Coronavirus: क्या वैक्सीन बंटवारे के लिए WHO और चीन साठगांठ कर चुके हैं?

कोविड-19 वैक्सीन (Covid-19 vaccine) के निर्माण और सही बंटवारे के लिए बने संगठन कोवैक्स (Covax) से चीन भी जुड़ गया है. हालांकि चीन की नीयत अब भी शक के घेरे में है.

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कोरोना वायरस वैक्सीन दुनियाभर के देशों में बिना भेदभाव बंट सके, इसके लिए चीन भी अब कोवैक्स (covax) का हिस्सा बन गया है. बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोवैक्स गठबंधन तैयार किया है. ये इस तरह से बनाया गया है कि अमीर देश फंडिंग करें और इससे गरीब देशों तक भी वैक्सीन पहुंच सके. चीन पहले कोवैक्स से जुड़ने को तैयार नहीं था लेकिन फिर अचानक जुड़ गया, जबकि अमेरिका इस गठबंधन का हिस्सा नहीं है. जानिए, क्या हैं इसके मायने.

कोवैक्स क्या है 
सबसे पहले तो ये समझना जरूरी है कि आखिर ये कोवैक्स क्या है और क्या करेगा. WHO ने अप्रैल में कोरोना महामारी का टीका तैयार करने के लिए इसे बनाया. यूरोपियन यूनियन भी इसमें उसका सहयोगी है. इसे बनाने के पीछे WHO का मकसद सभी देशों को समान तरीके से कोविड-19 की वैक्सीन पहुंचाना है. बता दें कि इससे कई वैक्सीन निर्माता देश जुड़ चुके हैं और ये तय किया गया है कि साल 2021 के आखिर तक दुनिया के देशों में कम से कम 2 बिलियन डोज पहुंचाए जाएंगे. कोवैक्स का एक और भी मकसद है, कि कोरोना वैक्सीन की जमाखोरी रोकी जा सके ताकि वो तुरंत से तुरंत जरूरतमंदों तक पहुंचे.

कौन से देश इससे जुड़े हैं

WHO के मुताबिक कोवैक्स से अब तक 160 से ज्यादा देश जुड़ गए हैं, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा जैसे विकसित देश भी शामिल हैं. ये वो देश हैं जो कोरोना वैक्सीन बनाने के आखिरी चरण में हैं. इनका काम वैक्सीन सबको दिलवाना है. इसके लिए सभी देशों को दो श्रेणियों में रखा गया है – एक तो वो देश, जो खुद को फाइनेंस कर सकते हैं और दूसरे वो देश जिन्हें फंडिंग की जरूरत है. पहली श्रेणी के देश वैक्सीन की पूरी कीमत चुकाएंगे और कुछ गरीब देशों को बहुत कम या कुछ भी नहीं देना होगा. इस तरह से कोवैक्स काम करेगा.

अमेरिका और रूस इसका हिस्सा नहीं 
देशों ने मिलकर वैक्सीन की रिसर्च और निर्माण के लिए पहले ही 1.4 बिलियन डॉलर कोवैक्स को दिए हैं, हालांकि WHO के मुताबिक अभी और पैसों की जरूरत है. इसके लिए उसने अमेरिका और रूस से भी कोवैक्स में शामिल होने की बात की लेकिन दोनों ही महाशक्तियों ने इससे इनकार कर दिया. इसकी बजाए ये दोनों ही देश वैक्सीन बनाकर दूसरे कई देशों से द्विपक्षीय समझौते कर रहे हैं ताकि उनकी बनाई वैक्सीन खरीदी जाए.

अमेरिका पहले से ही नाराज 
वैसे अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप पहले ही WHO पर चीन से मिले होने और करप्ट होने का आरोप लगा चुके हैं. कोरोना के मामले में देर से आगाह करने के कारण ट्रंप संगठन की अमेरिकी फंडिंग भी पहले ही रोक चुके हैं. ऐसे में कोवैक्स स्कीम से अमेरिका के जुड़ने का सवाल ही नहीं आता. रूस का भी कोवैक्स से न जुड़ना अमेरिकी देखादेखी माना जा रहा है. रूस वैक्सीन की दौड़ में सबसे आगे है और वहां कोरोना वैक्सीन का टीकाकरण भी शुरू हो चुका है. माना जा रहा है कि वो कोवैक्स में शामिल होने पर वैक्सीन को भारी कीमत पर बेच नहीं सकेगा इसलिए वो इससे बच रहा है.

क्या नफा-नुकसान है चीन से 
अमेरिका और रूस के शामिल न होने, जबकि चीन के कोवैक्स से जुड़ने के कई मतलब हो सकते हैं. बीजिंग ने अब तक ये साफ नहीं किया है कि वो कैसे स्कीम में अपनी मदद देगा. हालांकि उसका कहना है कि वो वैक्सीन के बांटने में मदद करेगा और इसके लिए फंडिंग भी करेगा. वैसे इसका एक और मतलब भी हो सकता है. कोवैक्स के तहत बनाई जा रही 9 वैक्सीन में से 4 वैक्सीन खुद चीन बना रहा है. ऐसे में बेचने और बांटने के दौरान चीन की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ सकती है. खासकर तब, जब उसपर पहले से ही कोरोना को छिपाने और दुनिया को अंधेरे में रखने का आरोप लग रहा है.

 

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