घने बसे गरीब दक्षिण एशिया में कोविड 19 से क्यों सबसे कम हैं मौतें?

अमेरिका और यूरोप की तुलना में दक्षिण एशियाई देश बेहद गरीब हैं और यहां दुनिया की 20 फीसदी से ज़्यादा आबाद रहती है. ​इसके बावजूद कोरोना वायरस संक्रमण के कन्फर्म मामले और मौतों के आंकड़े कह रहे हैं कि दुनिया का इस हिस्से में महामारी का कहर आश्चर्यजनक रूप से कम है. जानें क्यों और कैसे.

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कोविड 19 (Covid 19) के पहले केस से 12 हफ्ते बाद की स्थिति के तुलनात्मक आंकड़े ये हैं कि अमेरिका (USA) में इस समय सीमा में भारत (India) के मुकाबले 39 गुना ज़्यादा मामले बढ़े, फ्रांस (France) में भारत से 7 गुना, जर्मनी (Germany) में 9 गुना और इटली (Italy) में 11 गुना ज़्यादा मामले रहे.. इसी तरह कोरोना वायरस (Corona Virus) के कारण हो रही मौतों की दर (Mortality Rate) भी भारत में बहुत कम है. इटली की तुलना में 45 गुना कम..

अप्रैल के महीने में इस तरह के आंकड़े लगातार ट्विटर पर नीति आयोग (Niti Aayog) के सीईओ अमिताभ कांत ने पोस्ट किए. सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि कोविड 19 संक्रमण और मौतों की दर को लेकर इसी तरह का ट्रेंड नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान (Pakistan), श्रीलंका और मालदीव में भी देखा जा रहा है. यानी घनी आबादी वाले दक्षिण एशिया (South Asia) के गरीब देशों में कोविड 19 का कहर कम है. ऐसा क्यों है? आंकड़ों और विश्लेषण की ज़ुबानी जानते हैं.

पहले कोरोना से मौत के आंकड़े देखें
कोरोना वायरस के कन्फर्म केस वाले देशों में भारत में संक्रमण से होने वाली मौतों की दर बहुत कम है. एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में कोविड 19 मृत्यु दर 3.1% रही, जबकि अमेरिका में 3.4%, स्पेन में 9.73% और इटली में 12.72%. दुनिया का औसत इस मामले में 5.98% रहा. दुनिया भर में महामारी के कारण हो चुकी मौतों के हिसाब से भारत में करीब 0.3% ही हुई हैं. और इसी तरह का ट्रेंड पूरे दक्षिण एशिया में दिखा है.

इस तरह घना बसा है दक्षिण एशिया
दुनिया की करीब 23 फीसदी आबादी दक्षिण एशिया में रहती है और औसतन इसका घनत्व 303 व्यक्ति प्रति किलोमीटर का है. द वीक की रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर भारत में करीब 453 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी में रहते हें, तो बांग्लादेश में इससे तीन गुने ज़्यादा जबकि अमेरिका में 36, स्पेन में 96 और इटली में 206 लोग प्रति वर्गकिमी के हिसाब से रहते हैं.

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कोविड 19 से दुनिया की कुल मौतों का सिर्फ 0.6% हिस्सा दक्षिण एशिया में है.

26 अप्रैल तक दक्षिण एशिया के आंकड़े
वर्ल्डो मीटर्स के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक स्थिति
पाकिस्तान : 12,723 मामले, 269 मौतें
बांग्लादेश : 5,416 मामले, 145 मौतें
श्रीलंका : 467 मामले, 7 मौतें
नेपाल : 51 मामले
मालदीव : 177 मामले
अफगानिस्तान : 1,463 मामले, 47 मौतें
भारत : 26,496 मामले, 825 मौतें
दुनिया भर में : कुल 2,933,384 मामले और 203,612 मौतें

इसका मतलब यह है कि दुनिया की 20 फीसदी से ज़्यादा आबादी वाले दक्षिण एशिया में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले दुनिया के कुल मामलों का 1.3% हिस्सा हैं और दुनिया की कुल मौतों का 0.6% हिस्सा यहां है. ये आंकड़े क्या कह रहे हैं, साफ है लेकिन ऐसा क्यों है? आइए सिलसिलेवार कारण जानें.

कम टेस्टिंग पहला कारण
द वीक की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि अमेरिका, स्पेन और इटली में ज़्यादा मामले नज़र आए क्योंकि इन देशों में प्रति दस लाख आबादी पर क्रमश: 15 हज़ार, 19 हज़ार और 28 ह​ज़ार टेस्ट किए गए. इसके उलट भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में क्रमश: 420, 654, 262 और 191 ही टेस्ट हुए.

आबादी की उम्र दूसरा कारण
लोली इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट के आधार पर कहा गया है कि दक्षिण एशिया के कुछ देश बाकी दुनिया की तुलना में सबसे ज़्यादा जवान हैं. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में 60 साल से ज़्यादा उम्र की आबादी 5 से 8 फीसदी है और 70 से ज़्यादा उम्र की आबादी 2 से 3 फीसदी. जबकि इटली में 60 से ज़्यादा उम्र वालों की आबादी 16 फीसदी और 70 से ज़्यादा उम्र वालों की आबादी 10 फीसदी है. और यह ज़ाहिर हो चुका है कि कोविड 19 से होने वाली 85 से 90 फीसदी मौतों में मृतकों की उम्र 60 से ज़्यादा रही है.

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                                                                      नीति आयोग के अमिताभ कांत का एक ट्वीट.

टीकाकरण अभियान हैं तीसरी वजह
इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन देशों में टीबी और मलेशिया के केस ज़्यादा हैं, वहां कोरोना वायरस का कहर कम होगा. इस बात को सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि कई विशेषज्ञों ने माना है. अमेरिका के बायोटेक्नोलॉजी सूचना केंद्र के एक अध्ययन में माना गया कि जिन देशों में बीसीजी टीकाकरण अभियान अब भी चल रहे हैं, वहां कोरोना पर काबू बेहतर ढंग से पाया जा सकेगा, उन देशों की तुलना में जहां ऐसा टीकाकरण हुआ ही नहीं या काफी समय पहले बंद हो चुका. जैसे इटली में यह टीकाकरण कभी हुआ ही नहीं.

और तापमान भी है एक कारण?
अध्ययनों के मुताबिक दक्षिण एशियाई देशों का क्लाइमेट भी एक वजह है कि यहां कोरोना वायरस पनपने के मौके कम हैं. धूप, गर्मी और आर्द्रता की स्थितियां इस वायरस के अनुकूल कम देखी गई हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मौजूदगी में अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी फॉर साइन्स एंड टेक के अंडर सेक्रेट्री ने दो दिन पहले न्यूज़ कॉन्फ्रेंस में कहा था कि सीधी धूप में यह वायरस सबसे तेज़ी से मरता है. साथ ही, इज़ॉप्रॉपिल अल्कोहल इस वायरस को 30 सेकंड में खत्म कर सकता है.

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