कैप्टन Vs केजरीवालः किसान आंदोलन में AAP को दिखा मौका, लेकिन अमरिंदर ने गाड़ा खूंटा

किसान आंदोलन (Farmers Agitation) के मुद्दे पर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के बीच जुबानी जंग चल रही है, विधानसभा चुनाव पर गिद्ध दृष्टि गड़ाए आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के साथ कैप्टन परसेप्शन की लड़ाई रहे हैं.

नई दिल्ली. 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में बहुत सारे चुनाव पर्यवेक्षकों को इस बात से हैरानी हुई कि कांग्रेस की कोशिश अकाली सरकार को सत्ता से बाहर करने की थी, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सबसे ज्यादा तीखे हमले आम आदमी पार्टी पर दागे. ये कहा जा सकता है कि कैप्टन के पास राजनीति का गहन और व्यापक अनुभव है और उन्हें आभास था कि ये सिर्फ वक्त की बात है, जब आदमी पार्टी पंजाब की राजनीति में अपने पैरों पर खड़ी होगी. अमरिंदर सिंह के लिए चौंकाने वाला था, जब 2014 के लोकसभा चुनाव (2014 Loksabha Election) में आम आदमी पार्टी ने कैप्टन के गढ़ पटियाला में चुनावी बाजी अपने नाम कर ली. हालांकि 2019 के चुनाव में अमरिंदर सिंह की पत्नी प्रणीत कौर ने जीत हासिल कर गढ़ को वापिस हासिल कर लिया, लेकिन कैप्टन के किले में दरार तो बन ही गई है.

दिसंबर 2020 की सर्दियों में लौटते हैं, पंजाब की राजनीति में किसानों का मुद्दा हावी है और सबसे ज्यादा कड़वाहट भरी लड़ाई कैप्टन अमरिंदर सिंह और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के बीच लड़ी जा रही है. लेकिन, यही तो आम आदमी पार्टी चाहती है, और ये लड़ाई पंजाब में उसकी किस्मत चमका सकती है.

नरेंद्र मोदी (Narendra Modi Government) सरकार ने जब कृषि सुधार विधेयकों को संसद से पास करवाया तब अकाली दल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए का हिस्सा थी और यही बात अकालियों के खिलाफ चली गई है. राजनीतिक रूप से अकाली दल (Akali Dal) की साख पर बट्टा लगना उसे चुनाव में भारी पड़ सकता है. किसान आंदोलन शुरू होने के बाद एनडीए से बाहर आना अकालियों की डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश ही कही जाएगी. आम आदमी पार्टी की गिद्ध दृष्टि उसी वोट बैंक पर है, जो अकालियों को वोट करती थी और केजरीवाल की कोशिश उसे अपने पाले में करने की है. दिल्ली की सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी की कोशिश हिंदुस्तान की सियासत में अपने पंख फैलाने की है और ये अमरिंदर सिंह के साथ उसकी लड़ाई से स्पष्ट है.

कुछ दिनों पहले जब पंजाब के मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात के बाद केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों से अपील करते हुए कहा था कि सीमावर्ती राज्य होने के चलते पंजाब को सुरक्षा संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, लिहाजा किसानों को अपना प्रदर्शन खत्म करने पर विचार करना चाहिए. कैप्टन के इस बयान के बाद आम आदमी पार्टी और केजरीवाल ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया, अमरिंदर पर अपना स्टैंड हल्का करने का आरोप लगा और कहा गया कि अपने बेटे को प्रवर्तन निदेशालय (ED) से बचाने के लिए बीजेपी के प्रति वे नरमी बरत रहे हैं.

कैप्टन ने अपने विरोधी के खिलाफ कभी भी हमला करने में संकोच नहीं किया और उन्हें नीच (Sneaky) तक करार दिया. किसान आंदोलन और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कैप्टन पर दबाव है और अमरिंदर कभी नहीं चाहेंगे कि आम आदमी पार्टी पंजाब की राजनीति में कामयाब हो. ऐसे में किसान आंदोलन जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर अमरिंदर सिंह परसेप्शन की लड़ाई लड़ रहे हैं.

अमरिंदर सिंह कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में ये उनका आखिरी कार्यकाल हो सकता है. लेकिन, जो लोग उन्हें जानते हैं वे बताते हैं कि कैप्टन के पीछे हटने का कोई चांस नहीं है. उनमें अभी भी लड़ने की ताकत है और वे राजनीति छोड़ेंगे नहीं. ऐसे में कैप्टन अमरिंदर को आम आदमी पार्टी के हाथों हारना गंवारा नहीं होगा. आम आदमी पार्टी की निगाह पंजाब की राजनीति में बने उस मौके को भुनाने की है, जो अकाली दल के कमजोर पड़ने से दिख रहा है. केजरीवाल को उम्मीद है कि एंटी-अकाली वोट उन्हें मिल सकता है. साथ ही कैप्टन अमरिंदर के काम करने की स्टाइल से कांग्रेसी वोटरों में बना निराशा का माहौल उन्हें फायदा दे सकता है.

पंजाब की राजनीति को आक्रामक स्वभाव भाता है, लिहाजा आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. यही वजह है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गांधी परिवार की उस सिफारिश को मान लिया कि नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी में उचित सम्मान और स्थान मिलना चाहिए. संभव है कि आने वाले दिनों में नवजोत सिंह सिद्धू को मंत्री परिषद में भी जगह मिल जाए. सिद्धू भीड़ जुटाते हैं और आम आदमी पार्टी की उन पर निगाह है.

राजनीति के माहिर खिलाड़ी अमरिंदर सिंह को भविष्य की इबारत दिख रही है और उन्होंने सिद्धू को लंच पर बुलाकर समझौते का इशारा कर दिया, लेकिन आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उन्हें एक इंच भी पीछे हटना गंवारा नहीं है.

 

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