मोदी-शाह कल मिलेंगे कश्मीरी नेताओं से, जानिए क्या रहेगा एजेंडे में और कब हो सकते हैं घाटी में चुनाव?
सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि घुसपैठ अब बहुत कम हो रही है। सोपोर में रविवार को पाकिस्तानी आतंकवादी को मार गिराया गया। इसके अलावा पिछले आठ महीने में किसी विदेशी आतंकी से किसी तरह की कोई मुठभेड़ नहीं हुई है। इस्लामाबाद ने तो कुलभूषण जाधव केस में भारत को राहत ही दी है।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 जून को कश्मीर के नेताओं से मुलाकात करने वाले हैं। इसमें जम्मू-कश्मीर के भविष्य पर चर्चा होगी। ना-नुकुर के बाद कश्मीर के राजनीतिक दलों के संगठन पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (PAGD) ने प्रधानमंत्री से मुलाकात को लेकर नरम रुख दिखाया है।
5 अगस्त 2019 को केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेट्स को खत्म कर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था। उसके बाद से राजनीतिक हालात अस्थिर हो गए थे। ज्यादातर बड़े नेता नजरबंद रहे। अब मोदी की मुलाकात को केंद्र की ओर से जम्मू-कश्मीर में जम्हूरियत कायम करने के लिए सभी दलों से बात करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
क्या है मोदी-शाह के एजेंडे में?
- इस संबंध में ठोस कुछ नहीं है। पर कयास लग रहे हैं कि बातचीत कश्मीर के भविष्य पर होगी। 5 अगस्त 2019 के बाद राज्य में जो भी हुआ, उससे राजनीतिक अस्थिरता का माहौल रहा है। आर्टिकल 370 खत्म करने और जम्मू-कश्मीर रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट (JKRA) को लेकर गतिरोध बना हुआ है।
- इसके अलावा भी बहुत-से मुद्दों पर बात होने की संभावना है। कुछ लोग तो कह रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा देने पर भी बात हो सकती है। पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के चीफ फारूक अब्दुल्ला समेत कुछ क्षेत्रीय नेताओं ने साफ किया है कि बैठक में किस बात को लेकर चर्चा होगी, इसका उन्हें कोई आइडिया नहीं है।
- हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि यह मीटिंग राज्य में पॉलिटिकल प्रोसेस को मजबूती देगी। विधानसभा चुनावों की संभावना भी टटोली जाएगी। इस समय जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया चल रही है। इसे पूरा करने में सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी की कोशिश होगी। क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग के बिना इसमें दिक्कत आ रही है।
मीटिंग में कौन-कौन भाग लेगा?
- केंद्र सरकार ने 8 राजनीतिक दलों के 14 नेताओं को बैठक के लिए बुलाया है। 5 अगस्त 2019 के बाद पहली बार केंद्र सरकार कश्मीरी नेताओं से बात करने जा रही है। इस वजह से इस बैठक का महत्व काफी बढ़ गया है।
- केंद्र की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ गृहमंत्री अमित शाह भी मीटिंग में रहेंगे। भाजपा के जम्मू-कश्मीर यूनिट के प्रमुख रविंदर रैना, पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के चीफ अल्ताफ बुखारी, नेशनल कॉन्फ्रेंस सुप्रीमो फारूक अब्दुल्ला, सीपीएम नेता एमवाय तारिगामी, कांग्रेस के जम्मू-कश्मीर यूनिट चीफ जीए मीर भी होंगे। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और उमर अब्दुल्ला को भी बैठक में बुलाया गया है। अब तक भाजपा और जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी ने कहा है कि वह मीटिंग में भाग लेंगे। पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन से जुड़े नेताओं ने भी मोदी-शाह के साथ होने वाली बैठक में भाग लेने पर सहमति दे दी है।
मोदी-शाह की मीटिंग पर पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन का क्या रुख है?
