खतरा लगेगा तब तक सौदे तो हो सकते हैं, लेकिन आत्मीयता नहीं. उन्होंने कहा कि अलग होने का मतलब यह नहीं है कि हम एक समाज, एक धरती के पुत्र बनकर नहीं रह सकते. उन्होंने कहा कि एकता में अनेकता, अनेकता में एकता यहीं भारत की मूल सोच है. (भाषा इनपुट के साथ)

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