क्या है मामला
कहा जा रहा है कि खुफिया एजेंसियों ने सरकार को चीन की इस चालाकी के बारे में आगाह किया. इसके बाद से उच्च शिक्षा विभाग हरकत में आया हुआ है. एजुकेशन मिनिस्ट्री इसके तहत सात कॉलेज और विश्वविद्यालयों की समीक्षा करने वाली है. माना जा रहा है कि चीन उन कॉलेजों को फंडिंग के जरिए अपनी भाषा और संस्कृति सिखाता है ताकि स्टूडेंट चीन के प्रभाव में आ जाएं. ये एक तरह से वैसा ही पैंतरा है, जैसा नेपाल में घुसपैठ के लिए चीन ने आजमाया था.
ये चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के नाम पर आधारित हैं (Photo-needpix)
नेपाल के हाल
क्या है संस्थान
ये चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के नाम पर आधारित हैं. वैसे तो पहले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस दार्शनिक की आलोचना किया करती थी लेकिन बाद में उसे दुनिया के दूसरे देशों से जुड़ने का यही सबसे सीधा जरिया लगा. असल में कन्फ्यूशियस का दर्शन दूसरे देशों के लिए काफी जाना-पहचाना है और चीन की सरकार को लगा कि उनका नाम ब्रांड इमेज के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. इसी तरह से कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूशन की शुरुआत हुई.
पहला इंस्टीट्यूट साउथ कोरिया में साल 2004 में खुला. इसके बाद से दुनिया के बहुत से विकसित और मध्यआय वाले देशों में ये संस्थान पहुंच चुका है. एक अनुमान के मुताबिक साल 2019 में दुनियाभर के देशों में 530 कन्फ्यूशियस संस्थान बन चुके थे.
कन्फ्यूशियस संस्थान चीन की सरकार से सीधे फंडिंग पाते हैं. इस फंडिंग के आधार पर ये दूसरे देशों के कॉलेज या यूनिवर्सिटीज से संपर्क करते हैं और वहां पर चीनी भाषा सिखाने या चीनी संस्कृति सिखाने की बात करते हैं. इसके लिए Chinese Ministry of Education से भारी पैसे मिलते हैं. पहले कनफ्यूशियस संस्थानों की तुलना कई सारे विदेशी संस्थानों जैसे ब्रिटिश काउंसिल, अलायंस फ्रेंचाइस जैसों से होती रही लेकिन जल्दी ही लोगों को समझ आने लगा कि चीन से आए इन संस्थानों का इरादा केवल भाषा और संस्कृति के बारे में बोलना-बताना नहीं, बल्कि युवाओं को अपने प्रभाव में लाना भी है.
लगा रहे सेंध
वैसे तो ये सांस्कृतिक लेनदेन की बात करते हैं लेकिन धीरे-धीरे ये होस्ट यूनिवर्सिटी की पढ़ाई-लिखाई में सीधा दखल देने लगते हैं. चूंकि ये काफी पैसे देते हैं इसलिए संस्थान इन्हें अलग भी नहीं कर पाते हैं. हालांकि बीते कई सालों से ये अपनी पॉलिसी और तौर-तरीकों को लेकर विवादों में रहे.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अब भारत में भी शिक्षा मंत्रालय लगभग 54 MoUs का रिव्यू करेगा, जो भारतीय यूनिवर्सिटीज और चीन के कन्फ्यूशियस संस्थान के बीच हुए. इनमें कई बड़े विश्वविद्यालय जैसे आईआईटी, बीएचयू, जेएनयू, एनआईटी और यूनिवर्सिटी ऑफ मुंबई भी शामिल हैं.