कोरोना से निपटने के हैं 3 ही तरीके-इनमें क्या फायदा, क्या नुकसान
कोेरोना संक्रमण (coronavirus infection) का आंकड़ा 8 लाख 60 हजार पार पहुंचने के साथ ही दुनियाभर के मुल्क (countries worldwide) इस वायरस से लड़ने के लिए 3 तरीके निकाल चुके हैं.
भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन का दूसरा सप्ताह शुरू हो चुका है. इस बीच कोरोना संक्रमण के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं. फिलहाल ये आंकड़ा 1,590 पहुंच चुका है. ऐसे में ये देखना जरूरी है कि दुनियाभर के देश इस बीमारी से लड़ने के लिए किस तरह के तरीके अपना रहे हैं और ये कितने कारगर हो रहे हैं.
लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग
हालांकि बीमारी के फैल जाने पर सोशल डिस्टेंसिंग कितनी कारगर है, इसपर विवाद है. जैसे 1918 में स्पेनिश फ्लू के आने पर अमेरिका के फिलाडेल्फिया में भी मरीज आने लगे. इसके बाद भी इस हिस्से ने काफी देर से सोशल डिस्टेंसिंग की बात की. यही वजह है कि फिलाडेल्फिया में 10 हजार से ज्यादा लोग इससे मारे गए. जबकि बीमारी के आउटब्रेक की जगह सेंट लुइस में 700 कैजुएलिटी हुई.
सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए बीमारी का संक्रमण रोके जाने का वक्त मिल जाएगा
हल्के-फुल्के प्रतिबंध
कोरोना से बुरी तरह से प्रभावित दूसरे यूरोपियन देशों की तुलना में जर्मनी ने लॉकडाउन की घोषणा अबतक नहीं की है. वहीं 22 मार्च से यहां पर स्ट्रिक्ट सोशल डिस्टेसिंग रखे जाने की सलाह दी गई है. सरकार का कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए बीमारी का संक्रमण रोके जाने का वक्त मिल जाएगा. इस दौरान इलाज आने की भी उम्मीद की जा रही है.
वायरस की लगातार जांच
लगभग सारे देश कोरोना को बेहद संक्रामक बीमारी मान रहे हैं. लेकिन अब भी इसकी जांच के लिए पर्याप्त किट किसी भी देश में नहीं हैं. केवल साउथ कोरिया को इस मामले में सबसे आगे माना जा रहा है, जहां बड़ी संख्या में नागरिकों की जांच हो रही है. यहां लॉकडाउन के साथ ही जांच शुरू हो गई. इसके लिए तकनीक की मदद भी ली गई जैसे फोन बूथ टेस्टिंग.
साउथ कोरिया को जांच के मामले में सबसे आगे माना जा रहा है
बता दें कि साउथ कोरिया में 20 मार्च तक 3,16,664 जांचें हो चुकी हैं. वहीं जर्मनी में 167,000, रूस में 1,43,519 और इंडिया में 14,514 लोगों की कोरोना की जांच हुई है. बड़ी संख्या में टेस्ट होने पर मरीजों को तुरंत आइसोलेट कर इलाज हो सकता है, इससे कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर वक्त खराब होने या फिर बीमारी फैलते जाने का डर कम हो जाता है.
लॉकडाउन खत्म होने के बाद क्या हो सकता है?
चीन का हुबई प्रांत 67 दिनों के लॉकडाउन के बाद खुला. वहीं वुहान अभी पूरी तरह से खुला भी नहीं है. फिलहाल ये नहीं पता कि लॉकडाउन से कब छुटकारा मिलेगा लेकिन इस दौरान 3 बातें हो सकती हैं
टीका आने के बाद देश अपनी 60 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन दे सकें तो बीमारी महामारी नहीं बन सकेगी. लेकिन माना जा रहा है कि टीका आने में सालभर से ज्यादा वक्त लग सकता है. तब तक लॉकडाउन में रहना मुमकिन नहीं.
टीका आने के बाद देश अपनी 60 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन दे सकें तो बीमारी महामारी नहीं बन सकेगी
इंफेक्शन के बाद लोग इसके लिए इम्यून हो जाएं. इसे झुंड का प्रतिरक्षा सिद्धांत कहते हैं. ये हालात कम्युनिटी ट्रांसमिशन के बाद आते हैं. जैसे एक बार बीमार हो चुके लोगों में इसके लिए इम्युनिटी पैदा हो जाए और आखिर में वायरस कुछ न कर सके. इम्युनिटी पैदा होने में आमतौर पर 6 महीने से लेकर 1 साल का वक्त लगता है. अभी तक SARS-CoV2 के मामले में वैज्ञानिक ये बता नहीं सके हैं.
वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि हो सकता है लॉकडाउन खुलने के बाद बीमारी एकदम से भड़क उठे. ये भी हो सकता है कि ये किसी देश या क्षेत्र विशेष का हिस्सा बन जाए और हर साल होने लगे. जैसे कि भारत में मलेरिया और डेंगू होते हैं. इन हालातों में हमें कुछ प्रतिबंध नियमित तौर पर लगाने होंगे और लगातार जांच करनी होगी.