- करीब 22 महीने पहले, आर्टिकल 370 रद्द होने से एक दिन पहले 4 अगस्त 2019 को श्रीनगर में भी जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियों की मीटिंग हुई थी। यह मीटिंग फारूक अब्दुल्ला के गुपकार रोड स्थित बंगले में हुई थी। यहां पर जॉइंट स्टेटमेंट जारी हुआ था। कहा गया था कि वे जम्मू-कश्मीर की आइडेंटिटी, ऑटोनोमी और स्पेशल स्टेटस की सुरक्षा के लिए लड़ते रहेंगे। इसे ही गुपकार डिक्लेरेशन कहा गया।
- इस डिक्लेरेशन में कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) समेत जम्मू-कश्मीर की प्रमुख पार्टियां मौजूद थीं। 15 अक्टूबर 2020 को अब्दुल्ला के घर पर इन नेताओं ने फिर बैठक की और पार्टियों की इस भागीदारी को पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन नाम दिया गया। यह ग्रुप कश्मीर को विशेष दर्जा देने की मांग कर रहा है।
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क्या इस साल जम्मू-कश्मीर में चुनाव होंगे?
- नहीं। फिलहाल तो स्थिति लग नहीं रही। रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में परिसीमन आयोग को जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों को नए आकार देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। राज्य के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा भी कह चुके हैं कि परिसीमन के बाद ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव होंगे। संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने भी यही बात दोहराई थी।
- इस समय आयोग अपना काम कर रहा है। उसका कार्यकाल मार्च 2022 तक है। क्षेत्रीय पार्टियों ने सहयोग नहीं किया, इस वजह से परिसीमन के काम में अड़चनें आ रही हैं। यानी परिसीमन के बाद ही चुनाव हो सकेंगे। जम्मू-कश्मीर में इससे पहले 1995 में परिसीमन हुआ था।
जम्मू-कश्मीर में इस समय क्या स्थिति है?
- 2018 में भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद महबूबा मुफ्ती सरकार गिर गई थी। तब 19 जून 2018 से जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा था। उस समय आर्टिकल 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन नहीं लग सकता था।
- नवंबर 2018 में विधानसभा भंग हो गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर विधानसभा भंग होने के 6 महीने में चुनाव कराने थे। पर यह नहीं हो सका। लोकसभा चुनावों के बाद 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 खत्म कर दिया। राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटा गया। तब से राज्य में राष्ट्रपति शासन है। लेफ्टिनेंट गवर्नर के मार्फत केंद्र का शासन चल रहा है।
क्या केंद्र पर इस मीटिंग के लिए किसी तरह का दबाव है?
- नहीं। इस समय जम्मू-कश्मीर के स्थानीय स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हालात केंद्र के लिए फेवरेबल हैं। कश्मीर के जो नेता केंद्र से सहमत नहीं थे, वे जेल में डाल दिए गए थे। केंद्र की मोदी सरकार ने अपनी पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाया है और इस समय उन्हें कोई रोकने वाला नहीं है।
- जहां तक विदेशी हालात का सवाल है, चीन के साथ लद्दाख में सीजफायर है। अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान फिर काबुल पहुंच सकता है। यूनाइटेड अरब अमीरात की पहल पर भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिशें भी तेज हो गई हैं। भारत-पाकिस्तान सीमा पर बिना किसी शर्त का सीजफायर है। पाकिस्तान के नेताओं के भी भारत-विरोधी बयान अब शांत हो गए हैं।
- सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि घुसपैठ अब बहुत कम हो रही है। सोपोर में रविवार को पाकिस्तानी आतंकवादी को मार गिराया गया। इसके अलावा पिछले आठ महीने में किसी विदेशी आतंकी से किसी तरह की कोई मुठभेड़ नहीं हुई है। इस्लामाबाद ने तो कुलभूषण जाधव केस में भारत को राहत ही दी है।
- हालांकि जम्मू-कश्मीर में लोकल लेवल पर अविश्वास का माहौल है। नेताओं का केंद्रीय नेतृत्व पर भरोसा नहीं है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि मोदी-शाह की कश्मीरी नेताओं के साथ बैठक में कश्मीर में जम्हूरियत बहाली की कोशिशें होंगी।