नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक महिला द्वारा पुरुष पर लगाए गए रेप के आरोप पर कहा है कि यह बलात्कार नहीं बल्कि दोनों एक दूसरे से गहराई से प्यार करते थे. अदालत ने पाया कि लड़की ने लड़के पर 21 साल पहले आरोप लगाए थे क्योंकि दोनों अलग-अलग जाति के थे और शादी नहीं हो सकी थी.
झारखंड निवासी एक शख्स पर साल 1999 में बलात्कार और अवैध प्रसव कराने का आरोप लगाया गया. इतना ही नहीं लड़की की शिकायत पर चार साल पहले की घटनाओं का हवाला देते हुए, उसे एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था और सात साल जेल की सजा सुनाई गई थी. दोनों के बीच प्रेम पत्र दिखाने के बावजूद ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को झारखंड हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा.
हाईकोर्ट का फैसला दुर्भाग्य पूर्ण
सोमवार को जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि झारखंड हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों, प्रेम पत्रों और उनकी तस्वीरों के साथ आकलन करने में असफल रहा. सुप्रीम कोर्ट ने लड़की की गवाही को अस्वीकार कर दिया जिसमें उसने कहा था कि शादी का वादा होने या डर की वजह से उसने यौन संबंध बनाए थे.
फैसला सुनाते हुए जस्टिस नवीन सिन्हा ने कहा कि ‘ हमें यह निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं है कि ना सिर्फ लड़की की सहमति थी बल्कि वह उसने जो चुना उसके प्रति वह सचेत भी थीं. ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वह लड़के से बहु प्यार करती थीं. उन्होंने अपने स्वेच्छा से अपना शरीर उसे सौंप दिया जिससे वह बहुत प्यार करती थीं.’
बता दें मामले में व्यक्ति अनुसूचित जनजाति का था जबकि लड़की ईसाई थी. बेंच ने कहा कि ‘वे एक पारंपरिक समाज में विभिन्न धार्मिक मान्यताओं को मानते थे. आरोपों की प्रकृति और तरीके, उनके बीच एक दूसरे को लिखे गए पत्र यह स्पष्ट करते हैं कि एक-दूसरे के लिए उनका प्यार काफी समय तक बढ़ा और मजबूत हुआ.’ सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि ‘वे दोनों एक-दूसरे के करीब थे. शारीरिक संबंध कोई कुछ बार नहीं बल्कि सालों तक नियमित रहे. लड़की भी लड़के के घर जाकर रही.’