सऊदी अरब और पाकिस्तान की दशकों पुरानी दोस्ती में कौन बना विलेन?

सऊदी ने पाकिस्तान (Saudi Arab and Pakistan) को दिया अपना उधार वापस मांग लिया है. इधर पाकिस्तान (Pakistan) पैसों के लिए चीन (China) की शरण में है.

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कोरोना के बीच सऊदी अरब और पाकिस्तान के रिश्ते (Saudi Arabia and Pakistan relations) भी बदलते दिख रहे हैं. दोनों देश लंबे वक्त से दोस्ती निभा रहे थे. सऊदी कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आता था. अब वो एकदम से साथ छोड़ता दिख रहा है. उसने इस्लामाबाद को कच्चे तेल की सप्लाई और लोन पर रोक लगा दी. कश्मीर मुद्दे पर भी वो कुछ कहने से बच रहा है. जानिए, सऊदी की पाक के दूरी कैसे भारत के लिए अच्छी खबर हो सकती है.

क्या है ताजा विवाद का कारण
सऊदी और पाकिस्तान के रिश्तों में खटास पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के एक बयान के बाद से आनी शुरू हुई. कश्मीर मसले पर सऊदी की चुप्पी से परेशान मंत्री कुरैशी ने एक चैनल में अपनी भड़ास निकाली. उनके भड़काऊ बयान के तुरंत बाद रियाद ने पाक को कच्चा तेल देने पर रोक लगा दी. असल में अमीर दोस्त सऊदी ने पाकिस्तान के साथ साल 2018 में 6.2 बिलियन डॉलर के समझौते पर दस्तखत किए थे. ये डील मई 2020 में खत्म होने वाली थी और उसके रिन्यूअवल की बात हो रही थी. हालांकि डील रिन्यू करने की बजाए सऊदी ने तेल की सप्लाई रोक दी. साथ ही साथ दिए गए कर्ज की पूरी वसूली की बात कर रहा है.

पाक ने ली चीन की मदद 
बता दें कि फिलहाल इस्लामाबाद को सऊदी को 3 अरब डॉलर लौटाने थे. इनमें से एक अरब डॉलर उसने चीन से उधार लेकर लौटाए. अब भी दो अरब डॉलर बकाया हैं. इसके लिए मोहलत देने की बात करने के लिए पाक सेना प्रमुख जनरल बावजा रियाद भी गए थे लेकिन वहां क्राउन प्रिंस ने उनसे मिलने से ही मना कर दिया. इस तरह से दोनों देशों के रिश्तों में खटास खुले में दिखने लगी.

कैसे थे पाक और सऊदी के रिश्ते
वैसे सऊदी और पाक का रिश्ता कई दशक पुराना है. साल 1971 में भारत-पाक लड़ाई के दौरान सऊदी ने पाकिस्तान के समर्थन में काफी सारे बयान दिए थे और भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की थी. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक तब रियाद ने पाकिस्तान को हथियारों और 75 एय्रक्राफ्ट की आपूर्ति भी की थी.

लड़ाई के बाद पाकिस्तान को सैन्य तौर पर मजबूती देने के लिए सऊदी ने 1 मिलियन डॉलर की रकम उधार पर दी. इसके बाद से अगले दो दशकों तक लगातार पाक को रियाद की तरफ से कच्चा तेल और उधार मिलता रहा. यहां तक कि पाकिस्तान में मदरसों के लिए भी रियाद की तरफ से काफी बड़ी फंडिंग मिलती रही. इसके बदले में पाकिस्तान ने भी दोस्ती निभाते हुए ईराक से खिलाफ अपनी सेना सऊदी को भेजी.

दशकभर से दिख रहा बदलाव
कश्मीर मुद्दे पर सऊदी की अगुवाई में कई इस्लामिक देश भारत को घेरने की कोशिश करते रहे. वे पाक के पक्ष में बातें करते रहे और मुद्दे को इंटरनेशनल मंच पर भी उठाने की कोशिश की. हालांकि पिछले एक दशक में इस ट्रेंड में काफी बदलाव आया है. तुर्की और मलेशिया जैसे इस्लामिक देश जरूर अब भी कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन कर रहे हैं लेकिन सऊदी अब इसे भारत का आंतरिक मुद्दा कहने लगा है. ये भारत की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है.

क्राउन प्रिंस ने की शुरुआत
माना जाता है कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के आने के बाद ये बदलाव आया. क्राउन प्रिंस अपने देश को तेल के भरोसे चलने वाली अर्थव्यवस्था के ज्यादा बनाना चाहते हैं. इसी दिशा में भारत उन्हें अहम साझेदार लगता है. यही वजह है कि क्राउन प्रिंस के ताकतवर होने के बाद से रियाद ने धीरे-धीरे कश्मीर नीति से अपना पल्ला झाड़ लिया. भारत ने भी अमेरिकी प्रतिबंध के बाद से ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है. ऐसे में सऊदी उसके लिए कच्चे तेल का महत्वपूर्ण सोर्स हो सकता है.

सऊदी दिख रहा भारत के साथ
अपनी तरफ से सऊदी दोस्ती का हाथ बढ़ाता दिख रहा है. साल 2019 में कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले के बाद विंग कमांडर अभिमन्यु को पाकिस्तान से छुड़ाने में अमेरिका के साथ-साथ सऊदी और यूएई का हाथ भी माना जाता रहा है. इसके बाद से ही पाकिस्तान अपने पुराने दोस्त सऊदी से खुन्नस रखने लगा. इसकी एक वजह कश्मीर से धारा 370 हटने पर सऊदी की ठंडी प्रतिक्रिया भी रही. धारा हटने से बौखलाए पाकिस्तान ने इस्लामिक देशों पर आरोप लगाया था कि वे कश्मीर मामले में पाकिस्तान की कोई मदद नहीं कर रहे.

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