नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को अचानक लेह पहुंचे। उनका लेह जाना फिलहाल वहां मौजूद सेना-आईटीबीपी के जवानों और अफसरों के लिए बेहद खास है। सेना-वायुसेना के रिटायर्ड सीनियर ऑफिसर्स से समझिए इसके मायने।
ऑन स्पॉट असेसमेंट का अलग असर होता है- रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ
प्रधानमंत्री मोदी लेह पहुंचे हैं, इसका बहुत अच्छा असर सिर्फ सेना के ही नहीं, बल्कि पूरे देश के मोटिवेशन पर होगा। इसका सकारात्मक पक्ष ये है कि नेता जब खुद स्पॉट या फ्रंटलाइन पर जाता है तो वो पर्सनली सिचुएशन को रिव्यू करते हैं।
वरना उन्हें लेयर बाय लेयर से गुजरने के बाद ब्रीफिंग से स्थिति का पता चलता है। जिसमें टाइम गैप बहुत हो जाता है, एनालिसिस करने और वैल्यू एड होने के बाद उन्हें जानकारी मिलती है। ऑन स्पाट असेसमेंट का अलग असर होता है, इसमें वो सीधे उन लोगों से समझते हैं जो उससे जुड़े हैं और स्थिति का सामना कर रहे हैं।
सोल्जर्स से खुद सुनना बेहद खास है। छोटी-छोटी बातें पता चलती हैं और कई बार छोटे फैसले तुरंत हो जाते हैं। ऑनग्राउंड उनको बताया जाता है, ये होगा तो अच्छा होगा और वे सीधे ऑर्डर देते हैं कि ऐसा करो। इससे एक्शन-रिएक्शन जल्दी होता है। बीच में कोई मंत्रालय, कोई फाइल नहीं आती।
जब मैं कश्मीर में कोर कमांडर था। उड़ी में हमला हुआ, उसी दिन तब रक्षा मंत्री रहे मनोहर पार्रिकर कश्मीर आए थे। वे उड़ी जाना चाहते थे, सैनिटाइनजेशन पूरा नहीं हुआ था इसलिए हमने उन्हें जाने से मना किया। उनके आने का फायदा ये हुआ कि हमें इजाजत मिली। हम सर्जिकल स्ट्राइक कर पाए और 10 दिन में एक्शन ले लिया।
मोदी का जाना बताता है कि वे सेना के साथ हैं और कमांडर को हर फैसला लेने की आजादी है: रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा
पीएम का जाना वहां तैनात सैनिकों के हौसले के लिए बहुत बड़ी बात है। ये सिग्नल है कि देश आपके साथ है और सरकार सेना के साथ रहेगी हर चीज में, हर एक्शन के लिए। पीएम का जाना ये भी दर्शाता है कि मोदी ने आर्मी कमांडर को आजादी दे दी है और ऑनग्राउंड कुछ होता है तो भारत सरकार और देश का प्रधानमंत्री उनके साथ हैं।
फिजिकली पीएम का जाना जहां एक्शन हो रहा है, ये इसलिए मायने रखता है कि ऑनग्राउंड ऑपरेशन में क्या होगा कोई नहीं जानता, ऐसे में सोल्जर को नहीं पता होता कि जो हमारा कमांडर बोल रहा है, क्या सरकार भी साथ है। मोदी के जाने से उन सोल्जर्स को ये पता चलेगा कि सरकार हमारे साथ है। सोल्जर्स के लिए जान देना एक बात होती है और उनकी शहादत को पहचान देना अलग।
उन्हें ये कॉन्फिडेंस होना चाहिए कि जब मेरा कफन आएगा तो उसे इज्जत दी जाएगी। मोदी का जाना इस लिहाज से अहम होगा की ये गलवान में शहीद हुए लोगों को इज्जत देने की बात है। यही वजह है कि हम फोर्सेस में फ्यूनरल को अहमियत देते हैं, जिंदा लोगों को ये बताने के लिए कि आपका होना कितना मायने रखता है।
मोदी का ये फैसला सेंसिबल बात है। जॉर्ज फर्नांडीज सियाचिन ग्लेशियर जाते थे, वे सबसे ज्यादा बार वहां जाने वाले नेता बने। फर्नांडीज हर 2-3 महीने में ग्लेशियर चले जाते थे, सैनिकों के लिए फल ले जाते थे और केक भी।
ब्यूरोक्रेट कभी फ्रंट पर नहीं जाता बस फाइल पर बैठा होता है, पीएम को ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम से सीमा की जानकारी पता लगती है तो चीजें डायल्यूट हो जाती हैं। पीएम दो दिवाली पर कश्मीर लद्दाख बॉर्डर पर गए। जो उनका ग्राउंड कनेक्ट बताता है। लीडर जब लोकल कमांडर से मिलेगा तो उसे पल्स पता लगेगी, जिसे वो आगे एक्शन ले सकते हैं।
ये सोल्जर्स के लिए हौसले का हाईडोज है- रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन
मोदी की ये सरप्राइज विजिट जबरदस्त है। जिस तरह से उन्होंने ये फैसला लिया है। ये विजिट सेना और राजनीतिक एंगल दोनों के लिए गेम चेंजर साबित होगी। नीमू लेह का बाहरी इलाका है जहां सेना की एक बड़ी गैरिसन है। कोरोना के बाद दिल्ली से बाहर मोदी की ये दूसरी यात्रा है, इससे पहले वे पश्चिम बंगाल तूफान का जायजा लेने गए थे।
ये उनकी स्ट्रैटजिक मैसेजिंग का हिस्सा है। सरकार लगातार ऐसे कदम उठा रही है ताकि इसका मजबूत संदेश जाए। जब प्रधानमंत्री खुद फ्रंटलाइन पर जाते हैं तो ये सोल्जर्स के लिए हौसले का हाईडोज होता है।